Tag Archives: Terrorism

आतंकवाद से अधिक खतरनाक है प्यार !

अगर कहा जाय कि प्यार आतंकवाद से अधिक खतरनाक होता है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आप चौंकेंगे, हंसेंगे या सवाल करने वाले के मानसिक संतुलन को संदेह से देखेंगे? आप कुछ सोचें या करें उससे पहले बीते 15 सालों के सरकारी आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं, जो चीख-चीख कर बता रहे हैं कि भारत में आतंकवाद से ज्यादा जानें प्यार के चलते गई हैं।

जिन आंकड़ों की बात हम कर रहे हैं, वे साल 2001 से 2015 की अवधि के हैं। इन 15 सालों में आतंकवादी घटनाओं में जहां 20,000 लोगों की जानें गईं, वहां इसी अवधि में प्यार से जुड़े मामलों में 38,585 हत्या और गैर इरादतन हत्या जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम दिया गया। यही नहीं, इसी दौरान प्यार में हारने और इससे जुड़ी अन्य वजहों से करीब 79,189 लोगों ने मौत को गले लगा लिया। इस अवधि में 2.6 लाख अपहरण के केस भी दर्ज किए गए, जिनमें महिला के अपहरण की मुख्य वजह उससे शादी रचाने का इरादा था।

आंकड़ों के मुताबिक इन 15 सालों में प्रतिदिन 7 हत्याओं, 14 आत्महत्याओं और 47 अपहरण के मामलों का जिम्मेदार था प्यार। प्यार को लेकर परिजनों का अस्वीकार, एकतरफा प्यार और जबरन शादी जैसे कारण इसमें शामिल हैं। दूसरी ओर इसी दौरान आतंकवादी घटनाओं में जिन 20,000 लोगों की मौत हुई, उनमें सुरक्षा बल और आम नागरिक दोनों शामिल हैं।

आंकड़े बताते हैं कि आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश प्यार के मकसद से की गई हत्याओं के मामलों में सबसे आगे हैं। इन सभी राज्यों में इस अवधि में 3,000 से ज्यादा हत्याएं प्रेम-प्रसंगों के चलते हुईं। वहीं, प्यार में की गई आत्महत्या के मामलों में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है, जबकि राज्य के 2012 के आंकड़े नहीं मिल सके हैं। आपको हैरत होगी कि सांस्कृतिक रूप से अत्यन्त समृद्ध इस राज्य में बीते 14 सालों में 15,000 खुदकुशी के मामलों की वजह प्रेम-संबंध थे। इन 15 सालों में प्यार में जान देने वालों में दूसरे पायदान पर तमिलनाडु है, जहां प्रेम प्रसंगों के चलते 9,405 लोगों ने मौत को गले लगा लिया। इसके बाद असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और मध्य प्रदेश का नंबर आता है। इन सभी राज्यों में 5,000 से अधिक लोगों ने प्यार में जान दे दी।

सच तो यह है कि प्यार जिस अहसास का नाम है उससे अधिक कोमल, उससे अधिक निश्चल, उससे अधिक पवित्र और उससे अधिक महान इस संसार में कुछ भी नहीं। सबसे अधिक कविताएं इसी प्यार पर बनीं, सबसे अधिक कहानियां इसी प्यार को लेकर रची गईं, सबसे अधिक मूर्तियां इसी प्यार को लेकर गढी गईं, सबसे अधिक चित्र इसी प्यार को लेकर उकेरे गए, नृत्य और अभिनय की अधिकांश भंगिमाएं इसी प्यार की ऋणी हैं, हर सृजन के मूल में यही प्यार है और सोच कर देखिए, ऊपर दिए गए आंकड़े भी इसी प्यार के हैं! ये कैसा विरोधाभास है? क्या इस विरोधाभास के रहते हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं?

जरा अपने भीकर झांककर देखें। आखिर क्या है प्यार के इस हश्र का कारण? जनाब कारण कहीं बाहर नहीं, हमारे ही भीतर है। हमारे ही अहं और अविवेक का परिणाम है ये। इक्कीसवीं सदी में भी हम पुरुषवादी व सामंती सोच से ऊपर नहीं उठ सके हैं। हम अब भी वोट से लेकर बेटी तक जाति देखकर ही देते हैं। हमारी ये व्यवस्था किसी और ने नहीं, हमने ही बनाई हैं और सच यह है कि हम ही उसे तोड़ भी पाएंगे। और जब तक ऐसा नहीं होगा, ऐसे आंकड़े हमारे सामने आते रहेंगे और हम मुंह छिपाते रहेंगे।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें