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यूपी में विधिवत शुरू हुआ ‘योगीराज’

यूपी में योगीराज की विधिवत शुरुआत हो गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नई कैबिनेट ने शपथ ले ली। राज्यपाल राम नाईक ने मुख्यमंत्री और उनके कैबिनेट व राज्य मंत्रियों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के पूर्व मेयर दिनेश शर्मा ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली। लखनऊ के कांशीराम स्मृति उपवन में आयोजित शपथग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह समेत 13 राज्यों के मुख्यमंत्री, 15 केंद्रीय मंत्री और दर्जनों सांसद मौजूद रहे। परंपरा निभाते हुए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव भी शपथग्रहण समारोह में शामिल हुए।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री समेत कुल 49 सदस्यीय मंत्रिमंडल में कुल 17 ओबीसी, 8 ब्राह्मण, 8 कायस्थ-वैश्य, 7 ठाकुर, 6 अनुसूचित जाति और 2 जाट को जगह मिली है। 403 में से एक भी सीट पर किसी मुस्लिम को उम्मीदवारी न देने वाली भाजपा ने मंत्रिमंडल में एक मुस्लिम चेहरे को भी रखा है। वहीं, ओबीसी मंत्रियों में एक यादव को जगह मिली है। यादव और मुस्लिम के इन सांकेतिक चेहरों को राज्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई। गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह का नाम आश्चर्यजनक रूप से मंत्रियों की सूची में नहीं है। हां, लालजी टंडन के बेटे आशुतोष टंडन अपना स्थान बनाने में जरूर सफल रहे। महिलाओं में कांग्रेस से आईं रीता बहुगुणा जोशी ने कैबिनेट मंत्री के तौर पर तो महज कुछ महीने पहले और वो भी आकस्मिक रूप से राजनीति में आईं स्वाति सिंह ने स्वतंत्र प्रभार वाली राज्य मंत्री के तौर पर अपनी जगह बनाई।

बहरहाल, योगी कैबिनेट में स्थान पाने वाले कैबिनेट मंत्रियों के नाम इस प्रकार हैं – सूर्य प्रताप शाही, सुरेश खन्ना, स्वामी प्रसाद मौर्य, सतीश महाना, राजेश अग्रवाल, रीता बहुगुणा जोशी, दारा सिंह चौहान, धर्मपाल सिंह, एस. पी. सिंह बघेल, सत्यदेव पचौरी, रमापति शास्त्री, जय प्रकाश सिंह, बृजेश पाठक, ओम प्रकाश राजभर, लक्ष्मी नारायण चौधरी, चेतन चौहान, श्रीकांत शर्मा, राजेन्द्र प्रताप सिंह (मोती सिंह), सिद्धार्थ नाथ सिंह, मुकुट बिहारी वर्मा, आशुतोष टंडन और नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’।

स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री के तौर पर जिन लोगों को स्थान मिला, वे हैं – अनुपमा जायसवाल, सुरेश राणा, उपेंद्र तिवारी, महेंद्र सिंह, स्वतंत्रदेव सिंह, भूपेंद्र सिंह चौधरी, धरम सिंह सैनी, स्वाति सिंह और अनिल राजभर। वहीं राज्य मंत्री के रूप में गुलाब देवी, बलदेव औलख, अतुल गर्ग, संदीप सिंह, मोहसिन रजा, अर्चना पाण्डे, रणवेंद्र प्रताप सिंह (घुन्नी सिंह), मन्नु कोरी, ज्ञानेंद्र सिंह, जय प्रकाश निषाद, गिरीश यादव, संगीता बलवंत, नीलकंठ तिवारी, जयकुमार सिंह जैकी और सुरेश पासी को जगह मिली।

                                                                                ‘मधेपुरा अबतक के लिए डॉ.ए. दीप

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योगी को मिला यूपी, साथ में दो ‘डिप्टी’ भी

हवा में तैर रहे कई नामों को एक झटके में किनारे कर भाजपा आलाकमान ने ‘फायरब्रांड’ सांसद योगी आदित्यनाथ को यूपी की कमान सौंप दी। शनिवार को विधायक दल की बैठक में उन्हें औपचारिक तौर पर नेता चुन लिया गया। बतौर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के चयन के साथ ही यूपी भाजपा के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य और लखनऊ के पूर्व मेयर दिनेश शर्मा के रूप में दो उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा भी की गई। सत्ता के शीर्ष पर दो अगड़ों (योगी राजपूत हैं और शर्मा ब्राह्मण) के साथ एक पिछड़े (ओबीसी मौर्य) को आगे कर जातिगत समीकरण साधने की भी भरसक कोशिश की गई है।

उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सिंह रावत के रूप में राजपूत चेहरा चुनने के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि यूपी में गैर सवर्ण सीएम चुना जाएगा। इस लिहाज से केशव प्रसाद मौर्य रेस में आगे निकलते दिख रहे थे, लेकिन यूपी में हिन्दुत्ववादी राजनीति का चेहरा होना योगी आदित्यनाथ के पक्ष में गया। पार्टी आलाकमान ने शनिवार सुबह अचानक योगी को दिल्ली बुला लिया। इसके बाद राज्य भर में ये ख़बर फैलते देर न लगी कि योगी ही प्रदेश के मुखिया होने जा रहे हैं।

गौरतलब है कि योगी आदित्यनाथ का मूल नाम अजय सिंह है। उनका जन्म 5 जून 1972 को वर्तमान उत्तराखंड के गढ़वाल में हुआ था। उन्होंने 22 साल की उम्र में संन्यास लिया और 26 साल की उम्र में गोरखपुर से सांसद बने। 1998 से 2014 के बीच वे इस सीट से लगातार पांच बार लोकसभा पहुंचे। लव जिहाद और धर्मांतरण जैसे मुद्दों से चर्चा में रहने वाले गोरखपुर मंदिर के महंत योगी का पूर्वांचल में अच्छा प्रभाव माना जाता है। इसके अतिरिक्त भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व में पहुंच का भी उन्हें लाभ मिला।

अब बात करें केशव प्रसाद मौर्य की। 7 मई 1969 को कौशांबी जिले में जन्मे मौर्य वर्तमान में फूलपुर से सांसद हैं। विश्व हिन्दू परिषद के दिवंगत नेता अशोक सिंघल के करीबी रहे मौर्य ने एक समय चाय और अखबार भी बेचा है। कार्यकर्ताओं में उनकी अच्छी पहुंच मानी जाती है और संघ से उनके अच्छे रिश्ते हैं। उन्हें जातिगत समीकरणों और प्रमुख पिछड़ा चेहरा होने का अतिरिक्त लाभ भी मिला। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने यूपी की सत्ता में वापसी की है।

दूसरे उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा का जन्म 12 फरवरी 1964 को हुआ था। वे लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। 2008 और 2012 में वे लखनऊ के मेयर रहे। 2014 में उऩ्हें भाजपा का राष्ट्रीय सदस्यता प्रभारी बनाया गया। भाजपा सदस्यों की संख्या 1 करोड़ से 11 करोड़ तक पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान माना जाता है। उनकी छवि साफ-सुथरी और मिलनसार है और नरेन्द्र मोदी व अमित शाह दोनों के वे करीबी माने जाते हैं। संघ से भी उनका जुड़ाव रहा है और पार्टी के ब्राह्मण चेहरे तो वो हैं ही।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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सुषमा अगली राष्ट्रपति होंगी और जेटली उपराष्ट्रपति !

उत्तर प्रदेश के भावी मुख्यमंत्री की तरह ही राजनीतिक गलियारों में देश के अगले राष्ट्रपति को लेकर भी अटकलें हैं। वैसे तो भाजपा के सक्रिय नेताओं में वरिष्ठतम और कद में अटल बिहारी वाजपेयी के समकक्ष भूतपूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश के सर्वोच्च पद का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा है और उनके साथ-साथ वाजपेयी-आडवाणी के साथ त्रिमूर्ति के तौर पर शुमार भूतपूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी का नाम भी चर्चा में था, पर इन दोनों नेताओं के अतिरिक्त इस पद के लिए अचानक एक और नाम हवा में तैरने लगा है, और वो नाम है विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का। कहा यह भी जा रहा है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली देश के अगले उपराष्ट्रपति हो सकते हैं।

सुषमा स्वराज का नाम सामने आने के पीछे दो बड़े कारण बताए जा रहे हैं। पहला, उनका महिला होना और दूसरा मार्गदर्शक मंडल में शामिल नेताओं को सांकेतिक महत्व तक ही सीमित रखने की मोदी की रणनीति। सबको हैरान करने की राजनीति में यकीन रखने वाले मोदी अगर ये दांव भी चल दें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। वैसे भी सुषमा की योग्यता पर प्रश्नचिह्न उठाना संभव नहीं, महिला सशक्तिकरण का नारा भी उनसे बुलंद होगा ही और रही बात वरिष्ठता की तो आडवाणी-जोशी के ठीक बाद वाले पायदान पर तो वो खड़ी हो ही सकती हैं।

सूत्रों के मुताबिक एक और चौंकाने वाली ख़बर यह भी है कि देश के वित्त मंत्री (और अब रक्षामंत्री भी) अरुण जेटली को अगला उपराष्ट्रपति बनाया जा सकता है। कहने की जरूरत नहीं कि जेटली केन्द्र सरकार के ताकतवर और मोदी के भरोसेमंद मंत्रियों में एक हैं।

गौरतलब है कि अगले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव जुलाई-अगस्त में संभावित है। अगर ऊपर दी गई जानकारियां सही साबित होती हैं तो मोदी मंत्रिमंडल का पूरा चेहरा ही बदल जाएगा। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर पहले ही गोवा जा चुके हैं और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को यूपी भेजे जाने की चर्चा जोरों पर है। यानि मोदी मंत्रिमंडल में मोदी के कद के आसपास भी कोई नहीं होगा। दूसरे शब्दों में मोदी मंत्रिमंडल को मोदीमय करने की तैयारी है ये।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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यूपी में सबको फिर चौंकाने की तैयारी में मोदी !

यूपी में भाजपा की अभूतपूर्व जीत के बाद मोदी एक बार फिर सबको चौंका सकते हैं, और इस बार मुख्यमंत्री के रूप में अप्रत्याशित चेहरा सामने लाकर। वैसे संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर अभी कई नाम हवा में हैं, जिनमें गृहमंत्री राजनाथ सिंह, यूपी भाजपा के अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ और रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के नाम प्रमुख हैं। लेकिन इन नामों में अचानक एक नया नाम जुड़ गया है, और वो नाम है सतीश महाना का। महाना को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का करीबी बताया जाता है।

बता दें कि इस बीच कोयंबटूर में आरएसएस की बैठक हो रही है जिसमें यूपी के अगले सीएम पर चर्चा हो सकती है। बैठक में संघ प्रमुख मोहन भागवत समेत तमाम वरिष्ठ अधिकारी हिस्सा ले रहे हैं। ख़बरों के मुताबिक भाजपा सीएम का चेहरा वहां के परिणाम की तरह ही चौंकाने वाला हो सकता है। सूत्र ये भी बताते हैं कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यूपी के लिए दो डिप्टी सीएम के फॉर्मूले पर भी चर्चा कर रहा है ताकि अधिक-से-अधिक लोगों और वर्गों को ‘संतुष्ट’ किया जा सके।

बहरहाल, बात करते हैं अचानक रेस में आए और फिलहाल सबसे आगे दिख रहे सतीश महाना की। सरकार बनने पर उनका मंत्री बनना वैसे भी तय माना जा रहा था। लेकिन अब उनका नाम संभावित मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार के तौर पर सामने आ रहा है। कानपुर की महाराजगंज से चुने गए महाना 1991 से लगातार छठी बार विधायक बने हैं। इस बार उन्होंने रिकॉर्ड 56 प्रतिशत वोट हासिल कर बसपा के मनोज शुक्ला को 91,826 वोटों के बड़े अंतर से हराया है। 14 अक्टूबर 1960 को जन्मे महाना कानपुर में खासे मशहूर हैं। खासकर वहां के छोटे दुकानदारों में वे काफी लोकप्रिय हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं मिलने पर उनको टिकट मिलना और जीतना तय माना जा रहा था। महाना की सक्रियता सोशल मीडिया पर भी देखी जा सकती है। चुनाव के दिनों में उनकी हर गतिविधि अपलोड होती थी।

ख़बरों के मुताबिक महाना संघ के दिनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ काम कर चुके हैं और यह बात उनके पक्ष में जा रही है। भाजपा संसदीय दल की बैठक के दौरान मोदी ने कहा था कि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो लाइम लाइट में नहीं रहते, लेकिन काम अच्छा करते हैं। प्रधानमंत्री के इस बयान को महाना से जोड़कर देखा जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक रविवार को महाना को अचानक दिल्ली बुलाया गया था। यह भी गौरतलब है कि पंजाबी होने के कारण वे वित्तमंत्री अरुण जेटली के भी करीबी हैं और जोशी के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा है। ये बातें भी उनकी दावेदारी को मजबूत करती हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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जोगीरा सा रा रा रा

केकर खातिर पान बनन बा, केकरे खातिर बांस

केकरे खातिर पूड़ी पूआ, केकर सत्यानास

जोगीरा सा रा रा रा

नेतवन खातिर पान बनल बा, पब्लिक खातिर बांस

अफसर काटें पूड़ी पूआ, सिस्टम सत्यानास

जोगीरा सा रा रा रा

ये है जोगीरा की एक बानगी, जिसे लिखा है कबीर की परम्परा के जनकवि आचार्य रामपलट दास ने। आप भारत में हों, होली के रंगों को पहचानते हों और आपके कानों में जोगीरा की थाप न पहुँची हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जोगीरा ना हो तो होली कैसी..? होली का असली रंग तो जोगीरा के साथ ही चढ़ता है। आखिर दिल में उत्साह और दिमाग में सवाल उतार देने वाला, हमारी रग-रग में तैर जाने वाला ये जोगीरा है क्या?  चलिए, आज इसी पर बात करते हैं।

उत्तर भारत के जिन क्षेत्रों में नाथपंथी योगी (जोगी) सक्रिय रहे वहाँ जोगीरा गाने की परम्परा विशेष रूप से पाई जाती है। सम्भवत: इसकी उत्पत्ति जोगियों की हठ-साधना, वैराग्य और उलटबाँसियों का मजाक उड़ाने के लिए हुई हो। यह मूलत: एक समूह-गान है जिसमें प्रश्नोत्तर शैली में एक समूह सवाल पूछता है तो दूसरा उसका जवाब देता है। जवाब प्राय: चौंकाने वाले होते हैं।

समय बदला तो जोगीरा भी बदलता गया। धीरे-धीरे यह रोजमर्रा की घटनाओं से जुड़ता चला गया। घर का आंगन हो, गांव का चौपाल हो या फिर राजनीति का गलियारा इसने हर जगह अपनी पहुँच बना ली। सम्भ्रान्त और शासक वर्ग पर अपना गुस्सा निकालने या यूँ कहें कि उन्हें ‘गरियाने’ का अनूठा जरिया बन गया जोगीरा।

होली में तो वैसे भी खुलकर और खिलकर कहने की परम्परा है। यह एक तरह से सामूहिक विरेचन का पर्व है। आज इस परम्परा को स्वस्थ रूप देते हुए इसे फिर से व्यक्तिगत और संस्थागत, सामाजिक और राजनीतिक विडम्बनाओं और विद्रूपताओं पर कबीर की तरह तंज कसने और हमले करने के अवसर में बदलने की जरूरत है। आचार्य रामपलट दास के ही शब्दों में कुछ इस तरह –

चिन्नी चाउर महंग भइल, महंग भइल पिसान

मनरेगा का कारड ले के, चाटा साँझ बिहान

जोगीरा सा रा रा रा

या फिर कुछ ऐसे –

खूब चकाचक जीडीपी बा चर्चा बा भरपूर

चौराहा पर रोज सबेरे बिक जाला मजदूर

जोगीरा सा रा रा रा।

चलने से पहले हम ये न कहेंगे कि ‘बुरा न मानो होली है’। हम तो कहेंगे ‘अब बुरा मान भी लो होली है’… जोगीरा सा रा रा रा…

रंग और गुलाल के साथ –

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

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यूपी में भाजपा की प्रचंड जीत के पांच बड़े कारण

पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के साथ लोकतंत्र में लोकप्रियता की नई इबारत लिख गए मोदी। किसने सोचा था कि ‘साइकिल’ की हवा इस कदर निकल जाएगी, ‘हाथ’ के हाथ में उंगलियों के बराबर भी सीटें नहीं आएंगी और ‘हाथी’ चलने से पहले ही हांफ जाएगा। यहां तक कि भाजपा के बड़े से बड़े भक्त ने भी नहीं सोचा होगा कि 1991 की राम-लहर पर भी भारी पड़ जाएगी 2017 की मोदी-लहर। तब भाजपा ने 221 सीटें जीती थीं जबकि उस वक्त उत्तराखंड भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था और इस बार भाजपा ने 312 सीटें जीती हैं। इसमें सहयोगियों की सीटें जोड़ दें तो आंकड़ा 325 का हो जाता है। एक यूपी (और बोनस के तौर पर उत्तराखंड भी) में भाजपा ने इतने जोर से ठहाका लगाया कि कांग्रेस की पंजाब (और साथ में मणिपुर और गोवा भी) की मुस्कान फीकी पड़ गई।

तमाम समीकरणों और एग्जिट पोल के सारे अनुमानों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2012 के मुकाबले इस बार छह गुना अधिक सीटें हासिल कीं। आखिर वे कौन से कारण हैं कि इस बार की होली के सारे अबीर केसरिया और सारे रंग मोदीमय हो गए? चलिए, जानने की कोशिश करते हैं कि क्या हैं भाजपा की इस प्रचंड जीत के पांच बड़े कारण?

  1. मोदी का मैजिक: महज तीन साल पहले गुजरात से राष्ट्रीय राजनीति में आए मोदी महज तीन साल में न केवल भाजपा के पर्याय बन गए हैं, बल्कि ने आम भारतीय जनता की ‘आस्था’ के नए केन्द्र बनकर उभरे हैं। आज की तारीख में वो जो कह रहे हैं, समाज का हर तबका (सामाजिक और आर्थिक दोनों) उसे गौर से सुन रहा है और बहुत हद तक मान भी रहा है। नोटबंदी का मुद्दा इस बात का जीता-जागता सबूत है। तमाम पार्टियों ने एटीएम के आगे लंबी-लंबी लाइनों की बात कर उनका विरोध किया और जनता ने उन्हें वोट देने को उससे भी बड़ी लाइन लगा दी।
  1. तिकोना मुकाबला: ये बात समझ से परे है कि बिहार में महागठबंधन के ताजा प्रयोग और उसकी सफलता को देखकर भी सपा, बसपा और कांग्रेस ने सीख क्यों न ली। सपा और कांग्रेस का गठबंधन वहां वैसा ही था जैसे बिहार में जेडीयू या आरजेडी में से किसी एक के साथ कांग्रेस का गठबंधन होता। अगर इस बार सपा, बसपा और कांग्रेस को मिले वोटों को एक जगह कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं कि भाजपा की जगह इस गठबंधन के पास सवा तीन सौ सीटें होतीं।
  1. यादव-परिवार का गृहयुद्ध: यूपी में चुनाव से पहले जिस समय यादव-परिवार में गृहयुद्ध छिड़ा था, उस समय भाजपा पूरे राज्य में एक के बाद एक परिवर्तन रैली कर रही थी। उसे उसके सुनियोजित और क्रमबद्ध प्रचार का फायदा मिला। उधर सपा-कांग्रेस का गठबंधन एकदम आखिरी समय में हुआ। दोनों पार्टियों को साझा रणनीति और ग्रासरूट लेवल पर कार्यकर्ताओं का साझा मानस तैयार करने का वक्त ही नहीं मिला।
  1. अपने वोटबैंक पर फोकस: भाजपा ने पहले दिन से गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित पर फोकस किया। ऊंची जातियों का वोट तो वैसे भी कांग्रेस से शिफ्ट होकर कमोबेश उसके पास आ ही चुका है। बचे मुसलमान, तो 403 में एक भी सीट मुसलमान को न देकर उसने नि:संकोच ‘हिन्दुत्व’ के एजेंडे आगे बढ़ाया।
  1. अमित शाह की व्यूह-रचना: यूपी की जीत में मोदी के चेहरे के बाद जिस चीज ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई वो थी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की सधी हुई रणनीति। इस चुनाव में उनके सारे दांव सही पड़े। एक ओर उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य और सुखदेव राजभर जैसे नेताओं को जोड़कर यह संकेत दिया कि भाजपा सबको साथ लेकर चल सकती है, तो दूसरी ओर कई सीटों पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल लेकर भी बाहर से आए जिताऊ नेताओं को टिकट दिया। इनमें से अधिकतर नेताओं को जीत मिली। सच यह है कि इन पांच राज्यों के चुनाव के बाद शाह ने पार्टी के हर स्तर पर नेताओं की नई कतार खड़ी कर ली है और भाजपा को पूरी तरह मोदी-शाह-मय कर दिया है। बड़ी बात यह कि उनके किए पर जनता ने भी मुहर लगाई है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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जब सारे जीत रहे हैं तो हार कौन रहा है ?

