प्रबन्ध काव्य ‘सृष्टि का श्रृंगार’ का लोकार्पण

मधेपुरा की ऐतिहासिक धरोहर ‘जीवन सदन’ के सभागार में सुकवि मणिभूषण वर्मा द्वारा रचित स्वामी विवेकानंद की जीवनी पर आधारित प्रबन्ध काव्य ‘सृष्टि का श्रृंगार’ का लोकार्पण किया गया। भव्य लोकार्पण समारोह में उद्घाटनकर्ता के रूप में प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन, अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठतम प्राध्यापक डॉ.के.एन.ठाकुर, समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी, अभिषद सदस्य डॉ.रामनरेश सिंह, पीयू के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ.सुरेंद्र नारायण यादव, साहित्यकार देव नारायण पासवान देव, प्रिंसिपल डॉ.अशोक कुमार आलोक, प्राचार्य श्यामल किशोर यादव एवं सिद्धहस्त मंच संचालक डॉ.के.के.चौधरी आदि ने संयुक्त रूप से ‘सृष्टि का श्रृंगार’ का लोकार्पण किया और किया दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ।

बता दें कि सर्वप्रथम कोसी के स्थापित गीतकार व संगीतकार प्रो.अरुण कुमार बच्चन एवं प्रो.रीता कुमारी द्वारा प्रबन्ध काव्य की पंक्तियों को लयबद्ध कर सुरुचिपूर्ण स्वर के साथ सुधी श्रोताओं के बीच परोसी गयी। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अतिथियों का भरपूर सम्मान मंच की ओर से किया गया। स्वागत भाषण प्रवीण कुमार ने दिया।

मौके पर ‘सृष्टि का श्रृंगार’ पुस्तक की महत्ता पर विस्तार से चर्चा करते हुए रचयिता प्रो.मणिभूषण वर्मा ने कहा कि आज हिन्दी अपने सर्वोच्च शिखर को छू रही है। जहाँ डॉ.सिद्धेश्वर कश्यप ने इस कृति के बाबत यही कहा कि इसमें राग और विराग, कर्म और सन्यास तथा काम और आध्यात्म का समन्वय है वहीं डॉ.विनय कुमार चौधरी ने इस कृति को मधेपुरा की सबसे बड़ी उपलब्धि कहा तथा पुस्तक में वर्णित विवेकानंद के चरित्र को नए विवेकानंद अर्थात युगीन विवेकानंद बताया।

उद्घाटन व लोकार्पण करने के बाद प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन ने अपनेे विस्तृत संबोधन में यही कहा कि स्वामी विवेकानंद के जीवन से हमें सीख लेने की जरूरत है तभी भारतीय युवाओं के अंदर नित नई-नई ऊर्जा का संचार होगा। श्री राजन ने कहा कि अपनी प्रतिभा, पौरुष व पुरुषार्थ के बल पर स्वामी विवेकानंद ने हमेशा भारत की गरिमा को देश और दुनिया में ऊँचाई देने का काम किया है।

जहाँ डॉ.सुरेंद्र नारायण यादव ने लोकार्पित पुस्तक के विभिन्न पक्षों को व्याख्यायित करते हुए इसे हिन्दी साहित्य जगत की विशिष्ट उपलब्धि करार दिया, वहीं डॉ.देव नारायण पासवान देव ने यही कहा कि यह कृति महाकाल, राग भैरव और प्रेम का समन्वय है।

यह भी जानिए की अध्यक्षता कर रहे डॉ.के.एन. ठाकुर सहित प्राचार्य डॉ.ए.के.आलोक व प्रो.श्यामल किशोर यादव एवं डॉ.रामनरेश सिंह व प्रो.शचिंद्र ने भी जहाँ इस कृति के प्रति उद्गार व्यक्त किया वहीं समाजसेवी डॉ.मधेपुरी ने धन्यवाद देने के क्रम में कौशिकी के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ सहित उनके गुरु परमेश्वरी प्रसाद मंडल दिवाकर एवं इंदुबाला सिन्हा व तारकेश्वर सिन्हा आदि को मणिभूषण वर्मा का मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि लगभग 30 वर्षों से सुकवि मणिभूषण वर्मा की साहित्यिक प्रतिभा की गहराई को जानने के बाद से वे भी उन्हें निरंतर उत्साहित एवं प्रोत्साहित करते रहे हैं। डॉ.मधेपुरी ने सुकवि वर्मा को इस धरती का सफल शिक्षक, साहित्य साधक व सुकवि बताया। अतिथियों सहित मधेपुरा का नाम रोशन करने वाली बेटियों प्रो.रीता कुमारी, अधिवक्ता संध्या कुमारी, श्वेता कुमारी, प्रो.गणेश प्रसाद यादव, प्रो.शंभू शरण भारतीय, दशरथ प्रसाद सिंह, सुपौल से आए विश्वकर्मा जी, डॉ.अरविंद, डॉ.आलोक आदि को धन्यवाद देते हुए डॉ.मधेपुरी ने कहा कि चन्द पंक्तियाँ ही किसी कवि को अविस्मरणीय बना देती हैं….. वैसी ही हैं- “सृष्टि का श्रृंगार”  की ये पंक्तियाँ-

कितना भी हो तमस-जाल आलोक निकल आता है।

अंधकार को चीर धरा को उज्ज्व्ल कर जाता है।।

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