47th Punya tithi of BN Mandal at Vrindavan.

47वीं पुण्यतिथि पर बोले डाॅ.मधेपुरी- मनीषी भूपेन्द्र ताजिंदगी सब कुछ लुटाकर मसीहा बन गए

कोरोना की दूसरी लहर के बीच आज 29 मई को सहजता की प्रतिमुर्ति समाजवादी चिंतक भूपेन्द्र नारायण मंडल की 47वीं पुण्यतिथि पर उनके अत्यंत करीबी रहे समाजसेवी-साहित्यकार प्रो.(डॉ.) भूपेन्द्र मधेपुरी ने अपने निवास ‘वृंदावन’ में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बच्चों व बड़ों से ये बातें कहीं-

“भूपेन्द्र बाबू आज भी समाजवादियों के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। वे ब्रिटिश हुकूमत की विकट परिस्थितियों में आए और बिना रुके, बिना झुके, बेकसों के संसार को जीवन भर सजाते रहे। वे उच्च कोटि के स्वतंत्रता सेनानी और इस माटी के सपूत बने रहे। आजादी मिलने के बाद ताजिंदगी वंचितों व अछूतों के दूत बने रहे।”

डॉ.मधेपुरी ने उनके पढ़ने के व्यसन को संदर्भित करते हुए बच्चों से कहा कि एक अच्छे अध्येता होने के कारण उनमें किसी भी गंभीर विषय के ज्ञान की गहराई में उतरने की अद्भुत क्षमता मैंने तब देखी जब संसद के अंदर ‘हिन्दी और अंग्रेजी’ को लेकर हो रही चर्चा के बीच उन्होंने बस यही कहा-

“अध्यक्ष महोदय ! मैं हिन्दी के लिए पागल नहीं हूं, परंतु भारत में अंग्रेजी को बनाए रखने की कोशिश भारतीय जन क्रांति के साथ विश्वासघात है।”

डॉ.मधेपुरी ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मौजूद बच्चे अक्षय, आदित्य, आद्या, अक्षत सहित कुछ लोगों से ऑनलाइन यह भी कहा कि भूपेन्द्र बाबू के ज्ञान की गहराई और व्यक्तित्व की ऊंचाई को मापना बहुतों के बस की बात नहीं। डॉ.लोहिया भी उन्हें बहुत सम्मान देते थे। जब डॉ.लोहिया ने बिहार में संविद सरकार संभालने हेतु उनसे अनुरोध किया था तो भूपेन्द्र बाबू ने विनम्रता पूर्वक उनसे यही कहा कि बिहार में यह जिम्मेदारी अपनी पार्टी के समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मिलनी चाहिए। भूपेन्द्र बाबू के त्याग की अनेक कहानियां हैं। मधेपुरा के बीपी मंडल नगर भवन में कभी बिहार विधानसभा के स्पीकर एवं हरियाणा के राज्यपाल रहे धनिक लाल मंडल ने मंच से कहा था कि मैं आज जो कुछ भी हूं वह केवल भूपेन्द्र बाबू के ही चलते हूँ।

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