Bihar Ashokan Pillar

क्या फिर कहलाएगा बिहार का इतिहास समूचे भारतवर्ष का इतिहास..?

भगवान बुद्ध के जन्म यानि ढाई हजार वर्ष पूर्व या बाद या फिर उनके समय में भी सदियों तक ‘बिहार’ नाम का कोई भू-भाग प्रकाश में नहीं आया था। 14वीं शताब्दी यानि 1320 ई. में मौलाना मिनहाजुद्दीन-अबु-उमर-ए—रहमान द्वारा ‘तबकात-ए-नासिरी’ जैसे दस्तावेज में सर्वप्रथम ‘बिहार’ शब्द का उल्लेख मिलता है। आगे इतिहास में उद्धृत तथ्यों के आधार पर कम-से-कम इस आशय को विश्वसनीय और प्रामाणिक माना जा सकता है कि ‘बिहार’ शब्द का उत्स बौद्ध धर्म की ‘विहार’ परम्परा से है। यानि बौद्ध विहारों या मठों की बहुसंख्यकता को देखते हुए ही भारत के एक भू-भाग को ‘बिहार’ की संज्ञा प्रदान की गई है। संक्षेप में ईसा के जन्म के 1200 वर्षों के बाद यानि 13वीं शताब्दी में ‘बिहार’ शब्द का जन्म माना जा सकता है और 15वीं-16वीं शताब्दी में जिस भारतीय भू-भाग को ‘बिहार’ राज्य की संज्ञा मिली वही चलते-चलते आज हमारा और आपका ‘बिहार’ बना है।

ये तो हुई ‘बिहार’ के नामकरण की बात। लगे हाथ इसकी राजधानी पटना के नामकरण की पृष्ठभूमि से भी वाकिफ हो लें। प्रारम्भ में बाग-बगीचे और बड़ी तायदाद में खिलने वाले फूलों के कारण गंगा, सोन और गंडक नदियों के संगम पर बसे नगर (वर्तमान पटना) को लोगों ने ‘कुसुमपुर’ कहा। आगे चलकर ‘पुत्रक’ नामक राजकुमार और ‘पाटलि’ नामक राजकुमारी ने विवाहोपरान्त संतान नहीं होने के कारण संतति के बिना भी अपने नाम को जीवित रखने के लिए ‘कुसुमपुर’ का नाम ‘पाटलिपुत्रक’ रख दिया। कालक्रम में ‘पाटलिपुत्रक’ से ‘पाटलिपुत्र’ बना और फिर ‘पटन देवी’ नाम से जुड़कर इसने ‘पटना’ का रूप धारण कर लिया।

1707 में औरंगजेब की मृत्यु होने के 25 वर्ष बाद तक ‘बिहार’ मुगल साम्राज्य का एक अलग प्रान्त बना रहा पर 1732 ई. में कुछ विशेष प्रशासनिक कारणों से इसका विलय ‘बंगाल प्रेसिडेन्सी ऑफ फोर्ट विलियम’ में कर दिया गया। इसके बाद अगले 180 वर्षों तक बिहार ‘बंगाल प्रेसिडेन्सी’ के अधीन रहा जब तक कि डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, मजहरूल हक, अली इमाम आदि के अथक प्रयासों के बाद जॉर्ज पंचम ने 12 दिसम्बर 1911 को अलग बिहार राज्य को मंजूरी नहीं दे दी और 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर बिहार, छोटा नागपुर और उड़ीसा एक प्रदेश के रूप में अस्तित्व में नहीं आ गए।

इस नए प्रदेश को अंग्रेजी में ‘बिहार एंड उड़ीसा प्रोविन्स’ कहा जाता रहा परन्तु आम जनता द्वारा इसे ‘बिहारोत्कल’ के रूप में स्वीकार किया गया। अधिसूचित पाँच प्रमंडल वाले ‘बिहारोत्कल’ प्रान्त में कुल 21 जिलों को शामिल किया गया जो इस प्रकार थे – 1. भागलपुर प्रमंडल – भागलपुर, पूर्णिया, मुंगेर और संथाल परगना (कुल चार जिले), 2. पटना प्रमंडल – पटना, गया और शाहाबाद (कुल तीन जिले), 3. तिरहुत प्रमंडल – मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारण और चम्पारण (कुल चार जिले), 4. छोटानागपुर प्रमंडल – हजारीबाग, राँची, पलामू, सिंहभूमि और मानभूमि (कुल पाँच जिले) तथा 5. उड़ीसा प्रमंडल – कटक, बालासोर, अंगुल, पुरी और सम्बलपुर (कुल पाँच जिले)। बिहार के सोलह और उड़ीसा के पाँच जिलों को मिलाकर बने ‘बिहार-उड़ीसा’ नामक इस नए सूबे का शासनाधिकार ब्रिटिश हुकूमत के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर को सौंपा गया और राजधानी के रूप में अस्तित्व में आया ‘पाटलिपुत्र’ से बना ‘पटना’।

भारत के पहले सम्राट (चन्द्रगुप्त मौर्य) से लेकर पहले राष्ट्रपति (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद) तक की जन्मभूमि है बिहार। एक समय बिहार का इतिहास ही समूचे भारतवर्ष का इतिहास रहा है। शून्य (आर्यभट्ट) से लेकर पहला गणतंत्र (लिच्छवी) तक इसी ने दिया संसार को। माँ सीता का जन्म यहीं हुआ और यहीं महर्षि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ की रचना की। बुद्ध और महावीर को यहीं ‘अपने होने का अर्थ’ मिला और यहीं सिक्खों के ‘दसवें गुरु’ गुरु गोविन्द सिंह ने जन्म लिया। महात्मा गांधी ने यहीं के चम्पारण में ‘सत्याग्रह’ का ‘बीज’ बोया और यहीं जयप्रकाश ने सम्पूर्ण क्रान्ति की ‘नींव’ रखी।

वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे मुनि, अशोक और शेरशाह जैसे शासक, विद्यापति और दिनकर जैसे कवि बिहार की मिट्टी की उपज हैं। चाणक्य जैसे गुरु, आर्यभट्ट जैसे खगोलविद्, जीवक जैसे चिकित्सक, पाणिनी जैसे शिक्षाविद्, याज्ञवल्क्य जैसे दार्शनिक, मंडन मिश्र जैसे शास्त्रज्ञ और बाबू कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी की कर्मभूमि बिहार ही है। नालन्दा और विक्रमशिला जैसे ज्ञान के केन्द्र यहीं थे जिनसे कभी सारा संसार प्रकाशित होता था। पर आज हम कहाँ हैं..? बिहार के गौरवशाली इतिहास में हमने क्या और कितना जोड़ा है..? पहले ‘विशिष्टता’ में हमारी कोई सानी नहीं थी और आज हमें ‘विशेष राज्य’ की लड़ाई लड़नी पड़ रही है..?

आज हमारा बिहार 104 साल का हो गया। आज का दिन ‘मील’ के तमाम ‘पत्थरों’ को गिनने और उन्हें सहेजने के साथ-साथ उनमें मील के ‘नए’ पत्थरों को जोड़ने के संकल्प का दिन भी होना चाहिए। आज का दिन आत्ममंथन का होना चाहिए कि हमसे कहाँ और क्या चूक हुई। ‘बिहार दिवस’ पर जब पूरा बिहार रोशनी में नहा रहा होगा तब हमें अपने गौरवशाली अतीत के प्रति पूरी श्रद्धा से सिर झुका कर ये प्रण लेना चाहिए कि बिहार की हर शाम ऐसी ही हो, हमारी रोशनी से एक बार फिर पूरी दुनिया जगमगाए और एक बार फिर बिहार का इतिहास समूचे भारतवर्ष का इतिहास कहलाए..!

Bihar Vidhan Sabha decorated with lights on Bihar Diwas.
Bihar Vidhan Sabha decorated with lights on Bihar Diwas.

[डॉ. भूपेन्द्र मधेपुरी से परिचर्चा के आधार पर मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप]

सम्बंधित खबरें