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‘हिन्दी दिवस’ और ‘विश्व हिन्दी दिवस’

आज दुनिया भर में भारत की पहचान जितनी अपनी सांस्कृतिक विविधताओं और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए है, उतना ही इसे हिन्दी के लिए भी पहचाना जाता है। किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष भारत आएं और उन्हें भारत से निकटता प्रदर्शित करने के लिए कोई एक शब्द या वाक्य बोलना हो तो वो हिन्दी का होता है और दुनिया की बड़ी से बड़ी कंपनी के लिए भारत के बाजार में अपनी पैठ बनाने के लिए हिन्दी का सहारा लेना अनिवार्य-सा है। कारण स्पष्ट है कि हमारे देश में 77% लोग हिन्दी लिखते, पढ़ते, बोलते और समझते हैं।

भारत की अनेकता में एकता का स्वर हिन्दी के माध्यम से जैसे आज गूंजता है वैसे ही 1947 से पहले भी गूंजा करता था। यही कारण है कि 1946 में स्वतंत्र भारत के संविधान के लिए बनी समिति के सामने जब राष्ट्र की भाषा का सवाल खड़ा हुआ तब संविधान निर्माताओं के लिए हिन्दी ही सबसे बेहतर विकल्प थी। यह अलग बात है कि हिन्दी को सम्पूर्ण राष्ट्र की भाषा बनाए जाने को लेकर कुछ लोग विरोध में भी थे। इसलिए हिन्दी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया गया। खैर, जिस दिन देश को राजभाषा का दर्जा दिया गया था वो 14 सितंबर 1949 का था और इस दिन को हम आज हिन्दी दिवस के रूप में मनाते हैं।

गौरतलब है कि पहली बार राजभाषा घोषित किए जाने के 4 साल बाद यानि 14 सितंबर 1953 को हिन्दी दिवस मनाया गया था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यह फैसला किया था। इस दिन विभिन्न सरकारी संस्थानों में हिन्दी को लेकर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लेकिन यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि भारत में जहां 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है वहीं दुनिया भर में हिन्दी दिवस मनाने की तारीख अलग है और वो तारीख है 10 जनवरी।

दरअसल, दुनिया भर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। इस सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वाधान में हुआ था, उद्घाटन किया था तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने, मुख्य अतिथि थे मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर शिवसागर रामगुलाम और सम्मेलन से संबंधित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष थे तत्कालीन उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती। तब से अब तक कुल 11 विश्व हिन्दी सम्मेलन हो चुके हैं। भारत और मॉरीशस ने तीन-तीन बार इस सम्मेलन की मेजबानी की है, जबकि त्रिनिदाद और टोबैगो, यूनाइटेड किंगडम, सूरीनाम, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में इस सम्मेलन का आयोजन एक-एक बार हुआ है। ध्यातव्य है कि पहले दो सम्मेलनों का आयोजन पूर्णत: गैरसरकारी था, जबकि तीसरे सम्मेलन का आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने किया और उसके बाद से इस सम्मेलन का आयोजन भारत सरकार का विदेश मंत्रालय करता आ रहा है। कहने की जरूरत नहीं कि यह अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन हिन्दी का सबसे बड़ा सम्मेलन है और चूंकि इस सफर की शुरुआत 10 जनवरी को हुई थी, इसलिए इस दिन के खास महत्व को ध्यान में रखते हुए 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने दुनिया भर में 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाने की घोषणा की थी। तब से इस दिन विदेशों में भारतीय दूतावास विशेष कार्यक्रम आयोजित करते हैं। इस तरह पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन की वर्षगांठ को रेखांकित करने और हिन्दी को वैश्विक भाषा के रूप में प्रचारित करने के लिए हर साल 10 जनवरी को हम ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाते हैं।

– डॉ. अमरदीप
10 जनवरी 2022

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दुनिया में दोबारा रिकॉर्ड तोड़ने लगा है कोरोना

फ्रांस में कोरोना संक्रमण के लगभग 1 लाख 50 हजार नए मामले शनिवार को आए जबकि वहां 76 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। इटली में लगातार तीसरे दिन कोरोनावायरस 50 हजार से ज्यादा नए मामले आए हैं। ब्रिटेन में दूसरे दिन एक लाख से ज्यादा कोरोना संक्रमितों के नए मामले सामने आए। अमेरिका भी परेशानी झेल रहा है। ईरान चिंताओं के बीच सीमाएं बंद कर ली है।

बता दें कि भारत में कोरोना के नए वेरिएंट आॅमिक्रोन के नए मामले 500 के करीब पहुंच चुके हैं। फलस्वरूप भारत की कर्नाटक, उत्तराखंड, दिल्ली आदि कई स्टेटों में नाइट कर्फ्यू लगाने को विवश हो गया है। महाराष्ट्र में भी लॉक डाउन की स्थिति बन रही है जहां पर 110 नए केस सामने आए हैं।

बिहार राज्य के मुंगेर ने तो कोरोना के मामले में विस्फोट कर डाला है। 8 जवान सहित 11 कोरोना पॉजिटिव मिले वहां। जानकारों का कहना है कि तेज, मगर छोटी होगी तीसरी लहर। परंतु, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कहते हैं- आॅमिक्रोन से जंग में स्वयं की सजगता व अनुशासन देश की बड़ी ताकत बनेगी।

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प्रत्येक भारतीय की नाज बनीं हरनाज

खुद पर भरोसा करने वाली चंडीगढ़ की हरनाज कौर संधू ने मिस यूनिवर्स- 2021 का खिताब जीतकर प्रत्येक भारतीय को एक बार फिर से खुद पर नाज करने का मौका दिया है। हरनाज संधू ने न सिर्फ अपनी खूबसूरती, बल्कि अपने आत्मविश्वास एवं प्रखर बौद्धिकता से भी जजों को बेहद प्रभावित किया। हरनाज की यह सफलता भारत की बेटियों के लिए प्रेरणा का बीज है।

बता दें कि मिस यूनिवर्स का खिताब बाहरी खूबसूरती के आधार पर नहीं मिलता बल्कि इसके लिए बुद्धि, मेहनत, खूबसूरती आकर्षक, व्यक्तित्व एवं हाजिर जवाबी भी होना उतना ही अनिवार्य होता है। भारत की बेटी हरनाज में ये सारी खूबियां मौजूद हैं।

चलते-चलते यह भी जानिए कि हरनाज को शतरंज खेलना और घुड़सवारी करना बेहद पसंद है। कई अध्ययनों एवं शोध से भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि शतरंज खेलने से दिमाग की कसरत होती रहती है। इसलिए तो हरनाज को “ब्यूटी विद ब्रेन” की वास्तविक प्रतिनिधि मानी जाती है।

 

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नेशन फर्स्ट को जीने वाले सीडीएस जनरल बिपिन रावत एवं उनकी पत्नी मधुलिका सहित 13 लोगों का हेलीकॉप्टर हादसे में निधन

भारत के थल सेना अध्यक्ष रह चुके जनरल बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को पुरी, गढ़वाल (उत्तराखंड) में हुआ था। ऊंचाई पर जंग लड़ने के एक्सपर्ट बिपिन रावत की प्रथम नियुक्ति जनवरी 1979 को मिजोरम में हुई थी। शौर्य, पराक्रम व साहस से भरपूर विपिन रावत ने 1 सितंबर 2016 को सेना के उप प्रमुख पद को संभाला था। वर्ष 2016 के 31 दिसंबर को विपिन रावत थल सेना प्रमुख बने। रिटायर्ड होने के बाद आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत वर्ष 2019 में 61 साल की उम्र में पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनाए गए।

सवेरे 9:00 बजे दिल्ली से सेना के हेलीकॉप्टर mi-17- v5 से सीडीएस बिपिन रावत, पत्नी मधुलिका रावत सहित कुल 14 लोग सवार थे। जिसमें सीडीएस के 7 सदस्य और ग्रुप के 5 सदस्य थे। तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में कुन्नूर के पास एक कॉलेज के कार्यक्रम में भाग लेने गए थे। कॉलेज पहुंचने से 5 मिनट पहले घने जंगल में हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया। इस हादसे में विपिन रावत, पत्नी मधुलिका रावत सहित 13 लोगों की मृत्यु हो गई।

आज शाम तक उनकी पार्थिव शरीर को दिल्ली लाया जाएगा। सारा देश इस हादसे को लेकर शोक मग्न है। उत्तराखंड सरकार ने 3 दिन तक शोक मनाए जाने की घोषणा कर दी है……!

 

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जॉर्ज सिडनी अरुंडेल का जन्म 1 दिसंबर 1878 को हुआ था इंग्लैंड में

आजादी की लड़ाई में भारतीयों का साथ देने वाले अंग्रेज शिक्षक जॉर्ज सिडनी अरुंडेल का जन्म आज ही के दिन यूनाइटेड किंगडम में हुआ था। वे भारतीय नृत्यांगना रुक्मिणी देवी अरुंडेल के पति थे। उनका नाम भारत के लिए अपना जीवन समर्पित कर देने वाले अंग्रेज व्यक्तियों में गिना जाता है।

बता दें कि एनी बेसेंट ने युवाओं की समुचित शिक्षा के लिए वाराणसी में जो “सेंट्रल हिंदू स्कूल” की स्थापना की थी, उसी स्कूल की में जॉर्ज अरुंडेल अध्यापक बन गए थे और बाद में प्रधानाचार्य भी बने। वे बड़े लोकप्रिय शिक्षक थे। वे ताजिंदगी भारत की स्वतंत्रता की भावना का पूरा सम्मान करते रहे थे। क्रांतिकारी छात्रों को गिरफ्तार होने से बचाते रहे। इसके चलते उन्हें नजरबंद कर दिया गया। वे जेल में डाल दिए गए।

