आज जबकि दुनिया स्वयं तक सिमटती जा रही है, ऐसे में देश और समाज की खातिर प्राण न्योछावर कर देना वाला कोई शख्स सामने आता है और यह विश्वास दिला जाता है कि दुनिया अभी भी इतनी ‘संकीर्ण’ नहीं हुई है कि इंसानियत को घुटन होने लगे। ऐसे ही थे खगड़िया में तैनात और सहरसा में जन्मे जांबाज दारोगा आशीष कुमार सिंह जो कल देर रात अपराधियों से लोहा लेते शहीद हो गए।
वीर आशीष को नाज था अपनी वर्दी पर… कर्तव्य निभाने का जुनून ऐसा कि अपराधियों के एक कुख्यात गैंग की ख़बर मिलते ही रात के एक बजे ट्रैक्टर से निकल पड़े उनका अंत करने। गोली लगने के बाद भी डटे रहे और एक अपराधी को ढेर करके ही माने। ऐसा नहीं था कि गोली उन्हें पहली बार लगी थी लेकिन इस बार एक के बाद एक चार-चार गोलियां उतर गई थीं उनके भीतर..!
2009 में दारोगा की परीक्षा पास करने के बाद आशीष जहां भी गए उस थाना क्षेत्र में अपनी अलग पहचान कायम की। बेगूसराय में भी दो थाना क्षेत्रों में उन्होंने अपराधियों को नाको चने चबवाया था। वो बेखौफ होकर अपराधियों से लोहा लेते थे। पिछले साल जब वो मुफस्सिल थाना प्रभारी थे तब भी एक मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी लेकिन वो बच गए। काश इस बार भी..! लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। उनके साथ गए एक सिपाही को भी कमर के नीचे गोली लगी जिसका इलाज भागलपुर अस्पताल में चल रहा है।
आशीष कुमार न केवल जांबाज सिपाही थे बल्कि एक बेहद संवेदनशील व्यक्ति थे जो समाज के गरीब गुरबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा आगे आए। उनकी मां कैंसर की बीमारी से पीड़ित थीं। आशीष खुद उन्हें लेकर इलाज के लिए दिल्ली आया-जाया करते थे। पिता गोपाल सिंह के तीन बेटों में सबसे छोटे आशीष अपने पीछे पत्नी और दो मासूम बच्चों को, जिनमें एक बेटा है और एक बेटी, छोड गए हैं। आज सरोजा गांव में मातम पसरा हुआ है। ऐसा कोई शख्स नहीं जिसकी आँखें नम ना हों।
आशीष, मेरे भाई, मुझे गर्व है कि मैं भी कोसी की उसी मिट्टी से उपजा हूँ, जिससे तुम उपजे थे..!! ये वक्त नहीं था तुम्हारे जाने का लेकिन जब ‘महाप्रयाण’ पर तुम चले ही गए हो, मैं रोऊँगा नहीं तुम्हारे लिए, बल्कि बोऊँगा तुम्हारे व्यक्तित्व का अंश अपनी सोच, अपनी जुबान और अपनी कलम से, जितना संभव हो सके और जितनी सामर्थ्य रही, जीवन भर..!!!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप