पिछले कुछ दशकों में राजनीति में किस कदर गिरावट आई है, अब ये चर्चा का विषय नहीं रहा। अब तो आलम यह है कि राजनीति के दंगल में उतरने वाला हर खिलाड़ी और अधिक ‘गिरने’ का कोई नया फार्मूला साथ लाता है, तभी उसकी ‘दूकान’ चल पाती है। पहले राजनीति को धर्म माना जाता था। राजनीतिज्ञ नीति-सिद्धांतों का सहारा लेकर मुद्दों पर तकरार करते थे, लेकिन हाल के वर्षों में ये धर्म, संप्रदाय, जाति से व्यक्ति स्तर पर उतर चुका है। नेता जनहित के मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का सहारा लेने से जरा भी गुरेज नहीं करते। व्यक्तिगत टिप्पणी के साथ-साथ बड़ी बेशर्मी से परिवार को भी निशाना बनाया जा रहा है। इसी का ताजा नतीजा मायावती-दयाशंकर सिंह विवाद है।
दरअसल, हाल के दिनों में जिन नेताओं ने बसपा छोड़ी थी, उन्होंने मायावती पर टिकट बेचने के आरोप लगाए थे। इसी मुद्दे पर मायावती को घेरने की कोशिश में उत्तर प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने उनकी तुलना ‘वेश्या’ से कर दी। अगर वो मायावती पर केवल भ्रष्टाचार के आरोप लगाते तो बात कुछ और थी, लेकिन ‘अपशब्द’ का प्रयोग कर उन्होंने राजनीतिक मर्यादा की जिस तरह धज्जी उड़ाई उसकी निंदा पूरे देश ने की। हाल की चुनावी सफलताओं से उत्साहित भाजपा की गर्दन अपने एक वरिष्ठ पदाधिकारी की करतूत से झुक गई। दयाशंकर सिंह को पार्टी से निकाल देने के बावजूद उसकी गर्दन उठती नज़र ना आ रही थी। यूपी में उसकी भावी संभावनाओं पर ग्रहण-सा लगता दिखने लगा।
मायावती ने इस जलते तवे पर रोटी सेकने में जरा भी देर नहीं की। उन्होंने संसद में ललकार कर कहा कि यदि लोग (यानि उनके समर्थक और कार्यकर्ता) सड़कों पर उतर आएं तो ये उनकी जिम्मेदारी नहीं होगी। लोग सचमुच सड़कों पर उतरने भी लगे थे। मायावती के लिए ये मुद्दा किसी ‘संजीवनी’ से कम नहीं था। लेकिन हाय री मर्यादा, दयाशंकर सिंह ने तो उसे तार-तार किया ही था, मायावती की पार्टी ने तो उसका रेशा-रेशा निकाल कर रख दिया। बसपा महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दिकी ने बड़ी निर्लज्जता से इस पूरे मामले में दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी को घसीट लिया। पार्टी के लोग “दयाशंकर की बेटी को पेश करो” जैसे अभद्र नारे तक लगाने में नहीं हिचके।
अपने लोगों की इस शर्मनाक हरकत के बाद की स्थिति को जब तक मायावती समझ और सम्भाल पातीं तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह उनसे पूछ रही थीं कि उन्हें उनके पति के शब्दों पर आपत्ति हुई तो क्या उनकी बेटी को पेश करने का नारा गलत नहीं था? मायावती और उनकी पार्टी के नेता बताएं कि मैं अपनी बेटी कहाँ पेश करूँ? स्वाति के इन सवालों का जवाब मायावती दें भी तो क्या? राजनीति की माहिर खिलाड़ी ‘बहनजी’ को दयाशंकर सिंह की गृहिणी पत्नी पटखनी दे चुकी थीं। कल तो जो लोग बसपा सुप्रीमो के पक्ष में खड़े नजर आ रहे थे, अब वही दयाशंकर सिंह की पत्नी और बेटी के खेमे में दिख रहे थे। अपने प्रति जिस ‘सहानुभूति’ को मायावती वोट में तब्दील करने की जुगत में थीं वो उनसे छिटक कर स्वाति के आँचल से जा लगी थी।
दरअसल, स्वाति सिंह ने पूरे मामले को नारी अस्मिता से जोड़कर मायावती को उन्हीं की चाल से मात दे दी है। स्वाति सिंह पॉक्सो एक्ट के तहत अपने पति दयाशंकर सिंह, मायावती और नसीमुद्दीन सिद्दिकी पर एक जैसी कार्रवाई की मांग कर रही हैं। ऐसा नहीं होने पर उन्होंने धरने पर बैठने की चेतावनी दी है। स्वाति सिंह के इस कदम ने मायावती के सारे गणित को धता बता दिया है। कभी अपने बड़बोले बयानों और राजनीतिक तिकड़मों से विरोधियों के नाक में दम कर देने वाली मायावती आज स्वाति सिंह के इस पत्ते के आगे बेबस नजर आ रही हैं।
हमदर्दी का सैलाब जिस तरह स्वाति सिंह की ओर बह रहा है उसे देख मायावती की बौखलाहट बढ़ना स्वाभाविक है। आनन-फानन में लखनऊ पहुंचकर उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं की क्लास लगाई है। मामले में कुछ नेताओं पर बिजली गिरने के भी संकेत मिल रहे हैं और पार्टी अब बचाव के लिए नई रणनीति तैयार कर रही है। इधर, भाजपा भी अब अपने ‘निर्वासित’ नेता के बचाव में खुलकर सामने आ गई है। यूपी भाजपा ने हाईकमान से दयाशंकर सिंह के निष्कासन को रद्द करने की मांग की है।
आने वाले वक्त में इस राजनीतिक उठा-पटक के कई और रंग देखने को मिलने वाले हैं। लेकिन, फिलहाल एक बात तो साफ हो गई है कि घर संभालने वाली साधारण सी महिला स्वाति सिंह ने कई बार यूपी को संभाल चुकीं मायावती को चारो खाने चित कर दिया है।
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप