भारतीय संविधान निर्माता व ‘स्टैचू ऑफ नॉलेज’ कहे जाने वाले डॉ.अंबेडकर एवं लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल सरीखे अद्वितीय व्यक्तित्व द्वय को मृत्यु के 30-40 वर्षों बाद ‘भारतरत्न’ दिया गया तो क्या फादर ऑफ न्यूक्लियर पावर कहे जाने वाले एवं ‘एटम और पीस’ के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु 24 जनवरी 1966 को जिनेवा जा रहे डॉ.होमी जहांगीर भाभा के एयर इंडिया के बोइंग जहाज के आल्प्स पर्वत से टकराने पर हुई मृत्यु वाले महानतम वैज्ञानिक को भारतरत्न अवश्य ही मिलना चाहिए। समाजसेवी-साहित्यकार एवं विज्ञान वेत्ता डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने भारत सरकार से डॉ.भाभा को भारतरत्न दिए जाने की मांग की है।
डॉ.भाभा 1940 ईस्वी में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी के यशस्वी प्राध्यापक थे। उस पद को छोड़ भारत को न्यूक्लियर पावर में विश्व चैंपियन बनाने हेतु त्यागपत्र देकर भारत आ गए। भारत आकर उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ. सीवी रमन के बेंगलुरु वाले ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ में उनके साथ काम किया। डॉ.भाभा ने 1945 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और उन्हें ही प्रथम निदेशक बनाया गया। 1948 में प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘एटमिक एनर्जी कमीशन’ की स्थापना कर डॉ.भाभा को अध्यक्ष बनाया। डॉ.भाभा ने ट्रॉम्बे में एशिया का पहला ‘परमाणु अनुसंधान केंद्र’ स्थापित किया और उनके निर्देशन में अप्सरा, सिरान एवं जरलीना नामक तीन परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का निर्माण किया गया और इस प्रकार भारत में परमाणु युग का प्रवेश हुआ। 1962 में डॉ.भाभा ने ‘इलेक्ट्रॉनिक समिति’ की स्थापना की और देश ने उन्हें प्रथम अध्यक्ष भी बनाया। ऐसे यशस्वी वैज्ञानिक डॉ.होमी जहांगीर भाभा को मरने के 58 वर्ष बाद भी तो ‘भारतरत्न’ जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए।