हिन्दी को उसका मान और स्थान देने के लिए केन्द्र का बड़ा कदम

‘अच्छे दिन’ को लेकर केन्द्र की मोदी सरकार ने कई वादे किए हैं। उनमें कितने पूरे हुए, कितने पूरे होंगे और कितने केवल कागजों में रह जाएंगे ये बहस का विषय हो सकता है लेकिन राष्ट्रभाषा हिन्दी को उसका मान और स्थान देने के लिए वर्तमान सरकार जो कुछ कर रही है वह स्वागतयोग्य है। देश और विदेश के मंचों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दी को लेकर अपनी जैसी सोच और अपनी सरकार की जैसी इच्छाशक्ति दिखाई है उससे हिन्दी के भविष्य को लेकर एक उम्मीद जरूर बंधती है।

केन्द्र सरकार ने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देश दिया है कि कार्यालय में पत्राचार के दौरान सरल और बोली जाने वाली हिन्दी ही लिखी जाए। अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि जरूरत पड़ने पर ट्रांसलेशन टूल का भी इस्तेमाल करें। सरकारी भाषा सचिव गिरीश शंकर ने केन्द्रीय मंत्रालयों के सचिवों समेत वरिष्ठ अधिकारियों को इस संबंध में एक महत्वपूर्ण पत्र भेजा है। इसमें लिखा गया है कि सभी पत्र और आदेश सरल और बोली जाने वाली हिन्दी में लिखें और छोटे वाक्यों का इस्तेमाल करें।

भाषा सचिव ने पत्र में लिखा है कि अगर जरूरत पड़े तो हिन्दी में लिखने के लिए गूगल वॉइस टाइपिंग एप्लिकेशन का भी प्रयोग करें। केन्द्र जल्द ही पाँच लाख शब्दों का ऑनलाइन ट्रांसलेशन टूल लाने जा रहा है। इसका इस्तेमाल भी हिन्दी सीखने के लिए किया जा सकता है।

बता दें कि आधिकारिक भाषा के मसले पर 8 जनवरी को गिरीश शंकर की अध्यक्षता में 20 मंत्रालयों की एक रिव्यू मीटिंग हुई। इसमें पता चला कि लगभग सभी मंत्रालयों में करीब-करीब सौ प्रतिशत लोग हिन्दी बोल और समझ सकते हैं। लेकिन कई मामलों में आधिकारिक पत्राचार में हिन्दी का प्रयोग 12 प्रतिशत से भी कम है। शंकर ने मीटिंग में इस बात पर बल दिया कि वरिष्ठ अधिकारियों को हिन्दी में बातचीत या काम करना चाहिए ताकि नीचे के अधिकारियों को प्रोत्साहन मिले। उन्होंने हिन्दी के इस्तेमाल को संवैधानिक दायित्व बताते हुए अधिकारियों से रोज के काम में हिन्दी का प्रयोग करने को कहा था और अब इसी आलोक में पत्र भी भेजा है।

हिन्दी को लेकर अब तक की सभी सरकारों ने कुछ-ना-कुछ किया है। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए ‘दिवस’, ‘सप्ताह’ या ‘पखवाड़ा’ मनाना कोई नई बात नहीं। लेकिन हिन्दी के लिए केन्द्र ने जो नए निर्देश दिए हैं उसमें एक अलग किस्म की ‘गंभीरता’ है। अब से पहले इतने ‘व्यावहारिक’ निर्देश नहीं दिए गए थे। जब तक हम कार्यालयी हिन्दी को उबा देने की हद तक लम्बे व जटिल वाक्यों और अनावश्यक ‘शास्त्रीयता’ से मुक्त नहीं करेंगे तब तक वह सर्वग्राह्य नहीं बन पाएगी। इसे देखते हुए केन्द्र के वर्तमान निर्देश में बोलचाल की और सरल हिन्दी के साथ छोटे वाक्यों के प्रयोग पर बल देना वाकई सुखद है।

हिन्दी या किसी भी भाषा के विकास के लिए जरूरी है कि वह बदलते समय के साथ कदमताल करे और हर दिन नई होती तकनीक के साथ सहज रहे। इसी जरूरत को ध्यान में रखकर आवश्यकतानुसार गूगल वॉइस टाइपिंग एप्लिकेशन और ट्रांसलेशन टूल का प्रयोग करने की सलाह भी केन्द्र ने दी है। इसी कड़ी में पाँच लाख शब्दों का ऑनलाइन ट्रांसलेशन टूल एक बड़ा और सराहनीय प्रयास है। भाषा सचिव और केन्द्र सरकार अपने इन प्रयत्नों के लिए सचमुच बधाई के पात्र हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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