सूफी संत ‘दौरम’ का नाम जोड़ने के बाद स्टेशन का नाम पड़ा ‘दौरम मधेपुरा’- डॉ۔मधेपुरी

पीएम नरेंद्र मोदी ने किया 16 करोड़ की लागत से दौरम मधेपुरा स्टेशन के पुनर्विकास कार्य का वर्चुअल शिलान्यास। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में स्थानीय सांसद दिनेश चंद्र यादव ने अपने संबोधन में कहा कि अब सुंदर व आकर्षक बनेगा मधेपुरा का दौरम मधेपुरा रेलवे स्टेशन। उन्होंने यह भी कहा कि पीएम ने फाटक संख्या 90 पर बनने वाले ओवर ब्रिज के लिए 80 करोड रुपए की राशि दी है। करोड़ों की योजना से दौरम मधेपुरा स्टेशन की तस्वीर बदलने की उम्मीद बढ़ गई है। सांसद ने पीएम के प्रति आभार जताते हुए कहा कि बनेगा दो मंजिला भवन। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस होगा स्टेशन। जगह-जगह दौरम मधेपुरा लिखा ‘ग्लो साइन बोर्ड’ लगाया जाएगा। इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम से दी जाएगी ट्रेनों की जानकारी। लिफ्ट और एस्केलेटर की भी सुविधाऐं होगीं। सारे कार्य निर्धारित अवधि में पूरे कर लिए जाएंगे। समारोह को रेलवे नोडल पदाधिकारी किशोर कुमार भारती, पूर्व विधायक अरुण कुमार, उपमुख्य पार्षद पुष्प लता कुमारी, भाजपा जिला अध्यक्ष दीपक कुमार, भाजपा प्रदेश मंत्री स्वदेश कुमार, जदयू के प्रदेश महासचिव प्रोफेसर विजेंद्र नारायण यादव आदि ने भी संबोधित किया।

MP Dinesh Chandra Yadav and others at PM Narendra Modi's virtual meeting at Dauram Madhepura Station Campus.
MP Dinesh Chandra Yadav and others at PM Narendra Modi’s virtual meeting at Dauram Madhepura Station Campus.

दौरम मधेपुरा स्टेशन के पुनर्निर्माण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि बात 1353 ई. की है, जब दिल्ली के शासक हुआ करते थे फिरोजशाह तुगलक। ओयनवार शासक को इस क्षेत्र की देखभाल का जिम्मा फिरोज शाह ने दे रखा था। आजू-बाजू के सेन शासक और कर्नाट शासक द्वारा पैदा की गई परेशानियों से निपटने हेतु फिरोज शाह तुगलक ने सेना की एक टुकड़ी के साथ एक सूफी संत ‘दौरामशाह मुस्तकीम’ को भी भेजा था। सब कुछ ठीक करने के बाद सेना जब लौटने लगी तो सूफी संत दौरम ने सेनापति से कहा कि यहां की हरियाली उन्हें बहुत अच्छी लगती है। आप सहमति दें तो यहीं कुटिया बनाकर रह जाऊं। वे यहीं गौशाला के उत्तर संत अवध बिहारी कॉलेज के पास रहने लगे और अपने व्यवहार कुशलता के कारण खूब प्रसिद्धि प्राप्त की। हिंदू-मुस्लिम सबके प्रिय बन गए। उनकी कुटिया सदियों तक ‘दौरम डीह’ के नाम से जानी जाती रही।

कालांतर में 1910 ई. में जब मधेपुरा में सर्वप्रथम रेल आई तो स्टेशन का नाम मधेपुरा रखा गया। परंतु, मधेपुरा के नाम प्रेषित माल डिब्बा कभी ‘मधुपुर’ तो कभी ‘मधेपुर’ चले जाने के कारण रेलवे द्वारा भेजी गई टीम ने इलाके की जनता की सर्वसम्मत राय से उसी सूफी संत दौरम के नाम को जोड़ने की अनुशंसा की और तभी से स्टेशन का नाम “दौरम मधेपुरा” कहा जाने लगा।

बीच-बीच में सृजन दर्पण के रंगकर्मी विकास कुमार के कलाकारों सहित होली क्रॉस, माया विद्या निकेतन, तुलसी पब्लिक स्कूल, किरण पब्लिक एवं ब्राइट एंजेल्स के बच्चे-बच्चियों ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों से समां बांध दिया और खूब तालियां बटोरी। बच्चे-बच्चियों को सांसद महोदय व अतिथियों के हाथों पुरस्कृत भी किया गया। समारोह में नप के पूर्व उपाध्यक्ष व राजद नेता रामकृष्ण यादव, दलित नेता नरेश पासवान, जदयू नेता सत्यजीत यादव, सीनेट सदस्य रंजन यादव, भाजपा नेता अरविंद अकेला, माया के अध्यक्ष राहुल यादव, भाजपा नेता विजय कुमार विमल, डॉ۔नीला कांत, प्रोफेसर सुजीत मेहता, डॉ۔ललन अद्री, पूर्व पार्षद रविंद्र कुमार यादव, नेता क्रांति यादव, बीबी प्रभाकर, योगेंद्र महतो सहित रेलवे अधिकारी आदि व गणमान्यों की गरिमयी उपस्थिति बनी रही।

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लोकप्रिय चिकित्सक डॉ.नारायण अब नहीं रहे

जिले के घैलाढ़ प्रखंड के जागीर गांव के निवासी डॉ.नारायण प्रसाद यादव एक लोकप्रिय एवं हरदिल अज़ीज़ होम्योपैथी डॉक्टर के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके थे। कठिन रोगों के मरीज उनके अनुभव एवं विलक्षण प्रतिभायुक्त इलाज से ठीक होते रहे। डॉ.यादव ने सुपौल जिला के रहरिया अस्पताल एवं सहरसा हॉस्पिटल में 15 वर्षों तक सरकारी चिकित्सक के रूप में अपनी सेवा दी। बाद में नवहट्टा ब्लॉक में सरकारी चिकित्सक रहने के बाद सेवानिवृत्ति की तिथि तक मधेपुरा के सरकारी अस्पताल में कार्यरत रहे। उन्होंने अपनी कुशल चिकित्सीय इलाज के चलते हर जगह भरपूर लोकप्रियता हासिल की।

डॉ.नारायण प्रसाद यादव ने 14 फरवरी सरस्वती पूजा के दिन हार्ट अटैक के कारण पटना के आईजीआईएमएस में अंतिम सांस ली। वे अपने पीछे धर्मपत्नी प्रोफ़ेसर गीता यादव, जो पूर्व में रही जिला परिषद की सदस्या, 8 वर्षों तक बीएन मंडल विश्वविद्यालय की सीनेटर, फाइनेंस कमेटी की मेंबर और वर्तमान में राज्य महिला आयोग की सदस्या हैं, के अतिरिक्त बैंक आफ बडौदा मुंबई में कार्यरत एकमात्र पुत्र प्रीतम कुमार एवं दो पुत्री पूजा शेखर व नीनू यादव को छोड़ 65 वर्ष की उम्र में चिकित्सा जगत को भारी क्षति पहुंचाकर चले गए।

डॉ.नारायण द्वारा चार साल पूर्व मधेपुरा में निजी अस्पताल एवं रिसर्च सेंटर स्थापित किया गया था, जिसका उद्घाटन उन्होंने अपने गुरु समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी द्वारा कराया था।

Dr.Bhupendra Madhepuri inaugurating Narayan H.Research Centre along with Prof.Sachidanand, Shikshak Parmeshwari Prasad Yadav, Dr.Narayan Prasad Yadav with spouse Prof.Geeta Yadav.
Dr.Bhupendra Madhepuri inaugurating Narayan H.Research Centre along with Prof.Sachidanand, Shikshak Parmeshwari Prasad Yadav, Dr.Narayan Prasad Yadav with spouse Prof.Geeta Yadav.

डॉ.नारायण के निधन की जानकारी मिलने पर मधेपुरा के सचेतन नागरिकों एवं उनसे इलाज कराये और ठीक हुए अनगिनत नर-नारियों के बीच शोक की लहर दौड़ गई। टीएमबीयू के पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल, टीपी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर सच्चिदानंद यादव, बीएन मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी, पूर्व सिंडिकेट सदस्य डॉ.परमानंद यादव, पूर्व जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ.अरुण कुमार, सीनेटर डॉ.नरेश कुमार, टीपी कॉलेजिएट के पूर्व प्राचार्य डॉ.सुरेश भूषण, प्रोफेसर सुलेन्द्र कुमार आदि ने शोक व्यक्त करते हुए यही कहा कि उनका कर्म सदा लहराएगा। साथ ही सबों ने ईश्वर से प्रार्थना की भी की कि उनके शोक संतप्त पारिवारिक जनों को इस अपार दुख को सहन करने हेतु धैर्य और साहस दे।

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पूर्व कुलपति प्रो.अमरनाथ सिन्हा के निधन से साहित्य जगत में हुई अपूरणीय क्षति- डॉ.केके मंडल

मधेपुरा की सर्वाधिक पुरानी साहित्यिक संस्थान कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष व पूर्व प्रतिकुलपति डॉ.केके मंडल की अध्यक्षता में प्रखर साहित्यकार एवं कई पुस्तकों के रचनाकार रहे कुलपति प्रो.अमरनाथ सिन्हा के 87वर्ष की उम्र में हुए निधन पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। शोक व्यक्त करते हुए डॉ.मंडल ने कहा कि बीएन मंडल विश्वविद्यालय में प्रो.अमरनाथ सिन्हा अपने तीन वर्षों के कार्यकाल को पूरा करने के दरमियान विश्वविद्यालय को यूजीसी के 2(एफ) एवं 12(बी) से मान्यता दिलाने में महत्व भूमिका निभाई। उन्होंने यह भी कहा कि प्रोफेसर सिन्हा के निधन से एक कुशल साहित्यकार, कर्मठ प्रशासक एवं शिखर समालोचक हमने खो दिया है जो साहित्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

सम्मेलन के सचिव एवं बीएन मंडल विश्वविद्यालय में कुलानुशासक सह कुलसचिव रह चुके डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी साहित्य के स्तंभ व पूर्व कुलपति प्रोफेसर सिन्हा सरीखे मनीषी साहित्यकार के निधन से न केवल मंडल विश्वविद्यालय के लिए बल्कि संपूर्ण प्रदेश और देश के साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है जिसकी निकट भविष्य में भरपाई नहीं की जा सकती। डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि उनकी प्रकाशित पुस्तक हिंदी साहित्य एवं लोक चेतना सहित अन्य कृतियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार व सम्मान से उन्हें सम्मानित किया जाता रहा है।

इस अवसर पर शोकोदगार व्यक्त करने वाले कवि-साहित्यकारों में प्रमुख हैं- पूर्व कुल सचिव प्रोफेसर सचिंद्र, डॉ शांति यादव, डॉ.अरुण कुमार, डॉ विनय कुमार चौधरी, डॉ.विश्वनाथ विवेका, डॉ सिद्धेश्वर कश्यप, डॉ आलोक कुमार, डॉ.रामचंद्र मंडल, प्रोफेसर मणि भूषण वर्मा, सियाराम यादव मयंक, श्यामल कुमार सुमित्र आदि

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बोले मधेपुरी, मां सरस्वती की पूजा हम वसंत में ही क्यों करते हैं?

वसंत उत्सव नहीं, वसंत महोत्सव है। जब प्रकृति में वसंत आता है तो चारों ओर फूल खिलने लगते हैं। पक्षी गीत गाने लगते हैं। आम और महुआ के पेड़ में मंजर लगने लगते हैं। सरसों के फूल सुगंध बिखरने लगते हैं। कोयल कूकने लगती है। हर तरफ बहार ही बहार होता है। सुंदर वातावरण मधुमय हो जाता है, नशीला हो जाता है। वसंत के ऐसे नशीले वातावरण में फिसलना व भटकना लाजिमी हो जाता है।

और फिर जीवन में किशोरावस्था पार कर युवावस्था आती है। युवावस्था भी तो जीवन के नगाड़े की बुलंद आवाज है। जीवन का वसंत काल है। इस उम्र में हाथ कहता है कि पकड़ो तो छोड़ो मत। नजरें कहती हैं जिस सुंदर चीज पर नजर टिक जाए तो उसे हटाओ मत। जीवन के इस वसंत काल में युवजनों के पैर डगमगाने लगते हैं, फिसलने लगते हैं।

इन दोनों वसंतों के बीच सर्वाधिक फिसलन भरी राहों पर युवाओं के पैर नहीं फिसले इसलिए बुद्धि की अधिष्ठात्री वीणापाणि सरस्वती माता की यह कहते हुए पूजा-अर्चना की जाती है कि हमारे मन को संयम और शक्ति प्रदान करो ताकि प्रकृति के रसीले वसंत और जीवन के नशीले वसंत में हमारा पैर स्थिर रहे। हम कहीं भटकें नहीं- ‘सरस्वती मां’ हमारे इस संकल्प को शक्ति दो।

परंतु आजकल होता क्या है? आज के युवजन वैसी पूजा-अर्चना नहीं करते। दिन-रात डीजे बजा-बजाकर भद्दे गीतों पर डांस करते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने में लगे रहते हैं। तभी तो जिला प्रशासन को समाज के गणमान्य लोगों को बुलाकर शांति समिति की बैठक करनी पड़ती है।

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प्रख्यात साहित्यकार पद्मश्री उषा किरण खान के निधन पर शोक

साहित्य के क्षितिज पर बिहार की बेटी पद्मश्री उषा किरण खान के निधन से मानवीय संवेदनाओं के रचनाकारों की कमी होती जा रही है। लोकजीवन के संवेदनशील चितेरा पद्मश्री फणीश्वर नाथ रेणु की गहरी छाप उषा किरण की रचनाओं पर पड़ी है। 11 फरवरी रविवार को दोपहर 2:00 के आसपास पटना मेदांता अस्पताल में हृदयाघात के कारण 78 वर्षीय उषा किरण ने अंतिम सांस ली। निधन के समय उनके एक मात्र पुत्र तुहिन शंकर मौजूद थे। उनके पति रामचंद्र खान (आईपीएस) 2 वर्ष पूर्व ही दिवंगत हो गए थे।

कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन संस्थान के अध्यक्ष व पूर्व प्रति कुलपति डॉ.केके मंडल की अध्यक्षता में स्थानीय साहित्यकारों ने शोक संवेदनाएं व्यक्त की। अपने शोकोदगार में  डॉ.मंडल ने कहा कि प्रख्यात लेखिका उषा किरण के जाने से हिंदी एवं मैथिली साहित्य को भारी क्षति हुई है। सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि पद्मश्री उषा किरण खान बिहार की संवेदनशील रचनात्मक अस्मिता एवं महिला लेखन की बुलंद पहचान थी। उनकी विराट रचना संसार को बाल लेखन से ही पूर्णता मिली। उन्होंने हिंदी और मैथिली में विपुल साहित्य की सर्जना की। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। विदुषी डॉ.शांति यादव ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मशहूर रचनाकार नागार्जुन के शिष्यत्व एवं प्रभाव में उन्होंने साहित्य जगत में 1977 ई. से ही अपना डेग धरा और फिर मुड़कर कभी पीछे नहीं देखी। प्रखर साहित्यकार डॉ.विनय कुमार चौधरी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी कई रचनाओं के अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, उड़िया सहित कई अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हो चुके हैं। शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में कवि व साहित्यकार प्रोफेसर सचिंद्र, डॉ.अरुण कुमार, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.सिद्धेश्वर कश्यप, सियाराम यादव मयंक, डॉ.विश्वनाथ विवेका, डॉ.महेंद्र नारायण पंकज, शंभू शरण भारतीय, प्रमोद कुमार सूरज, राकेश कुमार द्विजराज, श्यामल कुमार सुमित्र आदि। अंत में पद्मश्री उषा किरण खान की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन भी रखा गया।

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महान वैज्ञानिक डॉ.भाभा को भी मिले भारतरत्न- डॉ.मधेपुरी

भारतीय संविधान निर्माता व ‘स्टैचू ऑफ नॉलेज’ कहे जाने वाले डॉ.अंबेडकर एवं लौह पुरुष कहे जाने वाले सरदार पटेल सरीखे अद्वितीय व्यक्तित्व द्वय को मृत्यु के 30-40 वर्षों बाद ‘भारतरत्न’ दिया गया तो क्या फादर ऑफ न्यूक्लियर पावर कहे जाने वाले एवं ‘एटम और पीस’ के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु 24 जनवरी 1966 को जिनेवा जा रहे डॉ.होमी जहांगीर भाभा के एयर इंडिया के बोइंग जहाज के आल्प्स पर्वत से टकराने पर हुई मृत्यु वाले महानतम वैज्ञानिक को भारतरत्न अवश्य ही मिलना चाहिए। समाजसेवी-साहित्यकार एवं विज्ञान वेत्ता डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने भारत सरकार से डॉ.भाभा को भारतरत्न दिए जाने की मांग की है।

डॉ.भाभा 1940 ईस्वी में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी के यशस्वी प्राध्यापक थे। उस पद को छोड़ भारत को न्यूक्लियर पावर में विश्व चैंपियन बनाने हेतु त्यागपत्र देकर भारत आ गए। भारत आकर उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त डॉ. सीवी रमन के बेंगलुरु वाले ‘इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस’ में उनके साथ काम किया। डॉ.भाभा ने 1945 में ‘टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च’ की स्थापना की और उन्हें ही प्रथम निदेशक बनाया गया। 1948 में प्रधानमंत्री नेहरू ने ‘एटमिक एनर्जी कमीशन’ की स्थापना कर डॉ.भाभा को अध्यक्ष बनाया। डॉ.भाभा ने ट्रॉम्बे में एशिया का पहला ‘परमाणु अनुसंधान केंद्र’ स्थापित किया और उनके निर्देशन में अप्सरा, सिरान एवं जरलीना नामक तीन परमाणु ऊर्जा केन्द्रों का निर्माण किया गया और इस प्रकार भारत में परमाणु युग का प्रवेश हुआ। 1962 में डॉ.भाभा ने ‘इलेक्ट्रॉनिक समिति’ की स्थापना की और देश ने उन्हें प्रथम अध्यक्ष भी बनाया। ऐसे यशस्वी वैज्ञानिक डॉ.होमी जहांगीर भाभा को मरने के 58 वर्ष बाद भी तो ‘भारतरत्न’ जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया जाना चाहिए।

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डॉ.स्वामीनाथन को भारतरत्न दिए जाने पर भारतीय किसानों के बीच खुशी की लहर- डॉ.मधेपुरी

करीब बीस सप्ताह पूर्व समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने दिनांक 28 सितंबर, 2023 को तमिलनाडु के मशहूर कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ‘हिंदुस्तान’ के माध्यम से भारत सरकार द्वारा उन्हें भारतरत्न दिए जाने की मांग की थी। आज उन्हें भारतरत्न दिए जाने की घोषणा पर विशेष रूप से भारतीय किसानों के अंतर्मन में खुशियों की लहर दौड़ने लगी है। क्योंकि हरित क्रांति के जनक डॉ.एमएस स्वामीनाथन ने वर्ष 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन अवार्ड ऑफ साइंस एवं 1987 में संसार का पहला “वर्ल्ड फूड प्राइज”, जिसे कृषि का नोबेल प्राइज माना जाता है, प्राप्त कर संसार में भारत को गौरवान्वित किया था। उनकी बदौलत भारत अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनकर विदेशों को अन्न निर्यात भी करने लगा है।

किसानों को सर्वाधिक खुशी इस बात की है कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को मरने के 37 वर्ष, जननायक कर्पूरी ठाकुर को 36 वर्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मृत्यु के 20 वर्ष बाद मिलने वाला भारतरत्न सरीखे सर्वोच्च नागरिक सम्मान डॉ. स्वामीनाथन को निधन के मात्र 135 दिनों के बाद ही भारत सरकार ने दिया, इसके लिए मोदी सरकार को डॉ.मधेपुरी ने साधुवाद दिया है। साथ ही डॉ.मधेपुरी ने भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में संपूर्ण विश्व में शिखर तक पहुंचाने वाले एवं “एटम फॉर पीस” के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु जिनेवा जाने के क्रम में 1962 के ‘एयर क्रैश’ में अपने प्राण की आहुति देने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा को भी भारतरत्न सरीखे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किए जाने की मांग मोदी सरकार से की है।

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रिटायर्ड शिक्षक संघ ने एलएन गोप को दी श्रद्धांजलि

डॉ.लक्ष्मी नारायण गोप भौतिकी के यशस्वी प्रोफेसर और भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में वर्षों विज्ञान के इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेजेज रहकर लोकप्रियता हासिल की। डॉ.गोप ने बीएसएस कॉलेज सुपौल में 36 वर्षों तक अपनी सेवा से छात्र और प्रशासन को संतुष्टि प्रदान की तथा अपने व्यवहार से सबों के दिल में जगह बना ली। दिनांक 31 जनवरी 2024 की देर रात पटना में हृदय गति रुकने के कारण 82 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें दो पुत्र संजय कुमार एवं अजय कुमार, दोनों सेंट्रल स्कूल में प्राचार्य व वरिष्ठ व्याख्याता हैं। उन्हें तीन पुत्रियां हैं। नाती-पोते से भरा पूरा परिवार छोड़कर उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।

उनके निकटतम भौतिकी के प्रोफेसर एवं समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी की अध्यक्षता में बीएनएमयू के सेवानिवृत शिक्षक संघ के महासचिव डॉ.परमानंद यादव, डॉ.सुरेश प्रसाद यादव, प्रो.सचिंद्र, डॉ.पीएन पीयूष, डॉ.उदय कृष्ण, डॉ.अरुण कुमार आदि अन्य शिक्षकों ने उनकी कार्यशैली और लोगों से संबंध बनाने की कला का वर्णन किया और कहा कि उनके जाने से शिक्षा जगत को भारी क्षति हुई है। अंत में सबों ने उनकी आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा।

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भूपेन्द्र बाबू जैसे संत राजनीतिज्ञ को याद करना हम सब का परम कर्तव्य- डॉ.मधेपुरी

स्थानीय भूपेन्द्र चौक पर एनएच106 की अप्रत्याशित ऊंचाई बढाये जाने के बाद नए कलेवर में बने मनीषी भूपेन्द्र नारायण मंडल की प्रतिमा मंडप पर समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी की अध्यक्षता में 1 फरवरी को उनकी 121वीं जयंती भव्य समारोह के रूप में प्रातः 9:30 बजे मनाई गई। मौके पर दो सरकारी एवं तीन गैर सरकारी स्कूल के छात्र-छात्राओं की मौजूदगी में बैनर और बैंड बाजा के साथ भूपेन्द्र बाबू अमर रहे के नारे लगते रहे।

इस अवसर पर उनकी प्रतिमा पर सर्वप्रथम माल्यार्पण करते हुए अध्यक्ष डॉ.मधेपुरी ने कहा कि भूपेन्द्र नारायण मंडल सरीखे संत राजनीतिज्ञ को सदैव याद करना हम सबका परम कर्तव्य है। डॉ.राम मनोहर लोहिया की तरह भूपेन्द्र बाबू भी समाजवादी विचारधारा के अग्रणी महानायक रहे हैं। वे दोनों समस्त समाजवादियों के प्रेरणा स्रोत रहे हैं और आगे भी रहेंगे। डॉ.मधेपुरी ने उन्हें सुलझे सोच का नेक इंसान बताया और कहा कि वे जीवन भर विषमता मिटाने के साथ-साथ सामाजिक समरसता के जरिए छुआछूत की दीवार को गिराने में लगे रहे।

मौके पर साहित्यकार प्रो.सिद्धेश्वर कश्यप एवं पूर्व प्रधानाध्यापक डॉ.सुरेश भूषण ने कहा कि उनका संपूर्ण जीवन एक खुली किताब की तरह है। बीएनएमयू के पूर्व जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ.अरुण कुमार ने कहा कि वे भारतीय संसद में सदैव गरीब गुरबों के हित के लिए लड़ते रहे। डॉ.रामचंद्र यादव, डॉ आलोक कुमार एवं पूर्व उपाध्यक्ष रामकृष्ण यादव तथा शिक्षक नेता परमेश्वरी प्रसाद यादव ने कहा कि भूपेन्द्र बाबू एक ऐसे इंसान थे जिन्हें ना तो हार में कभी गम हुआ और ना जीत में खुशी। ज्ञानदीप निकेतन के निदेशक चिरामणि यादव, अधिवक्ता सीताराम पंडित एवं बीएनएमयू की शोधार्थी जयश्री ने कहा कि भूपेन्द्र बाबू वैसौं की मदद करते थे जिन पर किसी की नजर नहीं पड़ती थी। इसके अलावे संजीव लोचन, सतीश चंद्र, संत कुमार, अमरेश कुमार, भारत भूषण मुन्ना जी, महेंद्र साह, रामकुमार, पप्पू कुमार, संजय मुखिया, समाजसेवीका विनीता भारती, सीपीएम नेता मानव, शिक्षक गणेश कुमार आदि भूपेन्द्र विचारधारा के सभी समर्थकों ने पुष्पांजलि एवं श्रद्धांजलि दी। अंत में समाजसेवी शौकत अली ने धन्यवाद ज्ञापन किया और कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।

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