साहित्यकार डॉ.मधेपुरी ने कोरोना काल में निज निवास ‘वृंदावन’ में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती मनाई और बच्चों से कहा कि भारत के महान अभियंता सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म 15 सितंबर 1860 और मृत्यु 12 अप्रैल 1962 को हुई। वे एक महान अभियंता ही नहीं एक ख्याति प्राप्त राजनयिक भी थे। भारत के मोकामा ब्रिज जैसे बड़े-बड़े पुलों एवं पंजाब, हरियाणा के डैम आदि के डिजाइन निर्माता डॉ.विश्वेश्वरैया को 1955 में भारत रत्न सरीखे सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया गया था। भारत उनके जन्मदिन को अभियंता दिवस के रुप में मनाता है। बिहार सरकार ने तो उनकी याद में तकनीकी कार्यालय वाले विभागीय सचिवालय भवन का नाम ही विश्वेश्वरैया भवन रख दिया है। इस सचिवालय परिसर में उनकी आदमकद प्रतिमा भी लगी है।
जानिए कि आरंभ में उन्हें ट्यूशन करके अपनी पढ़ाई करनी पड़ी थी। शुरू में इन्होंने बीए की परीक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया और बाद में मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, जिसमें भी वे अव्वल रहे। इंजीनियर बन कर उन्होंने मैसूर और कर्नाटक को विकसित व समृद्धशाली बनाने में अभूतपूर्व योगदान दिया। डॉ.विश्वेश्वरैया को लोग कर्नाटक का भागीरथ कहते हैं। उनके विकास के सारे सिस्टमों की प्रशंसा उन दिनों ब्रिटिश अधिकारियों ने भी खूब की, जिन्हें आज सारे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही हैं।
चलते-चलते यह भी जानिए कि डॉ.विश्वेश्वरैया अशिक्षा, गरीबी, बीमारी एवं बेरोजगारी को लेकर भी चिंतित रहा करते थे और इन्हें दूर करने हेतु चिंतन भी करते रहते थे। इन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया था और बाद में मैसूर के महाराजा ने इन्हें मैसूर का मुख्यमंत्री भी नियुक्त कर दिया। गरीबी और बीमारी का मुख्य कारण वे अशिक्षा को मानते थे। ऐसे मौलिक चिंतक की कोटि में खड़े वैसे दो नाम हैं- हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन और एटॉमिक एनर्जी के जनक होमी जहांगीर भाभा जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में भारत को नई-नई ऊंचाइयाँ दी…. उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने हेतु समाजसेवी-साहित्यकार डॉ भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी द्वारा निरंतर भारत सरकार से अनुनय-विनय किया जाता रहा है। और आगे भी अर्जे तमन्ना का इजहार किया जाता रहेगा….।