Paswan, Manjhi & Kushwaha

लो विलय का मौसम आया

बिहार चुनाव से पहले गठबंधन का दौर चला और अब विलय का मौसम आया है। एक ओर नीतीश रालोद और जेवीएम को लेकर नई पार्टी को आकार देने में लगे हैं तो दूसरी ओर लोजपा, हम और रालोसपा एक झंडे के नीचे आने की तैयारी में हैं। अगर सब कुछ ठीक रहा तो रामविलास पासवान, जीतन राम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा जून तक एक मंच पर दिखेंगे।

बता दें कि लोजपा, हम और रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीते सोमवार को हम के प्रदेश अध्यक्ष वृशिण पटेल के वैशाली स्थित फार्म हाउस पर एकत्रित हुए थे। इस बैठक में लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान समेत तीनों दलों के कई बड़े नेता मौजूद थे। इससे पहले तीनों दलों के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिल्ली में भी मंत्रणा कर चुके हैं।

तीनों दलों के इस सम्भावित विलय से एक बात तो स्पष्ट हो ही गई कि एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। एनडीए के ये तीनों घटक दल भाजपा से ‘नाराज’ बताए जाते हैं। इनका मानना है कि बिहार में भाजपा ‘सशक्त विपक्ष’ की भूमिका नहीं निभा रही है। उक्त बैठक में तीनों दलों के नेताओं ने तय किया कि अगर भाजपा राज्य सरकार की नीतियों का जोरदार तरीके से विरोध नहीं करती है तो वे भाजपा को साथ लिए बिना ही सरकार का विरोध करने को सड़क पर उतरेंगे।

ये तीनों दल लाख कह लें कि ‘समान विचारधारा’ वाले दलों का आपस में मिलकर एक बड़े दल के रूप में आना ‘वक्त की मांग’ है, पर सच ये है कि विलय के सारे समीकरण ‘राजनीतिक लाभ’ के गुणा-भाग पर आधारित हैं। वैसे देखा जाय तो इसमें कोई बुराई भी नहीं। छोटे दलों की कौन कहे, बड़े दलों के ‘पैर’ भी तो उनकी ‘चादर’ से बड़े ही होते हैं। सारे दल अपनी ‘ताकत’ बढ़ाने और ‘उपस्थिति’ जताने के लिए कभी गठबंधन तो कभी विलय का सहारा लेते हैं और लेते रहेंगे। नैतिकता और विचार के लिए प्रतिबद्धता अब भाषणों के सिवा कहीं दिखती कहाँ है..!

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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