Prof. Balraj Madhok

नहीं रहे जनसंघ और एबीवीपी के संस्थापक प्रोफेसर बलराज मधोक

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जनसंघ की नींव रखने वाले और अखिल भारतीय छात्र संघ (एबीवीपी) के संस्थापक प्रोफेसर बलराज मधोक नहीं रहे। प्रोफेसर मधोक कुछ समय से बीमार चल रहे थे और पिछले एक महीने से एम्स में भर्ती थे जहाँ आज सुबह नौ बजे उनका निधन हो गया। वक्त की विडंबना देखिए कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के राजनीति में सक्रिय होने से पहले दक्षिणपंथ के सबसे बड़े नेता रहे प्रोफेसर मधोक की मृत्यु की जानकारी मीडिया को केन्द्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के ट्वीट से मिली..! प्रोफेसर बलराज मधोक के कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनके जनसंघ के अध्यक्ष रहते हुए ही पं. दीनदयाल उपाध्याय पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री रहे थे और 1967 में प्रोफेसर मधोक के निवर्तमान होने पर राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। ये और बात है कि आज की तारीख में ये बात गिनती के लोगों को पता होगी।

25 फरवरी 1920 को जम्मू-कश्मीर के स्कार्दू इलाके में जन्मे प्रोफेसर बलराज मधोक अपने समय के बड़े शिक्षाविद, विचारक, इतिहासवेत्ता, लेखक और राजनीतिक विश्लेषक थे। 1961 और 1967 में क्रमश: नई दिल्ली और दक्षिण दिल्ली से लोकसभा के सदस्य रहे प्रोफेसर मधोक एबीवीपी के संस्थापक सचिव थे। 1951 में वे भारतीय जनसंघ के प्रथम समन्वयक बने और उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाया गया। 1966 में वे भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। प्रोफेसर मधोक नई दिल्ली के पीजीडीएवी कॉलेज में इतिहास विभाग के प्राध्यापक थे। आरएसएस के लम्बे समय तक प्रचारक रहे प्रो. मधोक ने एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी थीं और 1947-48 में ‘ऑर्गेनाइजर’ तथा 1948 में ‘वीर अर्जुन’ का सम्पादन भी किया था।

ये जानना दिलचस्प होगा कि प्रोफेसर मधोक के जनसंघ के अध्यक्ष रहते पार्टी अपनी कामयाबी के शीर्ष पर थी। उस समय लोकसभा में जनसंघ के गठबंधन के पास 50 से ज्यादा सीटें थीं। यही नहीं पंजाब में जनसंघ की संयुक्त सरकार बनी थी और उत्तर प्रदेश, राजस्थान सहित देश के आठ प्रमुख राज्यों में जनसंघ मुख्य विपक्षी दल बनने में कामयाब हुआ था।

ये प्रोफेसर मधोक ही थे जिन्होंने सदन में पं. जवाहरलाल नेहरू के सामने बिना किसी लाग-लपेट के पुर्तगालियों से गोवा को आजाद कराने और श्रीराम जन्मभूमि, काशी विश्वनाथ और मथुरा के श्रीकृष्ण मन्दिर को हिन्दुओं को सौंपने जैसे मुद्दों को उठाया था। उस दौर की राजनीति में प्रो. मधोक सम्भवत: एकमात्र ऐसी शख्सियत थे जो पं. नेहरू को राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व जैसे विषय पर अपनी बात सुनने को बाध्य कर देते थे। लोकसभा के अस्थायी अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने कई बार यादगार भूमिका निभाई थी और देश की सुरक्षा सलाहकार समिति के वे सदस्य भी रहे थे।

आज भाजपा प्रशस्त राजपथ पर खड़ी है पर पार्टी की मौजूदा पीढ़ी लगभग भूल चुकी है कि इस राजपथ का रास्ता जनसंघ की पगडंडियों से निकला है। डालियाँ और शाखाएं लाख इतरा लें पर उनका अस्तित्व तभी तक है जब तक वो अपनी जड़ से जुड़ी हैं। आज जिस ‘वटवृक्ष’ का नाम भाजपा है उसकी जड़ में प्रोफेसर मधोक के जीवन के कई बहुमूल्य वर्ष भी हैं, इसे हरगिज भुलाया नहीं जा सकता।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें