चुनाव को करीब आता देख बिहार के सभी राजनीतिक दल कमर कसने में लग गए हैं। भाजपा के नेतृत्व में एनडीए का ‘परिवर्तन’ रथ चलता देख जदयू, राजद और कांग्रेस अपनी रणनीति को और चुस्त-दुरुस्त बनाने में लग गए हैं। इन दलों ने बड़ी शिद्दत से सोचना शुरू कर दिया है कि उन्हें प्रचार अभियान मिलकर चलाना चाहिए। जिस ‘महागठबंधन’ की बात ये दल कर रहे हैं वह जमीन पर नहीं दिख रहा। सभी दल अलग-अलग कार्यक्रम कर रहे हैं। नीतीश के हर घर दस्तक कार्यक्रम से लालू प्रसाद नदारद हैं तो राजद के कार्यक्रमों में नीतीश और शरद की मौजूदगी नहीं है। कांग्रेस भी अपने अभियान को जैसे-तैसे ही सही लेकिन अपने तरीके से आगे बढा रही है। कुल मिलाकर इससे आम जनता के बीच ‘महागठबंधन’ को लेकर सकारात्मक संकेत नहीं जा रहा है।
इन तमाम बातों की पृष्ठभूमि में ये खबर आई कि 22 जुलाई को पटना के गांधी मैदान में लालू प्रसाद और जदयू के राष्ट्रीय अध्य़क्ष शरद यादव एक साथ धरना देंगे। यही नहीं 26 जुलाई को प्रस्तावित लालू के उपवास में भी शरद शामिल होंगे। बता दें कि शुक्रवार को शरद और लालू की मुलाकात हुई थी और शनिवार को पटना स्थित स्टेट गेस्ट हाउस में शरद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लगभग दो घंटे तक बातचीत हुई। कहना ना होगा कि इन मुलाकातों का असर दिखने लगा है।
बिहार के राजनीतिक गलियारे में इस बात की भी चर्चा है कि चुनाव के और नजदीक आने पर ‘आप’ प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी संभवतः नीतीश के पक्ष में सभाएं करें। इन दोनों नेताओं की हाल-फिलहाल की मुलाकातों से इस चर्चा को और बल मिला है।
इन सबके बीच भाजपा भला निश्चिन्त कैसे रह सकती है। भाजपा ने ये तय कर लिया है कि चुनाव में किसी खास नेता को तवज्जो ना देकर सामूहिक नेतृत्व को सामने लाया जाय। पार्टी इस चुनाव में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी उतारने जा रही है। खासकर पड़ोसी राज्य झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के बहाने एक साथ कई निशाना साधने की कोशिश की जा रही है। उनको आगे कर ना केवल वैश्य समाज को प्रभावित किया जा सकता है बल्कि पार्टी झारखंड में उनके द्वारा किए गए कार्यों को भी यहाँ भुना सकती है।
बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में किस दल की रणनीति कितनी कारगर साबित होती है। जो भी हो, बिहार का चुनाव खासा दिलचस्प होने जा रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं।