भारतरत्न डाॅ.कलाम के अभिन्न मित्र रक्षा वैज्ञानिक डॉ.मानस बिहारी वर्मा नहीं रहे

बिहार के रहने वाले पद्मश्री डॉ.मानस बिहारी वर्मा 35 वर्षों तक DRDO में एक वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत रहे। वे लंबे समय तक मिसाइल मैन डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के साथ काम किए। वे एयरक्राफ्ट ‘तेजस’ के प्रोजेक्ट डायरेक्टर भी थे । भारतीय वायु सेना में तेजस का योगदान अविस्मरणीय है और रहेगा।

उन्हें दर्जनों पुरस्कार से नवाजा गया। साइंटिस्ट ऑफ द ईयर, टेक्नोलॉजी लीडरशिप अवार्ड…. आदि के संग-संग पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया गया। वे रिटायर्ड करने के बाद से बिहार के दरभंगा जिले के घनश्यामपुर प्रखंड के छोटे से पैतृक गांव बाऊर में रह रहे थे। पिताश्री ए.के.एल दास व माताश्री यशोदा के घर 29 जुलाई 1943 को जन्मे ऋषि (बचपन का नाम) सहित तीन भाई व चार बहनें हैं। बिहार को अपनी कर्मभूमि बनाकर बच्चों के प्रायोगिक ज्ञान को विकसित करने हेतु कई संस्थाओं का निर्माण भी उन्होंने किया।

अंतिम दिनों में वे दरभंगा-लहेरिया सराय में अपनी बहन के घर में रहने लगे। वहीं 78 वर्ष की उम्र में उन्होंने 3 मई (सोमवार) की देर रात अंतिम सांस ली। समस्त भारत एवं विदेशों में उनके चाहने वालों के बीच उनके निधन से शोक की लहर दौड़ गई है। चारों तरफ लोग उनकी आत्मा की चिर शांति हेतु ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं।

यहां तक कि मधेपुरा के समाजसेवी-साहित्यकार एवं डॉ.कलाम के अत्यंत करीबी रहे भौतिकी के प्रोफेसर डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने उस ऋषि तुल्य वैज्ञानिक मानस बिहारी के प्रति शोक व्यक्त करते हुए कहा- “आज 2005 के दिसंबर महीने का अंतिम सप्ताह मेरी नजर के सामने से गुजरने लगा है। महामहिम राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम के बिहार आगमन को लेकर उनके साथ दसकों तक एक लैब में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ.अरुण कुमार तिवारी का फोन आता है मुझे। डॉ.तिवारी साहब मुझसे कहते हैं…. मधेपुरी साहब आपको दरभंगा नजदीक है या पटना….. महामहिम को 30 दिसंबर को दरभंगा में उद्घाटन कार्यक्रम है, साथ ही उन्हें डॉ.मानस बिहारी वर्मा साहब से भी मिलना है…. चाहें तो आप वहीं आकर महामहिम से मिल लें या फिर पटना में राजभवन, एसके मेमोरियल हॉल, महावीर कैंसर संस्थान या वापस दिल्ली जाते समय रात में हवाई अड्डे पर भी मिल सकते हैं…. मिला तो रात के लगभग 9:00 बजे पटना हवाई अड्डे के विशाल प्रसाल में जहां महामहिम की गरिमामय उपस्थिति का आलोक पूरे परिवेश में फैला हुआ था। वहां मौजूद थे महामहिम के साथ उनके प्रिय शिष्य व सहयोगी डॉ.अरुण तिवारी, वरुण मित्रा और मैं। बस एक शख्स की कमी महसूस हुई मुझे…. और वे थे डॉ.मानस बिहारी वर्मा।

 

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