Ramnath Kovind

सचमुच मोदी के पेट में था राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम

एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के संबंध में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने अपने अंदाज में बड़ा दिलचस्प बयान दिया था कि उनके उम्मीदवार का नाम और कहीं नहीं, नरेन्द्र मोदी के पेट में है। आज एनडीए द्वारा देश के सर्वोच्च पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम घोषित करते ही लालू की बात बिल्कुल सही साबित हुई। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, मोहन भागवत, सुषमा स्वराज, सुमित्रा महाजन, द्रौपदी मुर्मू जैसे कई नाम बस कयास बनकर हवा में तैरते रहे और आज घोषणा हुई रामनाथ कोविंद के नाम की। पेशे से वकील रहे कोविंद वर्तमान में बिहार के राज्यपाल हैं। साफ-सुथरी छवि वाले, शालीन और अनुभवी व्यक्ति हैं कोविंद। राज्यपाल बनने से पूर्व दो बार राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं, लेकिन उन्हें राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा, ये स्वयं उनके लिए भी कल्पनातीत बात रही होगी। राजनीति के जानकार बताते हैं कि उन्हें राज्यपाल भी ‘अचानक’ ही बनाया गया था और अब राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी वे ‘अचानक’ ही बने हैं।

बहरहाल, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने आज रामनाथ कोविंद के नाम का ऐलान किया। इससे पहले राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करने को लेकर राजधानी दिल्ली में भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक हुई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह समेत सभी बड़े नेता इस बैठक में पहुंचे। मीटिंग में सांसदों और विधायकों को मौजूद रहने को कहा गया ताकि वे उम्मीदवार के नॉमिनेशन पेपर पर दस्तखत कर सकें। करीब 45 मिनट की मीटिंग के बाद शाह और मोदी ने अकेले में बैठक की। इसके बाद ही कोविंद के नाम का ऐलान कर दिया गया।

बता दें कि 1 अक्टूबर 1945 को कानपुर देहात में जन्मे कोविंद दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से बीकॉम और एलएलबी की डिग्री हासिल की। दिल्ली हाईकोर्ट में वकील रहे कोविंद 1994 में यूपी से राज्यसभा के लिए चुने गए और लगातार दो बार यानि 2006 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। वे कई संसदीय कमिटियों के चेयरमैन भी रहे। यह भी गौरतलब है कि कोविंद ऑल इंडिया कोली समाज और भाजपा दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं।

कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर मोदी ने एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश की है। सबसे पहले तो यह कि मोदी के आभामंडल को कोविंद से दूर-दूर तक कोई ‘चुनौती’ नहीं मिल सकती। दूसरा यह कि कोविंद के दलित समुदाय से होने के कारण उनका सीधा विरोध करने से पहले हर पार्टी को कई बार सोचना पड़ेगा, यानि कि उनकी जीत सुनिश्चित। और तीसरा यह कि 2019 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में, जहां से सबसे ज्यादा सांसद चुने जाते हैं, इससे बड़ा लाभ मिलेगा, क्योंकि कानपुर से आने वाले कोविंद के राष्ट्रपति बनने से वहां की दलित नेता मायावती की राजनीतिक धार कमोबेश कुंद जरूर होगी, जिससे भाजपा फायदे में रहेगी।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

सम्बंधित खबरें