शहीद अब्दुल हमीद को उनकी 56वीं पुण्यतिथि पर डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने अपने वृंदावन निवास में याद किया । डॉ.मधेपुरी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जुड़े सचेतन लोगों को जानकारियां देते हुए यही कहा कि परमवीर अब्दुल हमीद का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में 1 जुलाई 1933 को पिता मोहम्मद उस्मान (दर्जी) के घर माता सकीना बेगम की गोद में हुआ था। देश के लिए कुछ करने का जज्बा ने हमीद को 21 वर्ष की उम्र में भारतीय सेना की सेवा के लिए तैयार कर दिया। हमीद हमेशा सेना में कुछ बड़ा करने की तमन्ना रखता था। वह देश के लिए कुछ बड़ा करना चाहता था।
डॉ मधेपुरी ने पुनः कहा कि भारतीय सैनिकों के बीच आरंभ से ही अब्दुल हमीद की बहुत कदर थी। हमीद के पराक्रम और शौर्य की चर्चा सैनिकों के साथ-साथ यदा-कदा अधिकारियों के बीच भी होती थी। हमीद की वीरता के कारण ही उसे लायंस नायक बना दिया गया। साहसिक प्रदर्शन ऐसा कि क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद 1965 के सितंबर में हुए भारत-पाक (आसल-उत्तार) युद्ध में कश्मीर के चीमा गांव के बाहरी इलाके में गन्ने के खेतों के बीच बैठे थे। हमीद ने पाकिस्तानी पैटन टैंकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतजार किया और आरसीएल रेंज में आते ही टैंकों पर अंधाधुन फायर करना शुरु कर दिया। उस दौरान पाकिस्तानी तीन-चार टैंकों को तो चंद मिनटों में ही उड़ा दिया हमीद नेे। उसके बाद भी कई टैंको को उड़ाए। जब वह आठवां टैंक को निशाना बना रहा था कि सामने वाला टैंक तो नष्ट हुआ, परंतु उसके गोले हमीद के जीप के भी परखच्चे उड़ा दिए और हमीद साहसिक प्रदर्शन करते हुए 10 सितम्बर को वीरगति को प्राप्त हुआ। तिरंगा में लिपटकर वह वीर हमीद अपने प्यारे ग्रामीणों, अपनी पत्नी रसूलन बीबी, अपने चार बेटे और एक बेटी के पास पहुंच गया। इस वीरता के लिए अब्दुल हमीद जैसे सेना के उस शेर को मरणोपरांत भारत का सर्वोच्च सेेना पुरस्कार “परमवीर चक्र” देकर सम्मानित करते हुए महामहिम राष्ट्रपति ने उस अमर शहीद अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी को यह सम्मान प्रदान किया।
अंत में डॉ.मधेपुरी ने यह भी कहा कि अब्दुल हमीद को इसके अतिरिक्त समर सेवा पदक, रक्षा पदक तथा सैन्य सेवा पदक भी मिल चुका है। भारत सरकार ने इस कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अमर शहीद अब्दुल हमीद के नाम उनके सम्मान में 2000 ईस्वी में डाक टिकट भी जारी किया है।