Who will become CM of Bihar ?

जीतना है बिहार, भाजपा ‘यादव’ की ताजपोशी को तैयार..!

दिल्ली से सबक लेकर भाजपा बिहार में केवल नरेन्द्र मोदी का चेहरा आगे कर चुनाव की तैयारी में जुटी थी। एक ‘अनार’ के लिए भाजपा में इतने बीमार हैं कि पार्टी के लिए किसी निष्कर्ष पर पहुँचना सचमुच मुश्किल था। उधर इस मामले को महागठबंधन ने समय रहते समझदारी से सुलझा लिया। वहाँ नीतीश कुमार जैसा सर्वमान्य चेहरा था भी। आज जबकि बाकी समीकरण कमोबेश भाजपा के पक्ष में दिख रहे हैं, केवल यही उसके लिए कमजोर नस साबित हो रहा है। महागठबंधन के नेता हुंकार रहे हैं कि दम है तो भाजपा किसी को आगे करे क्योंकि उन्हें पता है कि भाजपा के लिए ऐसा करना मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा होगा। भाजपा ने जरा भी चूक की नहीं कि डर है कि कहीं ‘दिल्ली’ ना दुहरा जाय।

प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में ताबड़तोड़ रैलियां कीं, दोनों हाथों से पैकेज लुटाया, बाकी नेताओं ने भी दिल्ली-पटना एक कर दिया लेकिन इसी एक ‘कमजोरी’ से भाजपा बैकफुट पर चली जाती है। इसका एक नजारा भागलपुर में दिखा जब मोदी की चौथी परिवर्तन रैली में उनके बाद की सारी तालियां जीतन राम मांझी बटोर ले गए। तब उन्होंने जरूर इस बात को शिद्दत से महसूस किया होगा कि इसका कारण भाजपा के पास बिहार में किसी एक ‘चेहरे’ का ना होना है।

बहरहाल, मोदी और उनके रणनीतिकार लगता है इसका तोड़ निकालने के बहुत करीब पहुँच चुके हैं। भाजपा की कोशिश यहाँ एक तीर से दो निशाना साधने की है। पार्टी चाहती है कि ‘चेहरा’ ऐसा हो कि भाजपा का वोटबैंक बिखरे नहीं और महागठबंधन के वोटबैंक में सेंध लग जाय सो अलग।

चुनाव के लिहाज से बिहार के जातिगत समीकरणों को देखते हुए भाजपा की मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे की तलाश किसी ‘यादव’ पर जाकर खत्म होती दिखती है। इसका सबसे बड़ा कारण है लालू का ‘माय’ समीकरण। नीतीश के वोटबैंक का तोड़ उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के रूप में भाजपा के पास है। मुस्लिम का वोट उसे मिलना नहीं है। रह गए यादव जिनकी तादाद बिहार में 14 प्रतिशत है और जो तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद बहुतायत में लालू के पीछे लामबंद हैं इस बार। इस बड़े वोटबैंक में सेंध लगाए बिना भाजपा आश्वस्त नहीं हो सकती है।

हालांकि भाजपा ने यादवों को तोड़ने की तैयारी पहले ही शुरू कर दी थी। धर्मेन्द्र प्रधान की जगह भूपेन्द्र यादव को बिहार का प्रभारी बनाना, लालू के ‘हनुमान’ रामकृपाल को मंत्रीमंडल में लेना और स्वयं मोदी का बिहार आकर गुजरात का संबंध ‘यदुवंश’ से जोड़ना इसके उदाहरण हैं। पप्पू की पीठ पर हाथ रखना भी भाजपा की इसी कोशिश का हिस्सा है। इतना सब कुछ कर लेने के बाद शायद अब भाजपा आखिरी बचा ‘ब्रह्मास्त्र’ भी छोड़ देने का मन बना रही है। जी हाँ, चौंकिए नहीं। बहुत सम्भव है कि पार्टी किसी ‘यादव’ को अपना ‘चेहरा’ बनाकर पेश करे।

वैसे अगर जातिगत समीकरणों को किनारे कर दें तो सुशील कुमार मोदी शायद मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी की पहली और स्वाभाविक पसंद होते। केन्द्र में पैठ रखनेवाले रविशंकर प्रसाद, शालीनता से समीकरण बिठानेवाले राधामोहन सिंह, तेजतर्रार महासचिव राजीवप्रताप रूडी, बिहार में पार्टी के मुस्लिम चेहरे शाहनवाज हुसैन और बिहार भाजपा के अध्यक्ष मंगल पांडेय का भी अपने-अपने हिसाब से दावा है। रेस में सीपी ठाकुर, अश्विनी चौबे, गिरिराज सिंह और प्रेम कुमार भी हैं लेकिन बहुत पीछे।

यादव चेहरे की बात आती है तो सामने सबसे पहले नंदकिशोर यादव दिखते हैं जो सदन में भाजपा के नेता हैं। पूर्व में मंत्री, नेता विरोधी दल और बिहार में पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनकी वरिष्ठता पर कोई संदेह नहीं लेकिन सुशील कुमार मोदी खेमे को वो शायद ही रास आएं। दूसरा नाम रामकृपाल यादव का है। लेकिन पार्टी में पैर रखते ही सीधा केन्द्र में उनके मंत्री बन जाने को ही कई लोग पचा नहीं पाए हैं। ऐसे में उनके विरोध में सभी ‘खांटी’ भाजपाई एकजुट हो जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए भाजपा ऐसे चेहरे को लाना चाहेगी जो किसी ‘खास’ खेमे का ना हो, पार्टी में पुराना हो, छवि अच्छी हो, ‘केन्द्र’ के निर्देश पर काम करे, ज्यादा महत्वाकांक्षी ना हो और यादव तो हो ही। ऐसा एक नाम हुकुमदेव नारायण यादव का हो सकता है जो अभी मधुबनी से सांसद हैं और केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं।

बहरहाल, भाजपा किस चेहरे को आगे करती है, ये कहना  भले ही मुश्किल हो, ताजपोशी किसी ‘यादव’ की होगी इसकी सम्भावना प्रबल है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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