क्यों और कैसे मनाएं जन्माष्टमी ?

कल जन्माष्टमी है। यानि विष्णु के समस्त अवतारों में पूर्वावतार कहे जाने श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव। समस्त गुणों का आगर होने के साथ-साथ कृष्ण की सबसे अनोखी बात यह है कि उनके भक्त उन्हें जिस रूप में पूजते हैं वे उनके साथ उसी रूप में हो लेते हैं। एकमात्र वही हैं जिन्हें कोई पुत्र के रूप में, कोई सखा के रूप में, कोई सारथि के रूप में, कोई गुरु के रूप में तो कोई प्रेमी और यहां तक कि पति के रूप में चाहता और पूजता है और वो उस भक्त के प्रेम को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं। यही कारण है कि भक्तों का जैसा तादात्म्य श्रीकृष्ण के साथ है वैसा किन्हीं अन्य देवता के साथ नहीं।

पौराणिक धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। उनका अवतरण देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा में हुआ और एक मान्यता के मुताबिक यह दिव्य घटना 5 हजार 243 वर्ष पूर्व हुई।

जन्माष्टमी का त्योहार भारत सहित पूरे विश्व में वर्णनातीत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन कहीं रंगों की होली होती है तो कहीं डांडिया का उत्सव, कहीं दही-हांडी फोड़ने की उमंग होती है तो कहीं भगवान कृष्ण की मोहक छवियों की झांकी। मंदिरों की रौनक इस दिन देखते ही बनती है। भगवान कृष्ण को इस दिन विशेष तौर पर सजाए गए झूले पर झुलाया जाता है और साथ ही कृष्ण रासलीलाओँ का आयोजन होता है।

शास्त्रों के अनुसार इस दिन व्रत का पालन करने से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है। बताया जाता है कि इस दिन व्रत रखने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है, लक्ष्मी स्थिर होती है और सारे बिगड़ते काम बन जाते हैं। और हां, याद रखें कि इस दिन आपकी पूजा तभी पूर्ण होगी जब कृष्ण का नाम लेने के साथ ही आप देवकी, वासुदेव, नंद, यशोदा, राधा और लक्ष्मी का नाम भी श्रद्धापूर्वक लें। माना जाता है कि ये सभी कृष्ण के व्यक्तित्व के अनिवार्य अंग हैं और इन सबके बिना न तो उनकी पूजा पूरी होती है और न ही स्वीकार।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप  

 

 

सम्बंधित खबरें