डोकलाम पर भारत की कूटनीतिक विजय

भारत और चीन के बीच पिछले कुछ महीनों से डोकलाम में चल रहे विवाद को हल करने की दिशा में अहम सहमति बनी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक दोनों देश डोकलाम से सेना हटाने को तैयार हो गए हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर बताया, “हाल के हफ्तों में डोकलाम को लेकर भारत और चीन ने कूटनीतिक बातचीत जारी रखी है। इस बातचीत में हमने एक दूसरे की चिंताओं और हितों पर बात की। इस आधार पर डोकलाम पर जारी विवाद को लेकर हमने सीमा पर सेना हटाने का फैसला किया है और इस पर कार्रवाई शुरू हो गई है।”

 

हालांकि चीन यहां भी अपनी चालबाजी से बाज नहीं आया। चीन के विदेश मंत्रालय ने इसे अपनी जीत के रूप में पेश किया। उसके प्रवक्ता के मुताबिक भारतीय सैनिक अपने उपकरणों समेत अपनी सीमा में लौट गए हैं, जबकि चीनी पक्ष डोकलाम में अपनी गश्त जारी रखे हुए है। दूसरी ओर जीत-हार के दावों से अलग कूटनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए भारत ने कहा कि दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपने हितों-चिंताओं और रुख से अवगत कराने में सफल रहे हैं। जहां तक सिर्फ भारतीय सेना की वापसी का प्रश्न है, ये सोचने का विषय है कि भारत के एकतरफा पीछे हट जाने के लिए चीन से सहमति की भला जरूरत ही क्या थी।

 

बहरहाल, चीन चाहे जो कहे, इसमें कोई दो राय नहीं कि डोकलाम पर भारत ने कूटनीतिक विजय पाई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सितंबर में ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर चीन दौरे के पहले इस विवाद का सुलझना विशेष अर्थ रखता है। चीन लाख कोशिशों के बावजूद भारत और भूटान को अलग-थलग करने में विफल रहा। बड़े देशों में किसी ने उसके तर्क पर भरोसा नहीं जताया। उसके दुष्प्रचार, धमकियों और मनोवैज्ञानिक युद्ध का विश्व भर में गलत संदेश गया वो अलग। दूसरी ओर भारत लगातार मुद्दे के शांतिपूर्ण और कूटनीतिक तरीके से हल पर जोर देता रहा। कहने की जरूरत नहीं कि अगर इस समस्या का समाधान अभी नहीं निकलता तो प्रधानमंत्री मोदी शायद ही ब्रिक्स सम्मेलन में हिस्सा लेते और अगर ऐसा होता तो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में चीन की और किरकिरी होती।

 

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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