‘फैशन’ और ‘फैंटेसी’ का पर्याय फ्रांस आज लहूलुहान है। मुंबई के 26/11 हमलों की तर्ज पर बीते शुक्रवार को पेरिस में सात अलग-अलग स्थानों पर हुए सिलसिलेवार हमले के बाद पूरे देश में आपातकाल लागू है। इन हमलों में 158 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए जिनमें 100 की हालत अत्यंत गंभीर बताई जाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस पर ये सबसे बड़ा हमला है। 1940 के बाद पहली बार ‘फैशन की राजधानी’ कर्फ्यू में कराह रही है। इस नृशंस घटना को ‘आईएस’ के आत्मघाती हमलावरों ने अंजाम दिया।
आतंक का पर्याय बन चुका ‘आईएस’ यानि ‘इस्लामिक स्टेट’ आज की तारीख में दुनिया का सबसे खतरनाक आतंकी संगठन है। इस चरमपंथी इस्लामिक संगठन को इससे पूर्व ‘आईएसआईएस’ यानि ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’ के नाम से जाना जाता था। अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है “अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम”। हिन्दी में इसका अर्थ होगा – “इराक एवं शाम का इस्लामी गणराज्य”। शाम सीरिया का प्राचीन नाम है।
आईएसआईएस ने सबसे पहले 2014 में इराक के मोसूल और तिकरीत शहरों समेत बड़े हिस्से पर कब्जा कर दुनिया भर का ध्यान अपनी ओर खींचा था। इराक और सीरिया में सक्रिय इस जेहादी समूह का गठन अप्रैल 2013 में हुआ। इस संगठन की अगुआई अबू बकर अल बगदादी कर रहा है। 29 जून 2014 को उसने खुद को समूचे इस्लामिक जगत का ‘खलीफा’ घोषित किया और मुस्लिम आबादी वाले विश्व के ज्यादा से ज्यादा क्षेत्रों को सीधे अपने राजनीतिक नियंत्रण में लेना उसके संगठन का लक्ष्य बन गया। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बगदादी ने सबसे पहले ‘लेवेन्त’ कहे जाने वाले इलाके को अपने अधिकार में लेने का अभियान चलाया जिसके तहत जॉर्डन, इजरायल, फिलिस्तीन, लेबनान, कुवैत, साइप्रस और दक्षिणी तुर्की का कुछ भाग आता है।
माना जाता है कि बगदादी का जन्म उत्तरी बगदाद के समारा में 1971 में हुआ। 2003 में अमेरिका की अगुआई में हुए आक्रमण के बाद इराक में भड़के विद्रोह में वह शामिल हुआ और 2010 में इराकी अल कायदा के नेता के तौर पर उभरा। बगदादी युद्ध का अत्यंत कुशल रणनीतिकार और जेहादियों को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित करने वाला कमांडर माना जाता है। प्रारम्भ में इस्लामिक स्टेट अल कायदा का ही एक घटक था लेकिन बगदादी के कारण धीरे-धीरे वह उससे ज्यादा आकर्षक, उससे ज्यादा प्रभावी और उससे ज्यादा खतरनाक हो गया। आज बगदादी के इशारे पर काम करने वाले लड़ाकों की संख्या दस हजार से ज्यादा है।
आईएस की गुरिल्ला फौज में इराक और अरब जगत के इस्लामिक कट्टरपंथियों के अलावे चेचेन्या, पाकिस्तान और यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि के इस्लामिक कट्टरपंथी लड़ाके हैं। भारत के कुछ मुस्लिम युवाओं के भी आईएस में शामिल होने की खबरें आई हैं। इराक में इतनी तेजी से आईएस का प्रभुत्व बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण अमेरिकी आक्रमण के बाद इराकी सेना की ताकत और उसके मनोबल में भारी गिरावट भी रहा। वहाँ की सेना की कमर इस कदर टूट चुकी थी कि आईएस के लड़ाकों के सामने वो बेबस नजर आई। आईएस ने बड़ी आसानी से इराकी शहरों पर कब्जा किया, इराकी सेना के हथियारों से अपनी ताकत बढ़ाई और लूटपाट से अकूत दौलत भी अर्जित की। वहाँ के तेल के कुओं पर कब्जा करने से उसकी आर्थिक ताकत में बेहिसाब इजाफा हुआ। आज यह दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है और एक अनुमान के मुताबिक इसका बजट दो अरब डॉलर का है।
फ्रांस की इस घटना से पहले भी आईएस के आतंक और उसकी बर्बरता के कई दृश्य दुनिया के सामने आ चुके हैं। आज दुनिया के ज्यादातर देश आईएस और उसके जैसे अन्य आतंकी संगठनों की जद में हैं। लेकिन ये सिक्के का केवल एक पहलू है। इस सिक्के का दूसरा पहलू अमेरिका जैसे पूंजीवादी देशों की दोहरी नीतियां हैं। आप इतिहास पलट कर देखें तो पाएंगे कि अपने आर्थिक साम्राज्य के विस्तार के लिए अमेरिका जैसे देशों ने ऐसे आतंकी संगठनों को कई बार शह दी है। जब तक उनका स्वार्थ सधता रहा तब तक आईएस जैसे संगठन और अबू बकर अल बगदादी जैसे नेता उनके लिए ‘अच्छे’ जेहादी रहे और जब ऐसे संगठनों की मह्त्वाकांक्षा उनके रास्ते आ गई तो वे ‘बुरे’ हो गए। अभी हाल तक इस्लामिक स्टेट के जेहादी लड़ाके अमेरिकी, ब्रिटिश, फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों और अरब देशों में सउदी अरब और कुवैत जैसे उनके टट्टुओं की शह पर सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद का तख्तापलट करने की खातिर वहाँ जारी गृहयुद्ध में भाग ले रहे थे। आज अगर आईएस इतना ‘खराब’ है तो कल तक उसमें ये देश कौन सी ‘खूबी’ देख रहे थे..?
पूंजी का आतंक हथियार के आतंक से हरगिज कम नहीं। आज दुनिया इन दोनों आतंकों के बीच पिस रही है। ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत में पहले पहल हथियार लेकर नहीं आई थी। उसका उद्देश्य शुरू में केवल व्यापार था। ज्यों-ज्यों उसका स्वार्थ बढ़ता गया, व्यापार के साथ हथियार जुड़ता गया। आईएस जैसे संगठनों को हम जरूर जड़ से खत्म करें लेकिन दुनिया भर में अलग-अलग चेहरों के साथ और पहले से ज्यादा फैल चुकी ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ को ढूँढ़कर उनकी नापाक नीतियों का भी हिसाब करें। तभी ये दुनिया रहने लायक बन सकेगी और बनी रहेगी।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप