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छठ गीतों की अमर आवाज बनी रहेगी शारदा सिन्हा

स्वर शोभिता महाविद्यालय, मधेपुरा के परिसर में स्मृतिशेष लोक गायिका डॉ.शारदा सिन्हा के निमित्त आयोजित श्रद्धांजलि सभा में समाज सेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि बिहार कोकिला पद्मभूषण डॉ. शारदा सिन्हा को छठ गीत के लिए ही प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उन्हीं की मधुर जानी-पहचानी आवाज के चलते लोकल से ग्लोबल हो गया छठ। तभी तो छठ मैया ने छठ के ही दिन अपनी बेटी को अपने आंचल में समेट लिया। डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि छठ गीतों की अमर आवाज बनी रहेगी डॉ.शारदा सिन्हा। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी, मगही, वज्जिका, अंगिका आदि कई भाषाओं में छठ, शादी, फिल्मों एवं संगीत समारोहों में भी अपनी मधुर आवाज दी।

इस अवसर पर स्वर शोभिता महाविद्यालय की निदेशिका डॉ.हेमा कश्यप ने अध्यक्षता करते हुए पुष्पांजलि एवं श्रद्धांजलि अर्पित की। डॉ.कश्यप ने कहा कि बिहार कोकिला शारदा सिन्हा सदा-सदा के लिए छठ संगीत का पर्याय बनी रहेगी। प्रो.अरुण कुमार बच्चन ने कहा कि उनकी आवाज के बिना छठ महापर्व अधूरा रहता है। प्रो.रीता कुमारी ने कहा कि कोसी की बेटी शारदा सिन्हा का गांव ‘हुलास’ छठ के दिन रहेगा सबसे अधिक उदास। मौके पर संगीत शिक्षिकाएं शशि प्रभा जायसवाल, रेखा यादव, पुष्प लता, चिरामणि यादव, रोशन कुमार, सुरेश कुमार शशि, हर्षवर्धन सिंह राठौड़, रंगकर्मी विकास कुमार सहित स्वर शोभिता के छात्रों ने भी शोकोदगार व्यक्त करते हुए यही कहा कि संगीत जगत में अभूतपूर्व योगदान के लिए इन्हें पद्मश्री व पद्मभूषण जैसे पद्म सम्मानों से सम्मानित किया गया। अंत में डॉ.शारदा सिन्हा की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया

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नहीं रहे राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत शिक्षक व प्रखर साहित्यसेवी डॉ.महेंद्र नारायण पंकज

1. *बीते चंद दिनों से थे बीमार, दर्जनों पुस्तक लिखीं*

2. *ताजिंदगी रचनारत रहे पंकज*

3. *अंतिम रचना कहानी संग्रह “एक युद्ध”*

 

हिंदी साहित्य के प्रति समर्पित जुझारू साहित्यसेवी एवं राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत 72 वर्षीय शिक्षक डॉ.महेंद्र नारायण पंकज नहीं रहे। 3 नवंबर 2024 (रविवार) को प्रातः 9:00 बजे दुनिया को अलविदा कह दिया। बीते चंद दिनों से वे बीमार चल रहे थे। उन्होंने अंतिम सांस निज गांव भतनी में ली। आरंभ में उनका साहित्यिक कर्मक्षेत्र प्रगतिशील लेखक संघ रहा था। परंतु, जुझारू साहित्यसेवी होने के चलते उन्होंने उस संघ से अलग होकर ‘राष्ट्रीय जन लेखक संघ’ की स्थापना की जिसका केंद्रीय कार्यालय डॉ۔मधेपुरी मार्ग, वार्ड नंबर- 1, मधेपुरा में अवस्थित है। राष्ट्रीय महासचिव के रूप में उन्होंने भारत के 13 राज्यों में जन लेखक संघ की स्थापना की एवं निकटवर्ती तीन अन्य देशों- नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश में भी विस्तारित किया। उन्हें अंतरराष्ट्रीय जन लेखक संघ का महासचिव भी बनाया गया। उन्होंने दिल्ली में राष्ट्रीय जन लेखक संघ के कई सम्मेलन आयोजित किये और हाल ही में वहां एक कार्यालय भवन भी बनाया। पिछले महीने यानी 20 अक्टूबर 2024 को बिहार राज्य राष्ट्रीय जन लेखक संघ का सम्मेलन राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ भवन में आयोजित कर सर्वाधिक सदस्यों को सम्मानित भी किया। वे हिंदी साहित्य के विकास के लिए अपना तन-मन लगाते रहे। साथ ही वेतन एवं भविष्य निधि से व्यक्तिगत राशि निकालकर भी लगा दिया करते थे। साहित्य सेवा के लिए मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने उन्हें 50 हजार रुपये नगद राशि के साथ प्रशस्ति पत्र देकर हाल ही में सम्मानित किया है।

चार भाई उपेंद्र, महेंद्र, शैलेंद्र और अखिलेंद्र में डॉ.महेंद्र नारायण पंकज दूसरे नंबर पर रहकर भी सबसे पहले ही दुनिया को अलविदा कह दिया। इन्हें दो पुत्र नीरज और नवीन एक इंजीनियर एवं दूसरे शिक्षक हैं। एक पुत्री है और दामाद बैंक मैनेजर हैं। नाती-पोते से भरा-पूरा परिवार छोड़कर वे रविवार को ही 3:00 बजे अपराह्न में पंचतत्व में विलीन हो गए। बड़े पुत्र नीरज ने उन्हें मुखाग्नि दी।

अवशेष रह गई उनकी रचनाएं- युग-ध्वनि (कविता संग्रह), अपमान (कहानी संग्रह), क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद (प्रबंध काव्य), एक युद्ध (कहानी संग्रह)…… आदि सहित मधेपुरा निवासी उनके निकटतम डॉ. गजेंद्र कुमार,  राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष जो उन्हें साहित्य जगत में जीवित रखेंगे।

उनके निधन का समाचार सुनते ही मधेपुरा के लेखक, कवि एवं साहित्यकार कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ.केके मंडल, पूर्व प्रतिकूलपति एवं सचिव डॉ.भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी को अपनी संवेदना प्रेषित करते हुए कौशिकी के सदस्य डॉ.शांति यादव, डॉ. अरुण कुमार सहित समस्त साहित्यकार पूर्व कुलसचिव प्रो.सचिंद्र महतो, पूर्व प्राचार्य प्रो.सच्चिदानंद यादव, मणि भूषण वर्मा, सियाराम यादव मयंक, डॉ.आलोक कुमार, डॉ.विनय कुमार चौधरी, डॉ.बीएन विवेका, डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप, पूर्व आचार्य डॉ.सुरेश भूषण, डॉ.शेफालिका शेखर, राकेश कुमार द्विजराज आदि ने छठ पूजा के बाद उनके प्रति संवेदना अर्पित करने के निमित्त एक श्रद्धांजलि सभा बुलाने हेतु अनुरोध किया है।

 

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नए डीएम को मधेपुरा के इतिहास-भूगोल से अवगत कराया डॉ.मधेपुरी ने

जिलाधिकारी तरनजोत सिंह (भाप्रसे) से शनिवार को मिलकर प्रसिद्ध समाजसेवी-शिक्षाविद प्रो.(डॉ.)भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने नव पदस्थापित डीएम को मधेपुरा का परिचय कराते हुए क्रांतिवीर “रासबिहारी लाल मंडलः पराधीन भारत में स्वाधीन सोच” वाली स्वलिखित पुस्तक भेंट की। डॉ.मधेपुरी ने नए डीएम को मधेपुरा का संक्षिप्त इतिहास बताते हुए कहा कि ब्रिटिश हुकूमत में बंगाल प्रेसीडेंसी के तत्कालीन भागलपुर जिला अंतर्गत 1845 ईस्वी. में मधेपुरा को अनुमंडल का दर्जा दिया गया था। तब से 25 वर्षों तक सुपौल और सहरसा मधेपुरा अनुमंडल के प्रशासनिक क्षेत्र अंतर्गत ही रहा। वर्ष 1870 में सुपौल और 1954 में सहरसा को अनुमंडल बनने का अवसर मिला। बावजूद इसके सहरसा और सुपौल में वर्षों पूर्व से केंद्रीय विद्यालय कार्यरत है,  परंतु मधेपुरा को अब तक केंद्रीय विद्यालय नहीं है।

मधेपुरा जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज के एथिकल कमिटी के अध्यक्ष होने के नाते डॉ.मधेपुरी ने डीएम से यह भी कहा कि वहां पर जेएनकेटी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, बीपी मंडल इंजीनियरिंग कॉलेज एवं बीएनएमयू नॉर्थ कैंपस में हजारों-हजार छात्र-छात्राएं एवं मरीज व उनके परिजनों की अहर्निश भीड़ लगी रहती है। वहां एक पुलिस चौकी होने की सहमति हेतु डीएम ने हामी भरी। इसके अलावे डॉ.मधेपुरी ने युवाओं के लिए बीएन मंडल स्टेडियम में मिट्टी भरने से लेकर पानी निकासी व दो अतिरिक्त हाई मास्ट लाइट हेतु तथा बच्चों के लिए चिल्ड्रन पार्क के जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण हेतु विस्तार से चर्चाएं की।

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पानी टंकी चौक से पश्चिमी बाईपास रोड तक जाने वाली सड़क जो पूर्णत: वार्ड नंबर- 20 और अंशतः वार्ड नंबर- 12 एवं वार्ड नंबर- 9 से सटी है, जर्जर हो चुकी है। वाहनों के परिचालन की कठिनाई से अधिक बुजुर्गों एवं वरिष्ठ नागरिकों का पैदल चलना भी मुश्किल होता जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी तान्या कुमारी द्वारा उस रोड की 20 फीट चौड़ाई के साथ ढलाई का  टेंडर भी किया गया है। जानकारी प्राप्त होते ही वार्ड नंबर- 20 के पूर्व वार्ड आयुक्त सह उपाध्यक्ष व समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस सड़क के बनने से शहर में जाम की समस्या कम होगी। साथ ही सदर अस्पताल से पूर्व की भांति सभी एंबुलेंस मरीज लेकर इसी मार्ग से सहरसा या सुपौल होते हुए पटना के लिए सायरन बजाते हुए निकलने लगेंगे, जो आजकल रोड के जर्जर होने के कारण बंद है। डॉ۔मधेपुरी ने कार्यपालक सहित पूरी टीम को साधुवाद देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार प्रदूषण मुक्त सड़क निर्माण कर मेन रोड को जाम की समस्या से तथा सदर अस्पताल के मरीजों के एम्बुलेंसों को रुकावट से मुक्ति दिलाने में तेजी करें।

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पिता ने दी समाज सेवा की सीख

शहर के जाने-माने समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने बताया कि अपने पिता स्मृतिशेष नत्थन प्रसाद मंडल के दिखाये मार्ग पर चलकर ही इस मुकाम तक पहुंचा हूं। पिताश्री मुझे हमेशा यही सिखाते थे कि कर्म ही मनुष्य को ऊंचाई प्रदान कराता है। सकारात्मक सोच एवं उच्च विचारों के साथ जीवन में आगे बढ़ने को कहते रहे थे। वे यह भी कहा करते कि जीवन के हर मोड़ पर मुश्किलें आती हैं, परंतु उन मुश्किलों का समाधान और निदान खुश रहकर तलाशना चाहिए। उनका कहना था कि हर समस्या का समाधान होता है। उन्हीं के बताएं मार्ग पर चलकर मैंने एक सफल शिक्षक के साथ-साथ बीएन मंडल विश्वविद्यालय में विकास पदाधिकारी, परीक्षा नियंत्रक, कुलानुशासक व कुलसचिव आदि पदों को प्राप्त किया है। यहां तक कि महामहिम राष्ट्रपति भारतरत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का करीबी भी बन गया हूं। भले वे आज मेरे साथ नहीं हैं, परंतु उनके दिखाएं मार्ग पर चलकर आज भी मैं लोगों की सेवा में लगा रहता हूं। मैं अपने पिताश्री एवं अन्य पितरों के प्रति जल तर्पण की जगह निरंतर मन तर्पण कर रहा हूं।

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डॉ.मधेपुरी ने सांसद पप्पू यादव के पिता को दी श्रद्धांजलि

मधेपुरा के पूर्व सांसद व पूर्णिया लोकसभा के वर्तमान लोकप्रिय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के पिता एवं सुपौल के पूर्व सांसद व छत्तीसगढ़ से वर्तमान में राज्यसभा सांसद रंजीत रंजन के समाज सेवी ससुर 84 वर्षीय चंद्र नारायण यादव के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि वर्ष 1975 में बीएन मंडल वाणिज्य महाविद्यालय निर्माण काल में उनके सहयोग तथा बीएन मंडल प्रतिमा अनावरण एवं विश्वविद्यालय निर्माण में सिंहेश्वर विधायक के रूप में पप्पू यादव के सहयोग को वे सदा याद करते रहेंगे। डॉ.मधेपुरी ने इस परिवार की समाज सेवा को याद करते हुए उनके पिताश्री के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की और यही कहा-

पीकर कौन आया है यहां आवेहयात

बनी है ये दुनिया एक रोज जाने के लिए।

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हिंदी दिवस पर साहित्यकार मणि भूषण और मयंक होंगे कौशिकी द्वारा सम्मानित

कौशिकी क्षेत्र हिंदी साहित्य सम्मेलन संस्थान कोसी क्षेत्र में आजादी के बाद से ही साहित्यिक रोशनी बिखेरती आ रही है। संस्थापक अध्यक्ष युगल शास्त्री प्रेम की एक खंड काव्य “साधना” प्रयाग विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती थी। बाद के अध्यक्ष हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ की पुस्तक “अंग लिपि का इतिहास” तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर में पढ़ाई जाती है। संस्थान के वर्तमान सचिव डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी की पुस्तक “छोटा लक्ष्य एक अपराध है” को झारखंड सरकार द्वारा छठे वर्ग में ‘प्रेरणा के बीच’ नाम से पढ़ाई जाती है। कोसी के उसी संस्थान कौशिकी द्वारा 14 सितंबर यानी हिंदी दिवस- 2024 को स्थानीय दो प्रखर साहित्यकारों प्रो.मणि भूषण वर्मा जिनकी चार पुस्तकें- सृष्टि का श्रृंगार, सुबह की प्रतीक्षा, धुएं के देश में और पीड़ा से भरी प्रार्थना जैसी धारदार रचनाएं क्रमशः महाकाव्य, खंडकाव्य, मुक्तक और जीत के रूप में शुमार की जाती है। वहीं सेवानिवृत प्रधानाध्यापक सियाराम यादव मयंक विशुद्ध गजलकार हैं, की गजल की चार पुस्तकें- मोहब्बत के चिराग, गुले-चमन आदि प्रकाशित हो चुकी हैं। वे अब तक विभिन्न राज्यों के 75 से अधिक मंचों पर सम्मानित हो चुके हैं। जिनमें डॉक्टर अंबेडकर फैलोशिप सम्मान, नई दिल्ली से लेकर हिंदी साहित्य के विश्वाकाश में चमकते सूर्य सम्मान- 2024 (मध्य प्रदेश) भी शामिल है।  इन दोनों साहित्यकारों का सारस्वत सम्मान अध्यक्ष प्रो.(डॉ.) केके मंडल पूर्व प्रतिकुलपति, टीएमबीयू द्वारा किया जाएगा। यह जानकारी सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने दी।

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देवेंद्र धाम टेंगराहा के निर्माता व पूर्व कृषि पदाधिकारी दिगंबर यादव नहीं रहे

मधेपुरा के शहीद चुल्हाय मार्ग पर अवस्थित टेंगराहा के दिगंबर प्रसाद यादव का निवास जहां कभी लालू प्रसाद व रावड़ी देवी सरीखे दो-दो मुख्यमंत्री रहकर चुनाव लड़ा करते वहीं आज सबेरे से मधेपुरा के गणमान्यों, लायंस क्लब के सदस्यों, समाजसेवियों व शिक्षाविदों की भीड़ उनके अंतिम दर्शन को पहुंचती रही। कृषि पदाधिकारी रह चुके 85 वर्षीय दिगंबर बाबू ने लगभग 10 दिनों से लिवर इन्फेक्शन से संघर्ष करते हुए सहरसा के एक प्राइवेट क्लीनिक में दिनांक 10 सितंबर के तड़के 3:30 बजे एक मात्र पुत्र रौशन, पुत्रवधू प्रीति एवं पुत्रियों-परिजनों के बीच अंतिम सांस ली।

समाजसेवी- साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी, डॉ.अरुण कुमार, डॉ.आलोक कुमार, मधेपुरा कॉलेज के प्राचार्य डॉ.अशोक कुमार, शिवनंदन प्रसाद मंडल विधि महाविद्यालय के प्राचार्य सत्यजीत यादव, प्रोफेसर प्रज्ञा प्रसाद, समाजसेविका विनीता भारती, डॉ.अमित आनंद, पूर्व मुखिया अरविंद कुमार, इंजीनियर सत्येंद्र कुमार, डीएस अकैडमी के निदेशक विमल किशोर गौतम उर्फ ललटू जी, दिवाकर कुमार, चंदन कुमार, मनोज कुमार, शिवनाथ यादव, लाॅयन इंद्रनील घोष, विकास सर्राफ, राजू ,राहुल आदि ढेर सारे लोगों ने उनके पार्थिव शरीर का अंतिम दर्शन किया और माल्यार्पण व पुष्पांजलि की। आज ही दिन के लगभग 3:00 बजे टेंगराहा निवासियों की भीड़ के बीच देवेंद्र धाम के समीप उनके पुत्र रोशन कुमार ने मुखाग्नि दी और वे पंच तत्व में विलीन हो गये।

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रासबिहारी मधेपुरा के अस्तित्व बोध के लिए बेहद जरूरी- डॉ.मधेपुरी

स्थानीय एवं ऐतिहासिक रासबिहारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में समाज सुधारक व पराधीन भारत में स्वाधीन सोच रखने वाले क्रांतिवीर रासबिहारी लाल मंडल की 107वीं पुण्यतिथि मनाई गई। सर्वप्रथम उनके पौत्र प्रो.प्रभाष चंद्र यादव, प्रपौत्र डॉ.ऐके मंडल, समाजसेवी-साहित्यकार डॉ۔भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी एवं अन्य अतिथियों ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि की। प्रधानाध्यापक संजीव कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में कार्यक्रम का श्री गणेश अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

मुख्य वक्ता के रूप में समाजसेवी-साहित्यकार एवं “रासबिहारी लाल मंडल: पराधीन भारत में स्वाधीन सोच” पुस्तक के लेखक प्रो۔(डॉ.) भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि रासबिहारी लाल मंडल वह नाम है जो मधेपुरा के संपूर्ण परिचय के लिए आवश्यक ही नहीं बल्कि मधेपुरा के अस्तित्व बोध के लिए बेहद जरूरी भी है। वे बने-बनाये  पदचिन्हों पर कभी नहीं चले बल्कि स्वयं के द्वारा पदचिन्हों को तैयार कर चलते रहे। डॉ۔मधेपुरी ने विस्तार से उनकी निर्भीकता, समाज सुधारवादी प्रवृत्ति और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने की क्षमता की चर्चा की। उन्होंने कहा कि इसी कारण उनके परम मित्र दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर प्रसाद सिंह उन्हें “तिरहुत का शेर” कहकर पुकारा करते थे।

कमलेश्वरी विंध्येश्वरी महिला महाविद्यालय के सचिव प्रो۔ प्रभाष चंद्र यादव, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ۔ऐके मंडल, विज्ञान शिक्षक राजेंद्र प्रसाद यादव आदि ने कहा कि वे जीवन भर गरीबों, शोषितों और वंचितों की राह सजाते रहे। अंग्रेजों के सामने कभी नहीं झुके। वे हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत के अलावे बांग्ला, उर्दू, फारसी और फ्रेंच जैसी भाषाओं के भी ज्ञाता थे। विद्यालय के शिक्षक अमित कुमार सहित अन्य शिक्षकों एवं छात्रों ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वे पढ़ने-लिखने में व्यस्त रहते थे। उनके मुरहो गांव में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और बंगला के चार-अखबार आते थे। वे “भारत माता का संदेश” पुस्तक की भी रचना की थी।

स्कूल के छात्रों के बीच पेंटिंग कंपिटीशन एवं क्विज कंपिटीशन कराया गया जिसमें रासबिहारी बाबू का चित्र ज्यादातर लड़को ने बनाया। उनमें विवेक कुमार प्रथम, आयुष कुमार द्वितीय एवं ओम कुमार तृतीय स्थान प्राप्त किया। इन्हें मेडल और ज्ञानवर्धक पुस्तकों द्वारा पुरस्कृत किया गया। क्विज कंपिटीशन में 12 लड़कों ने भाग लिया जिनमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय ग्रुप को मेडल व कलम देकर पुरस्कृत किया गया।

अंत में शिक्षिका माधुरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया और मंच संचालन स्काउट एंड गाइड आयुक्त जयकृष्ण प्रसाद यादव ने किया।

 

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बीपी मंडल के जीवन की प्रमुख घटनाएं

बिंध्येश्वरी प्रसाद मंडल को दुनिया बीपी मंडल के नाम से जानती है। मुरहो के जमींदार और अंग्रेजों से निर्भीकता पूर्वक लड़ने वाले बाबू रास बिहारी लाल मंडल के तीन पुत्र रहे हैं- भुवनेश्वरी प्रसाद मंडल, कमलेश्वरी प्रसाद मंडल और सबसे छोटे सामाजिक न्याय के पुरोधा बिंध्येश्वरी प्रसाद मंडल। पिछड़ा वर्ग आयोग- 2 के अध्यक्ष बने बीपी मंडल। दुनिया मंडल कमीशन के रूप में उन्हें सदा याद करती रहेगी। वे प्रतिभा संपन्न थे और उन्हें विरासत में निर्भीकता मिली थी। वे अंग्रेजी ऑनर्स के छात्र रहते हुए देश सेवा में कूद पड़े।

बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त 1918 है और जन्म स्थान कबीर की नगरी काशी, उत्तर प्रदेश है। उनकी शादी 1937 ईस्वी में सीता देवी के साथ हुई। उन्हें पांच पुत्र और दो पुत्रियाँ हुई। 1945 से 1951 तक मधेपुरा में ऑनरेरी मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत रहे। वे तीन बार विधायक चुने गए- 1952-57, 1962-67 और 1972-75। वे एक बार 1968 में एमएलसी भी बने।

बीपी मंडल लोकसभा के सांसद भी तीन बार चुने गए- वर्ष 1967-68, 1968-71 और 1977-80। वे 1967-68 में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री बने। अल्पकाल के लिए ही सही वे 47 दिनों के लिए बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिनकी प्रशासनिक क्षमता की गूंज आज भी सचिवालय के गलियारे में गूंजती हुई सुनाई देती है। वे एक वर्ष 8 महीना 22 दिनों तक घड़ी की सुई की तरह बिना रुके कश्मीर से कन्याकुमारी तक और राजस्थान से बंगाल की खाड़ी तक सभी धर्मों की 3743 जातियों को रेखांकित कर सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ों की सूची बनाई और उन्हें 27% आरक्षण देने की अनुशंसा की। उन्होंने 31-12-1980 को मंडल रिपोर्ट की प्रतियां तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को समर्पित किया। फरवरी 1981 के 23 तारीख को मधेपुरा के सोशल क्लब में बीपी मंडल का भव्य नागरिक अभिनंदन तत्कालीन नगर पालिका उपाध्यक्ष डॉ۔भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। बिहार स्टेट सिटिजन काउंसिल के डिप्टी चेयरमैन रहते हुए उन्होंने 13 अप्रैल 1982 को पटना में अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार पैतृक गांव मुरहो में किया गया।

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