चलते-चलते यह भी बता दें कि लंदन में एनी बेसेंट का भाषण सुनकर 25 वर्षीय जॉर्ज अरुंडेल इस कदर प्रभावित हुए कि वे भारत चले आए और फिर यहीं के होकर रह गए। उनकी मृत्यु 12 अगस्त 1945 को चेन्नई में हो गई।

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आॅमिक्राॅन को लेकर पूरी दुनिया परेशान है

कोरोना  के नए वेरिएंट आॅमिक्राॅन से पूरी दुनिया दहशत में आ गई है। फिलहाल आॅमिक्राॅन 16 देशों में फैल गया है।

बता दें कि भारत सरकार द्वारा पूर्व में यह निर्णय लिया गया था कि 15 दिसंबर से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भरी जाएंगी। परंतु, केंद्र सरकार द्वारा पुनः समीक्षा बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब बाहर से आने वाले यात्रियों की विगत 14 दिनों की यात्रा की जानकारी ली जाए। जांच के दौरान आवश्यक होने पर 7 दिनों का होम क्वारनटीन अनिवार्य किया जाए।

जानिए कि कोरोना के डेल्टा वेरियन्ट का नया स्वरूप है यह “आॅमिक्राॅन” जो पहली बार साउथ अफ्रीका में मिला। यह आॅमिक्राॅन डेल्टा से 7 गुना अधिक घातक है। मात्र 9 दिनों में ही 16 देशों में फैल गया है। यह आॅमिक्राॅन पुराने वेरियंट से ज्यादा तेजी से फैल रहा है। यही कारण है कि साउथ अफ्रीका से भारत आ रहे यात्रियों की जांच अनिवार्य कर दी गई है। मथुरा में 4 विदेशी नागरिक कोरोना पॉजिटिव पाये गए हैं। आॅमिक्राॅन को लेकर दुनिया परेशान है।

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कोरोना वायरस दुनिया से गया नहीं है, अभी भी मास्क और बूस्टर डोज के सहारे लड़ रहा है यूरोप

यूरोप इस वक्त कोरोना वायरस का केंद्र बना हुआ है। भारत से भी कोरोना गया नहीं है। ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने तो दुनिया को यह कह कर आगाह किया है कि कोरोना के डेल्टा वेरियेंट से भी अधिक खतरनाक स्वरूप मिला है, जो 3 देशों में फैल चुका है। वे देश हैं- वोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका और हांगकांग। इस वेरिएंट में अब तक 32 उत्परिवर्तन देखने को मिले हैं जिन्हें टीका प्रतिरोधी भी बताया जा रहा है।

अभी भी यूरोप के कई देश मास्क एवं बूस्टर डोज के सहारे कोरोना की पांचवी लहर को रोकने में लगे हैं।  कोरोना वायरस के बढ़ते मामले को देखते हुए ब्रिटेन, डेनमार्क सहित कई देशों ने एक बार फिर से मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया है।

चलते-चलते यह भी कि वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि यदि मास्क का उपयोग बढ़ा दिया जाए तो दुनिया में यूरोप सहित हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती है। दुनिया के ताकतवर देशों ब्रिटेन, अमेरिका, इजरायल समेत कई देशों में जिन लोगों को टीके के दोनों खुराक लिए हुए छह माह हो गए हैं उनके बीच बूस्टर डोज भी रफ्तार पकड़ ली है।

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मधेपुरा से मंगल सानिध्य रखने वाले गणितज्ञ डॉ.वशिष्ठ नारायण सिंह को मरणोपरांत मिला पद्मश्री सम्मान

गणितज्ञ प्रो.(डॉ.)वशिष्ठ नारायण सिंह का मंगल सानिध्य मधेपुरा से रहा है। जहां उन्होंने मधेपुरा के भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया था, वहीं पटना के साइंस कॉलेज में मधेपुरा निवासी समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी से एक क्लास आगे पढ़ते थे।

जानिए कि वर्ष 1962 में जब डॉ.वशिष्ठ नारायण नेतरहाट से हायर सेकेंडरी उत्तीर्ण होकर बी.एस-सी पार्ट वन के छात्र हुआ करते थे तब डॉ.मधेपुरी पटना साइंस कॉलेज में प्री-साइंस के छात्र हुआ करते थे।

बता दें कि गणितज्ञ रामानुजन कहलाने वाले एकमात्र छात्र वशिष्ठ के लिए कुलपति डॉ.जॉर्ज जैकब एवं पटना साइंस कॉलेज के प्राचार्य डॉ.नासु नागेंद्र नाथ ने बी.एस-सी गणित की परीक्षा लेकर उन्हें कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी भेज दिया, जहां उन्होंने गणितज्ञ डॉ.केली के सानिध्य में रहकर काम किया।

