गाँधी के गाँवों में सशक्त ग्रामीण ही बदलाव ला सकता है

मधेपुरा जिला मुख्यालय के प्राथमिक विद्यालय नौलखिया वार्ड न:-1 में नागेश्वर प्रसाद की धर्मपत्नी प्रथमवती देवी की दूसरी पुण्य तिथि पर भारतीय जन लेखक संघ द्वारा “कर्मकांड और धर्मांधता” विषय पर जिला स्तरीय परिसंवाद एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया | सम्मेलन का उद्घाटन समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण मधेपुरी ने फीते को कैंची से काटकर नहीं बल्कि अपने हाथ से खोलकर किया | इस दौरान डॉ.मधेपुरी ने “कैंची और सूई” के महत्व पर अपनी लम्बी काव्यकृति प्रस्तुत करते हुए विस्तार से कैंची को बांटने का प्रतीक एवं सूई को जोड़ने का प्रतीक बताया |

गाँधी के इस गाँव में माताओं-बच्चों व बड़े-बूढ़ों की भीड़ को संबोधित करते हुए डॉ.मधेपुरी ने अपने उद्घाटन भाषण में विस्तार से ‘कर्मकांड व धर्मांधता’ की व्याख्या की और कहा कि अंधविश्वास मिटाये बिना समाज का कल्याण संभव नहीं | उन्होंने कहा कि इस रूढ़िवादी परंपराओं को ढोने के चलते आर्थिक रुप से कमजोर लोग एक बड़े कर्ज में डूब जाते हैं | बच्चों को समुचित शिक्षा नहीं दे पाते हैं | विवश होकर उन्हें अपनी जमीन जायदाद तक बेचनी पड़ती है |

डॉ.मधेपुरी ने ग्रामीणों को बताया कि हिन्दू धर्म शास्त्र में मुक्ति के जो उपाय बताये गये हैं उन्हें ही कर्मकांड कहा जाता है तथा इसकी रूढ़िवादिता को ही कहा जाता है- धर्मांधता ! श्राद्धकर्म की विविधता का निरूपण करते हुए उन्होंने कहा कि राजा से लेकर गरीब लोगों के लिए भी विष्णुपुराण में पितरों के श्राद्ध करने की चर्चा है जिसमें गरीबों के लिए भी व्यवस्था की गई है | वे हथेली पर तिल के कुछ दाने रखें और जल के साथ सूर्य देव को अर्पित करें या वह भी नहीं हो तो सपरिवार गाय को चारा काटकर खिला दें तथा हाथ जोड़कर अपने पितर से कहें- यही मेरी ओर से किया गया श्राद्ध है इसे मेरी श्रद्धायुक्त प्रार्थना के साथ स्वीकार करें (विष्णुपुराण पृष्ठ संख्या- 248-49)

डॉ.मधेपुरी ने उपस्थित जनसमूह से यह भी कहा कि आडंबर में लोगों को हैसियत से अधिक धन का व्यय करना उसकी मजबूरी बन जाती है | समाज में बदलाव लाने के लिए हमें संकल्पित और संगठित होकर कर्मकांड को त्यागना पड़ेगा | बिना कर्मकांड को त्यागे समाज तरक्की के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ेगा | आप गाँठ बांध लें कि यहाँ जूता-छाता-कम्बल…… आदि दान करने से वहाँ पितर को कभी नहीं मिलता है |

अंत में जब डॉ.मधेपुरी ने नौलखियावासी नर-नारियों से कहा कि परिवार व समाज को आगे बढ़ाने के लिए ब्राह्मणवादी ढोंग यानि अंधविश्वास को खत्म करना ही होगा तो सबों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ डॉ.मधेपुरी को पुनः आने का निमंत्रण भी दे डाला | इसी दौरान उद्घाटनकर्ता डॉ.मधेपुरी ने प्रथमवती देवी मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से भीषण ठंड को लेकर विकलांग और विधवा को कंबल भेंट किया |

इस कार्यक्रम में मुख्यवक्ता के रूप में राष्ट्रीय महासचिव महेन्द्र नारायण पंकज, राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर, ई.हरिश्चन्द्र मंडल, डॉ.सुरेश प्रसाद यादव, डॉ.इन्द्र ना.यादव व कामेश्वर राय, पंकज कुमार, सुभाष चन्द्र प्रभाकर, गणेश मानव आदि ने सभा को संबोधित करते हुए इस बात पर जोर देते रहे कि मृत्यु भोज जैसी कुरीति का सामूहिक बहिष्कार जरूरी है क्योंकि यह एक सामाजिक कोढ़ है……….!

दूसरे सत्र में सामाजिक कुरीतियों पर चोट करने वाली कविताओं का पाठ किया सुकवि उल्लास मुखर्जी, डॉ.अरुण कुमार, प्रमोद कुमार, राकेश द्विजराज, योगेंद्र प्रसाद आदि ने | सम्मेलन की अध्यक्षता डॉ.इन्द्र नारायण यादव ने तथा संचालन किये गजेंद्र कुमार और मिथिलेश कुमार ने | सम्मेलन की सफलता के लिए अनीता जी, रमण जी आदि सहित सबों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए श्री रमेश यादव ने अध्यक्ष के निदेशानुसार कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की | अंत में  सुकवि सुरेंद्र स्निग्ध के आकस्मिक निधन पर 1 मिनट का मौन रखकर शोक जताया गया |

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