कौशकी क्षेत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन के बैनर तले मैथिली, हिन्दी व बांग्ला भाषा में एक सशक्त हस्ताक्षर राजकमल चौधरी की 100वीं जयंती वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा आज मनाई गई। विषय प्रवेश करते हुए सम्मेलन के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि हरिशंकर श्रीवास्तव शलभ ने कहा कि मधेपुरा जिला के रामपुर (मुरलीगंज) बस्ती में 100 साल पूर्व उन्होंने पिता मधुसूदन चौधरी के घर जन्म ग्रहण किया था। वे साठोत्तरी हिन्दी कविता के पुरोधा माने जाते हैं, जिसे हिन्दी साहित्य में एक आंदोलन के रूप में चिन्हित किया गया है। श्रीशलभ ने कहा कि राजकमल का नाम लेते ही अश्लीलता, नग्नता और विद्रूपता के धरातल पर अपाठ्य कवि दिखते हैं, लेकिन वास्तविकता यह नहीं है। आलोचना करने वाले खुले शब्दों में सेक्स की चर्चा करने से बिदते हैं। उनकी कविताओं में केवल देह की राजनीति नहीं है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए संस्थापक कुलपति व पूर्व सांसद डॉ.आरके यादव रवि ने कहा कि समकालीन लेखकों में राजकमल को काफी लोकप्रियता मिली क्योंकि वे ‘भूखी’ और ‘बीट’ पीढ़ी का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। डॉ.रवि ने यह भी कहा कि राजकमल की कविताओं में राजनीतिक चेतना का विद्रोही स्वरूप भी देखने को मिलता है।
सम्मेलन के सचिव डॉ.भूपेन्द्र मधेपुरी ने ऑनलाइन परिचर्चा में यही कहा कि राजकमल चौधरी के संपूर्ण रचना-संसार में तत्कालीन समाज की तमाम बदसूरती एवं विकृति का वास्तविक चित्रण तो हुआ ही है, साथ ही भयावह यथार्थ का क्रूरतम चेहरा भी सामने आया है… जो आज तक के समाज में बना हुआ है। हर तरफ लोग अर्थ-तंत्र और देह-तंत्र की कुटिल वृत्ति में व्यस्त दिखते हैं। तभी तो राजकमल साहित्य आजकल एमेजॉन पर लोगों द्वारा खूब पढ़ी जा रही है।
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए प्रो.मणि भूषण वर्मा ने उनके- आदिकथा, कंकावती, मुक्ति प्रसंग, देहगाथा, मछली मरी हुई आदि साहित्यिक कृतियों की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि 1960 के बाद नवलेखन वाली पीढ़ी के द्वारा रचित ऐसी साहित्य है जिनमें विद्रोह एवं अराजकता का स्वर प्रधान रहा है। हालांकि इसके साथ-साथ सहजता व जनवादी चेतना की समानांतर धारा भी साहित्य-क्षेत्र में प्रवहमान रही है जो बाद में प्रधान हो गई। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कवि अरविंद श्रीवास्तव ने कार्यक्रम को यादगार बताया एवं राजकमल की रचनात्मकता को नमन किया।