पांच राज्यों के चुनाव खत्म होने के बाद अब सरगर्मी है एग्जिट पोल की। सारे दल और उनके नेता-प्रवक्ता अपनी सरकार बनते देख और दिखा रहे हैं। हारने का तो कोई नाम ही नहीं ले रहा। अब जब सब जीत ही रहे हैं तो हार कौन रहा है? एक बड़ा प्रश्न है ये जिसका जवाब हमारी भोली जनता हर चुनाव में ढूंढ़ती है पर उनके हाथ कुछ नहीं आता। न जाने वो कब समझेगी कि जीते चाहे जो दल, हर बार हारती वही है।

बहरहाल, तमाम एग्जिट पोल का निचोड़ निकाल कर देखें तो भाजपा नि:संदेह फायदे में है। एक पंजाब को छोड़कर, जहां कांग्रेस और आप की टक्कर है और उसे मुंह की खानी पड़ रही है, बाकी राज्यों में वो सबसे बड़े दल के रूप में उभर रही है। पर जनाब, मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड पर नज़र किसकी है, सांसे तो सबकी रोक रखी है उत्तर प्रदेश ने। एग्जिट पोल के बाद यहां की जो तस्वीर सामने आ रही है, उसके मुताबिक भाजपा पहले, सपा-कांग्रेस गठबंधन दूसरे और बसपा तीसरे स्थान पर है। न्यूज़ 24 और आजतक के मुताबिक भाजपा लगभग 300 सीटें जीतकर सरकार बनाने जा रही है, लेकिन शेष सारे चैनल भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन में कांटे की टक्कर बता रहे हैं और इस टक्कर में ये दोनों बहुमत के आंकड़े से दूर हैं। अगर ऐसा होता है तो फिर ‘बहनजी’ की चांदी है क्योंकि तब सरकार बनाने की कुंजी उनके हाथ में होगी।

इन तमाम कयासों के बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का कहना है कि इस बार के एग्जिट पोल का हश्र बिहार जैसा होगा। बकौल राहुल उनका गठबंधन जीत रहा है। राहुल ने जहां एग्जिट पोल्स की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया, वहां सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने तो इन्हें पूरी तरह फर्जी ही करार दे दिया। रामगोपाल ने कहा – ‘मेरे पास सूचना है कि चैनलों ने दबाव में आकर कुछ दिन पहले ऑरिजनल एग्जिट पोल्स को बदल दिया।’

वैसे इस बीच का एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है अखिलेश यादव द्वारा सेक्युलर एकता का पासा फेंकना। एग्जिट पोल में अपने गठबंधन को पिछड़ता देख उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक साथ आना होगा। कहने की जरूरत नहीं कि उनका स्पष्ट इशारा मायावती की बहुजन समाज पार्टी की तरफ है। उधर बसपा का इस प्रस्ताव पर कहना है कि पार्टी पहले नतीजों का इंतजार करेगी। बाकी पार्टियों की तरह भले ही बसपा भी सारी पार्टियों के सफाये और अपनी सरकार बनने का दावा कर रही हो, लेकिन ‘आंखों ही आंखों में इशारे’ को वो भलीभांति समझ रही है।

बहरहाल, इंतजार की घड़ियां खत्म होने को हैं। सबके दावों की असलियत अगले 24 घंटों में सामने आ ही जानी है। समझदारी इसी में है कि हम नतीजों का इंतजार करें और प्रार्थना करें कि जीते चाहे जो भी, बस हमारी महान पर हर मोर्च पर बेबस जनता न हारे।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप 

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बेंगलुरु में भारत की जीत की होली, ऑस्ट्रेलिया के जबड़े से छीनी जीत

बेंगलुरु टेस्ट के चौथे दिन गेंदबाजों के शानदार प्रदर्शन की बदौलत भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 75 रनों से करारी शिकस्त दी। चार टेस्ट मैचों की सीरीज अब 1-1 से बराबर हो गई है। बता दें कि ऑस्ट्रेलिया को जीत के लिए 188 रनों की जरूरत थी और पूरी टीम 112 रनों पर ढेर हो गई। भारत की ओर से आर अश्विन ने विकेटों का छक्का लगाया, जबकि उमेश यादव ने 2 विकेट लिए।

भारत की दूसरी पारी को 274 रनों पर समेटने के बाद सीरीज में लगातार दूसरी जीत के लिए आश्वस्त लग रही ऑस्ट्रेलिया भारतीय गेंदबाजी के आगे एकदम असहाय दिखी। लगा ही नहीं कि ये वही टीम है जिसने अभी-अभी पहले टेस्ट में भारत के विजयरथ को इतने शानदार तरीके से रोका था। अपनी दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया को कभी संभलने का मौका ही नहीं मिला। उसे एक के बाद एक लगातार झटके मिलते रहे। डेविड वॉर्नर (17) और मैट रेनशॉ (5) केवल 22 रन ही जोड़ पाए थे कि ईशांत शर्मा ने रिद्धिमान साहा के हाथों रेनशॉ को कैच आउट कर ऑस्ट्रेलिया का पहला विकेट गिराया। इसके बाद 42 के कुल स्कोर पर अश्विन ने वॉर्नर को एलबीडब्लू आउट किया।

वॉर्नर के आउट होने के बाद मेहमान टीम की पारी को आगे बढ़ाने उतरे कप्तान स्टीव स्मिथ (28) और शॉन मार्श (9) ने तीसरे विकेट के लिए 25 रन जोड़कर टीम को संभालने की कोशिश की, लेकिन उमेश यादव ने 15वें ओवर की अंतिम गेंद पर स्मिथ को एलबीडब्लू कर पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। स्मिथ के बाद उमेश ने शॉन को टिकने नहीं दिया और 74 के कुल योग पर वे भी एलबीडब्लू हो गए।

इसके बाद का काम अश्विन ने पूरा किया। मिशेल मार्श (13) को उन्होंने सस्ते में निबटाया, मैथ्यू वेड (0) को खाता तक नहीं खोलने दिया और चाय के बाद मिशेल स्टार्क को बोल्ड कर चलता किया। अब तो बस औपचारिकता ही शेष थी। ऑस्ट्रेलिया की ढहती पारी फिर नहीं की नहीं संभली।

चलने से पहले भारत की दूसरी पारी में चेतेश्वर पुजारा (92), आजिंक्य रहाणे और लोकेश राहुल (51) की शानदार बल्लेबाजी की चर्चा न करें तो ज्यादती होगी। ये ही वे तीन कारीगर थे जिन्होंने जीत की जमीन तैयार की। और हां, ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी में रविन्द्र जडेजा ने अपनी लाजवाब गेंदबाजी से जिस तरह कहर बरपाया उसे आप कैसे भूल सकते हैं!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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मुख्यमंत्री की लड़ाई में कूदें पर अपना कद न भूलें प्रधानमंत्रीजी!

बसपा सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में हो रहे चुनाव के सातवें चरण का प्रचार खत्म होने से पहले भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी पर जमकर हमला बोला है। खासकर काशी में प्रधानमंत्री के रोड-शो पर उन्हें आड़े हाथों लेते हुए मायावती ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी अब अपनी पार्टी की तरफ से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार बन गए हैं। बकौल मायावती प्रधानमंत्री ने इस हद तक प्रचार में उतर कर लोकतांत्रिक मर्यादाओं को तोड़ने का काम किया है।

बहरहाल, मायावती का दावा है कि बसपा को छठे चरण के चुनावों के बाद ही बहुमत मिल चुका है। उनकी मानें तो भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन में अब दूसरे-तीसरे स्थान की लड़ाई है। मायावती ने कहा कि भाजपा को पता था कि उनकी सरकार नहीं बनने जा रही है, इसलिए नोटबंदी का फैसला कर धन बटोरने में जुट गए। भाजपा को ही नहीं बल्कि सपा-कांग्रेस गठबंधन को भी पता चल चुका है कि वे चुनाव हार चुके हैं।

बसपा सुप्रीमो ने कहा कि भाजपा यूपी चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देख रही थी। वो इसे लोकसभा का मुद्दा बनाकर पूरे देश में ले जाने का मंसूबा बांध रही थी, जो पूरा नहीं होने जा रहा। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को प्रधानमंत्री मोदी का चेला बताते हुए उन्होंने कहा कि गुरु-चेले ने मिलकर इस चुनाव को साम्प्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की, जो सफल नहीं हो पाई।

अब जबकि ‘हमाम’ में बड़े-छोटे सारे दल और सारे बड़े-छोटे नेता नि:संकोच ‘नंगे’ हैं और सबकी भाषा, शैली और अभिव्यक्ति एक-सी हो चली है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किस पर कितना ‘कीचड़’ उछाल रहा है। इसीलिए मायावती ने प्रतिद्वंद्वी दलों को लेकर जो दावे किए हैं या उन पर जो आरोप लगाए हैं उसको बहुत तवज्जो देने की जरूरत नहीं। लेकिन हां, प्रधानमंत्री मोदी (भाजपा के नेता मोदी नहीं) को लेकर उन्होंने जो कुछ कहा है उस पर गंभीर मंथन जरूर होना चाहिए।

देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी यूपी चुनाव में ठीक उसी अंदाज में कूदे हैं जैसे बिहार चुनाव में कूदे थे। बिहार में उन्होंने वैसी ‘शालीनता’ और ‘संयम’ का परिचय नहीं दिया था, जो उन जैसे कद के प्रधानमंत्री से अपेक्षित था। बिहार में उन्होंने रैलियों की झड़ी लगा दी थी, यूपी में भी उन्होंने यही किया। वहां वे जिले-जिले तो पहुंचे ही, दो कदम आगे बढ़कर गली-कूचे तक जाने पर आमादा हो गए। राहुल, अखिलेश और मायावती से वे उन्हीं के तौर-तरीके और उन्हीं की कद-काठी में लड़ते दिखे जो सर्वथा अशोभनीय था। आज अगर मायावती उन्हें मुख्यमंत्री पद का अघोषित उम्मीदवार बताने पर उतर आई हैं तो इसके कारण वे स्वयं हैं। अगर अपने कद का भान आप स्वयं न रखें तो लोग आपके जूते में अपने पांव घुसेरेंगे और आप कुछ नहीं कर पाएंगे, प्रधानमंत्रीजी!

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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नोटबंदी के बाद भी भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था

जी हां, नोटबंदी के बाद भी भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा 28 फरवरी को जारी तीसरी तिमाही और पूरे वर्ष के अग्रिम अनुमान की मानें तो नोटबंदी की वजह से आर्थिक गतिविधियों के बुरी तरह प्रभावित होने की आशंकाएं दरकिनार हो गई हैं। सीएसओ के अनुसार चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7 प्रतिशत रही है, जबकि पूरे वर्ष की वृद्धि का दूसरा अग्रिम अनुमान भी 7.1 प्रतिशत पर पूर्ववत रहा है। बता दें कि इससे पहले जनवरी में नोटबंदी के प्रभाव को शामिल किए बिना जारी पहले अग्रिम अनुमान में भी पूरे वर्ष की वृद्धि का यही आंकड़ा जारी किया गया था।

नोटबंदी के बाद आए जीडीपी के इन आंकड़ों से उत्साहित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे विरोधियों के दुष्प्रचार का करारा जवाब बताया है। यूपी की एक चुनावी रैली में उन्होंने कहा कि नोटबंदी के बाद विपक्ष के लोगों ने आर्थिक विकास चौपट होने, उद्योग-धंधे बंद होने और देश के पूरी तरह पिछड़ने का दुष्प्रचार किया था। नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड के बड़े-बड़े विद्वानों ने नोटबंदी के कारण जीडीपी में दो से चार प्रतिशत गिरावट का दावा किया था लेकिन जीडीपी के ताजा आंकड़ों ने साबित कर दिया है कि ‘हार्वर्ड’ और ‘हार्ड’ वर्क में कितना फर्क है। उन्होंने कहा कि देश के ईमानदार लोगों, किसानों और नौजवानों ने जीडीपी में सुधार के जरिए ‘हार्वर्ड’ और ‘हार्ड वर्क’ वालों की सोच के बीच फर्क जाहिर कर दिया है।

कांग्रेस द्वारा इन आंकड़ों को भ्रामक और संदेहास्पद बताए जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि वे कह रहे हैं कि आंकड़े कहां से आए। मैं कहता हूं कि जो आंकड़े आपकी सरकार में जहां से आते थे, इस बार भी वहीं से आए हैं। देश के ईमानदार लोगों, किसानों और नौजवानों मैं सिर झुकाकर नमन करना चाहता हूं जिन्होंने देश की विकास-यात्रा को कोई आंच नहीं आने दी। उधर वित्तमंत्री अरुण जेटली का कहना है कि अंदाजे से बोलना एक बात है और वास्तविकता दूसरी। मैं पहले भी कह रहा था कि एक्साइज, वैट और कर संग्रह के आंकड़े बता रहे हैं कि अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का बुरा असर नहीं पड़ा है।

 ‘मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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