वर्षों पूर्व तक जब भी मंत्री या मुख्यमंत्री शिलान्यास, उद्घाटन या अन्य कार्यक्रमों के दौरे पर होते तो पी.डब्लू.डी. विभाग के जूनियर से लेकर चीफ इंजिनियर तक यही सोचने में लग जाते कि सड़कों की स्थिति में सुधार कैसे होगी | जैसे या जहाँ से भी मैनेज होता – सड़कें उपेक्षित नहीं रहती बल्कि अपेक्षित मरम्मती तो होती ही, कुछ निर्माणकार्य भी हो जाता और दोनों किनारे में मिट्टी भी दे दी जाती |
कार्यक्रम स्थलवाले एरिया में पड़ने वाले अधिसूचित क्षेत्र होता, नगर परिषद् या फिर जिला परिषद् होता– सभी अपने-अपने हिस्से की जवाबदेही के निर्वहन में जुट जाते | फल यह होता कि सड़कें भी उपेक्षित नहीं रहतीं और आम लोगों को भी इसी बहाने आवागमन की सुविधा मिलने लगती |
परन्तु , आज क्या होता है ? मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि मंत्री भी हवाईजहाज/ हेलिकॉप्टर से चलने लगे हैं जिसके फलस्वरूप सड़कें हो रही हैं उपेक्षित और परेशान हो रही है आबादी | ऐसी ही स्थिति में राष्ट्रकवि दिनकर की ये पंक्तियाँ सचेतन लोगों के अंतर्मन में फुदकने लगती हैं –
जो जितना है दूर मही से
वो उतना ही बड़ा है ….|
जहाँ भी नाला निर्माण होता है वहाँ के शीर्ष पदाधिकारियों की अनदेखी के चलते कतिपय कारणों से कार्यकारी एजेंसी द्वारा सड़क की तीन-चार फीट तक जमीन छोड़कर ही नाला-निर्माण कर दिया जाता है | नाले तक की जमीन पर पब्लिक तीन-चार महल भी बना लेते हैं तथा स्कूटर उतारने के लिए ऊँची नाली से आगे दो फीट की स्लोप सीढियाँ भी | सीढ़ी से आगे सब्जी बाजार और उसके आगे ठेला बाजार सज जाता है जिसपर प्रायः केला बिकता है |
प्रत्येक जिला में प्रतिमाह हजारों बाइक बिकती हैं, अगणित टैम्पू-ट्रेक्टर और कारें भी | साईकल और रिक्शे की तो बात ही मत पूछिए | ऊपर से आवारा पशुओं की बैठकी भी वहीँ पर | ये सारी चीजें सभी प्रशासनिक पदाधिकारीगण रोज देखते हैं परन्तु जो नहीं देखते हैं वो यही कि सीनियर सिटीजन शाम में बाजार से सब्जियां खरीदकर घर तक किस हाल में पहुँचता है ?
यूँ पहले तो मयखाने में ही ‘जाम’ लगने की चर्चाएँ हुआ करती थी लेकिन अब तो सुबह से ही सड़कों पर जाम लगने की चर्चा शुरू हो जाती है | वैसी जामवाली सड़कों पर एम्बुलेंस में कराह रही गर्भवती महिला हो या आक्सीजन लगे हृदयरोगी या फिर गंभीर बीमारियों से पीड़ित गरीब /अमीर व्यक्ति ही क्यों न हो- कितनों के प्राण-पखेरू तो ‘जाम’ में ही फड़फडाकर उड़ जाते हैं |
आखिर कब तक हम इन उपेक्षित सड़कों पर ऐसी ही जिंदगी जीते रहेंगे- जहाँ नालियों में मच्छरों का खाना हो और राहगीरों के लिए दुर्गन्ध का खजाना हो | इस बार तो पी.डब्लू.डी.मिनिस्टर बने हैं हमारे तेजस्वी भैया ! देखना है कि वे सड़कों में ‘अपेक्षित’ सुधार करते हैं या फिर ‘उपेक्षित’ छोड़कर अपना कार्यकाल पूरा करने में लग जाते हैं और छोड़ देते हैं जनमानस को निरंतर परेशानियों से जूझते रहने के लिए………!