यह भी कि जब 1973 में वैवाहिक बंधन में बंधे तो अचानक दुनिया भैंचक हो गई यह जानकर कि गणितज्ञ वशिष्ठ रांची मेंटल हॉस्पिटल में इलाजरत हैं। जब गणित की दुनिया का वह चमकता सितारा गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हो गया तब मधेपुरा वकालत खाना में डॉ.मधेपुरी ने लोक अभियोजक शिवनेश्वरी प्रसाद की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाकर उस महान गणितज्ञ को आर्थिक मदद करने का निर्णय लिया। परंतु, एक दिन बाद कर्पूरी सरकार ने घोषणा कर दी कि डाॅ.वशिष्ठ नारायण का सारा खर्च सरकार वहन करेगी।

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अब शरीर के किसी भाग पर मौजूद हुआ कोरोना वायरस तो नैनो तकनीक वाले रिस्ट बैंड का बजने लगेगा अलार्म

कोरोना की तीसरी लहर की आशंका से भयभीत भारतीय युवा विज्ञानी डॉ.रेनु चोइथरानी का दावा है कि देश में इस तरह का पहला नम्नोमेष है जिसे भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय ने प्रमाणित किया है। इस बैंड को तैयार करने में करीब डेढ़ वर्ष का समय और लगभग ढाई हजार रुपये का खर्च आया है।

बता दें कि इस रिस्ट बैंड में बायो सेंसर लगे हैं, जो कि कोरोना वायरस के सभी वेरिएंट की पहचान कर लेते हैं। बैंड में लगी लाल एलईडी जलने के साथ-साथ अलार्म भी बजने लगता है।

चलते-चलते यह भी जान लीजिए कि शरीर का तापमान मापने हेतु इस बैंड में थर्मल सेंसर भी लगाए गए हैं, जिसे जिसमें मोबाइल नंबर फिट करने पर शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होते ही आपातकालीन नंबर पर मैसेज आ जाता है।

 

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स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव, आज भी जीवित है देश का प्रथम मतदाता 105 वर्षीय श्याम सरन नेगी

यह अक्टूबर का महीना है। इसी महीने में 70 वर्ष पूर्व आजाद भारत का प्रथम चुनाव हुआ था। स्वतंत्र भारत के प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त थे आईसीएस सुकुमार सेन, जिन्होंने 1951-52 और 1957 का चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराया था। पहले चुनाव ने देश को बहुत कुछ दिखाया, सिखाया और साबित भी किया।

बता दें कि सर्वप्रथम इसी अक्टूबर महीने की 25 तारीख को 1951 की सुबह आजाद भारत में मतदान की शुरुआत हुई थी। हिमाचल प्रदेश अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने वाला पहला राज्य बना था, क्योंकि सर्द मौसम को देखते हुए यह फैसला लिया गया था। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ने 68 चरणों में चुनाव की योजनाएं बनाई थी।

1st voter of 1st general election Shri Shyam Sharan Negi after casting his vote in 2019 general election.
1st voter of 1st general election Shri Shyam Sharan Negi after casting his vote in 2019 general election.

जानिए कि हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के कल्पा गांव निवासी स्कूल टीचर श्याम शरण नेगी को अपने गांव से अलग प्रशासन द्वारा मतदान केंद्र प्रभारी बनाया गया था। नेगी एक वोट के मूल्य को समझते थे। वे मतदान शुरू होने से 1 घंटे पहले यानि सुबह 6:00 बजे ही अपने गांव के प्राथमिक विद्यालय के मतदान केंद्र पर पहुंच गए। वहां उन्होंने अधिकारियों को अपनी स्थिति के बारे में बताया। तैनात अधिकारी ने उन्हें 6:30 बजे मतपत्र दिया और नेगी पहले मतदाता बन गए। फिर भागते हुए सुबह 7:15 बजे अपने बूथ की कमान संभालने पहुंच गए।

उन दिनों अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 तक यानि 4 महीनों में प्रथम चुनाव संपन्न हुआ था। तब देश में साक्षरता की भारी कमी थी। दो दिग्गज आचार्य जेबी कृपलानी फैजाबाद (यूपी) से एवं बाबा साहब अंबेडकर मुंबई नॉर्थ से चुनाव हार गए थे। वर्ष 1953 में आचार्य कृपलानी मधेपुरा से संसदीय उपचुनाव जीतकर मधेपुरा का प्रतिनिधित्व किए थे। मनीषी भूपेन्द्र नारायण मंडल एवं लोक नायक जेपी ने कृपलानी जी को मधेपुरा से चुनाव लड़ने की पहल की थी।

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