खुद को संवारेंगे या संस्कृति को सहेजेंगे संसद सदस्य ?

भारत अपने आप में एक महत्वपूर्ण विश्व विरासत है | विश्व विरासत की सूची में सांस्कृतिक संपदा के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र है भारत | भारत के लिए अपनी संस्कृति को हर हाल में सहेजकर तथा सम्मान के साथ बचाकर रखना अपेक्षित है | परंतु, भारतीय संसद के सदस्यगण अपनी संस्कृति को सहेजने के बजाय खुद को नाना प्रकार की सुविधाओं से लैस करने एवं सँवारने में लगे रहते हैं |

तभी तो प्रेम व भाईचारे वाले त्यौहार जिसे आम लोगों द्वारा भी उमंग के साथ खुशियाँ बांटने वाला पर्व ‘होली’ कहकर संबोधित किया जाता है तथा मथुरा-वरसाने की वह ‘होली’ जो परम को भी प्रिय है | बावजूद इसके हमारे संसद सदस्यों की अवहेलना के चलते केंद्रीय डाक विभाग द्वारा आजादी के बाद से आज तक कोई डाक टिकट ‘होली’ को लेकर जारी नहीं किया गया | जबकि दक्षिण अमेरिका का ‘गुयाना’ दुनिया का एकलौता ऐसा देश है जिसने ‘होली’ पर लगभग 50 वर्ष पूर्व (26 जनवरी 1969) ही चार डाक टिकटो का खूबसूरत सेट जारी किया था जिसमें राधा-कृष्ण को होली खेलते हुए तथा रंग-गुलाल से बचते-बचाते हुए दिखाया गया है |

बता दें कि यह कितनी अफसोस की बात है कि जो भी त्यौहार यानी ‘होली, ईद….. आदि हमारे देश में इतना अहम हैं, उन पर संसद-सदस्यों द्वारा अभी तक ध्यान नहीं दिये गये हैं और ना ही डाक टिकटें जारी किये गये हैं  | अलबत्ता एक दो के अलाबे सभी सांसद सदस्यगण वेतन-भत्ता व अन्य सारी सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए सदैव ‘कागचेष्टा वकोध्यानंम….’ को भी मात देने में लगे रहते हैं बल्कि संस्कृति भांड़ में जाय तो जाय…… उसकी कभी चिंता नहीं करते |

हाँ ! 10 वर्षों की सतत मांग के बाद ही भारत में दीपावली पर 7 अक्टूबर 2008 को तीन डाक टिकट जारी किए गये | इसमें भी गुयाना हमें पीछे छोड़ दिया | क्योंकि , गुयाना लगभग 30 वर्ष पूर्व ही दिपावली पर चार टिकट जारी कर दिये थे जिसमें महालक्ष्मी के साथ दीप दान का चित्र बना है |

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