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छठ महापर्व स्वच्छ एवं सुगंधमय बना देता है सम्पूर्ण बिहार को……..!

आस्था एवं विश्वास के इस महापर्व छठ में उत्साह व उमंग की ऊंचाई इतनी होती है कि श्रद्धापूर्ण माहौल में सम्पूर्ण बिहार स्वच्छ एवं सुगंधमय बन जाता है | नदी से लेकर नाले तक एवं पोखर से लेकर पनघट तक की सफाई हो जाती है |

बता दें कि चार दिवसीय इस महापर्व में जहाँ उगते सूरज से पहले ढलते सूरज को ही नमन किया जाता है, उसी तर्ज पर प्रशासन द्वारा भी दिल्ली-मुंबई-हरियाणा….. से गाँवों तक आने के लिए (पद्मश्री संतोष यादव (मुंगेर) , गीतकार राजशेखर (मधेपुरा) सहित अन्य आम लोगों  व  मजदूरों के वास्ते) विशेष ट्रेन की व्यवस्था जिस तरह छठ से पूर्व की गई थी उसी तरह उन्हें छठ के बाद पुनः कार्यस्थल तक पहूँचाने के लिए और अधिक सुविधाओं के साथ व्यस्था की जा रही है | भारतीय रेल के समस्तीपुर मंडल के सीनियर डीसीएम वीरेन्द्र कुमार के निर्देश पर छठ पर्व के बाद लौट रहे रेल यात्रियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सहरसा स्टेशन पर अतिरिक्त चार टिकट काउंटर खोलने के संबंध में पत्र भी जारी कर दिया गया है और तदनुरूप डीसीआई रमण झा टिकट काउंटर चालू करवाने में जुट गये हैं |

यह भी बता दें कि मुख्यमंत्री-आपदा प्रबंधन मंत्री से लेकर जिला प्रशासन की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था के बावजूद राज्य में कुल 63 लोगों की मौत छठ पर्व के दौरान डूबने से हुई जिसमें मधेपुरा से एक के डूबने की पुष्टि की गई है, जबकि जिले में 192 घाटों पर डीएम मो.सोहैल, एसपी विकास कुमार और एसडीएम संजय कुमार निराला की टीम एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड, मोटरबोट व गोताखोरों सहित अन्य सतर्कताओं के साथ तैनात दिखे | डीएम मो.सोहैल ने तो यहां तक हिदायत दे डाली थी कि अभिभावक अपने बच्चों के पाँकेट में पूरा पता लिखकर ‘कागज’ डाल दें ताकि भीड़ में खो जाने पर उसे उनके परिजनों को आसानी से हस्तगत करा दिये जायेंगे |

यह भी जानिए कि कर्मकांड की जटिलता से मुक्त………..  इस महापर्व छठ में समानता की सर्वाधिक विशालता नजर आती है- ना आडंबर, ना पैसे, ना स्टेटस………. और ना पूजा कराने के वास्ते पंडित-पुरोहित की जरूरत | मरिक जाति द्वारा तैयार सभी के सूप में वही अल्हुआ, सुथनी, मूली, गाजर, हल्दी-अदरक-ईख……..  नारियल-बद्दी-जायफल आदि | सभी अपने-अपने माथे पर दउरा उठाते हैं | घाट पर सभी व्रती होते हैं चाहे अपने निजी आवासीय परिसर वाले निर्मित घाटों पर वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का परिवार हो या पूर्व मुख्यमंत्री लालू-राबड़ी का या फिर मधेपुरा के समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.मधेपुरी का ही परिवार क्यों ना हो | ऊर्जा के अनंत स्रोतवाले सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना ही तो छठ महापर्व का सार है, जो हमारे अस्तित्व को कायम रखने में सहायक है |

बिहारी समाज देश से लेकर विदेश तक में जहाँ भी होते हैं- छठ की थाली में एकता का दीप जलाने के वास्ते ट्रेन या प्लेन से घर आने की कोशिश में जुटे रहते हैं………|

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छठ के अर्घ्य के मूल में हैं भगवान श्रीकृष्ण

आस्था का महापर्व है छठ। इस छठ से न जाने कितनी ही कथाएं जुड़ी हुई हैं। सच तो यह है कि कोई पर्व ‘महापर्व’ बनता ही तब है जब उससे हमारी, आपकी, गांव की, शहर की, पुराण की, इतिहास की अनगिनत स्मृतियां-अनुभूतियां कथाओं के रूप में जुड़ जाएं। आपको सुखद आश्चर्य होगा कि महापर्व छठ की एक कथा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है और उस कथा का विशेष महत्व है क्योंकि वो हमारा परिचय उस बिन्दु से कराती है जहां सूर्य को अर्घ्य देने की पवित्र परिपाटी का उद्गम है। चलिए, आपको ले चलें बिहार के नालंदा जिला स्थित बड़गांव जहां स्वयं श्रीकृष्ण पधारे थे और जिनकी प्रेरणा से यहां भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा शुरू हुई थी।

बड़गांव वैदिक काल से ही सूर्योपासना का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहां का सूर्यमंदिर दुनिया के 12 अर्कों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां छठ करने पर हर मुराद पूरी होती है। तत्कालीन मगध में छठ की महिमा इतनी उत्कर्ष पर थी कि युद्ध के लिए राजगीर आए भगवान कृष्ण ने भी बड़गांव पहुंच कर भगवान सूर्य की अराधना की थी। इसकी चर्चा सूर्य पुराण में भी है। आज भी हजारों श्रद्धालु चैत और कार्तिक माह में यहां छठ का व्रत करने आते हैं।

बहरहाल, यहां से आगे चलते हैं। ऐसी मान्यता है कि महर्षि दुर्वासा एक बार श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गए थे। उस समय भगवान कृष्ण रुक्मिणी के साथ विहार कर रहे थे। उसी दौरान किसी बात पर श्रीकृष्ण के पौत्र राजा साम्ब को हंसी आ गई। महर्षि दुर्वासा ने उनकी हंसी को अपना उपहास समझ लिया और उन्हें कुष्ठ होने का श्राप दे दिया। श्रीकृष्ण ने इस कष्टदायी श्राप से मुक्ति के लिए अपने पौत्र को सूर्य की अराधना करने को कहा। तब राजा साम्ब ने 49 दिनों तक बर्राक (वर्तमान बड़गांव) में रहकर भगवान सूर्य की उपासना की। कहते हैं उन्होंने वहां स्थित एक गड्ढ़े के जल का सेवन किया और उसी से सूर्य को अर्घ्य दिया, जिससे वे रोग व श्राप से मुक्त हो सके। आगे चलकर राजा साम्ब ने अपने पितामह श्रीकृष्ण की आज्ञा से उस गड्ढे वाले स्थान की खुदाई करके तालाब का निर्माण कराया। इसमें स्नान करके आज भी कुष्ठ जैसे असाध्य रोग से लोगों को मुक्ति मिलती है।

आपको बता दें कि कालांतर में तालाब की खुदाई के दौरान भगवान सूर्य, कल्प विष्णु, लक्ष्मी, सरस्वती, आदित्य माता, जिन्हें छठी मैया भी कहते है, सहित नवग्रह देवता की प्रतिमाएं इस स्थान से निकलीं। तालाब के पास ही एक सूर्यमंदिर भी था, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसकी स्थापना अपने पितामह के कहने पर राजा साम्ब ने ही कराई थी। आगे चलकर 1934 के भूकंप में यह मंदिर ध्वस्त हो गया। बाद में ग्रामीणों ने तालाब से कुछ दूर पर मंदिर का निर्माण कर सभी प्रतिमाओं को स्थापित किया।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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सूर्योपासना का चार दिवसीय महाछठ पर्व शुरू………..!

मधेपुरा सहित जिले के सभी प्रखंडों के मुख्यालय से लेकर सुदूर गाँवों तक सभी समुदाय के लोग सप्ताह भर से इस लोक आस्था के छठ महापर्व को लेकर जहाँ जोर-शोर से घर से घाट तक की सफाई व सजावट करने में लगे नजर आते रहे वहीं प्रदेश के मंत्री-मुख्यमंत्री से लेकर जिला प्रशासन के आलाधिकारी डीएम मो.सोहैल, एसपी विकास कुमार, एसडीएम संजय कुमार निराला की पूरी टीम विधि व्यवस्था से लेकर आपात स्थिति से निपटने तक के लिए नदी में गोताखोरों तथा तटों पर दमकल सहित एंबुलेंसों तक की व्यवस्था में जुटे रहे | इस बार घाटों पर सादे लिवास में पुलिस तैनात की जा रही है विस्फोटक पदार्थों पर भी नजर रखी जा रही है |

बता दें कि जहाँ नदी में खतरे के निशान को चिन्हित कर रस्सी से घेरा जा रहा है वहीं प्रत्येक घाट पर रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की जा रही है | यहाँ तक कि एंटी सबोटेज चेकिंग भी सुनिश्चित की गई है |

यह भी बता दें कि प्रशासन द्वारा छठ घाटों पर यदाकदा अगलगी की घटनाओं को रोकने के लिए इस वर्ष आतिशबाजी व पटाखे छोड़ने पर रोक लगा दी गई है | साथ ही मिलावटी खाद्य पदार्थों की सघन जांच एवं विधि संगत कार्रवाई करने हेतु निदेश भी दिया गया है |

छठ को लेकर सदर अस्पताल प्रशासन भी मुस्तैद है | सिविल सर्जन डॉ.गदाधर पांडे द्वारा अस्पताल में चौबीसो घंटे इमरजेंसी वार्ड को तैनात रहने का आदेश जारी कर दिया गया है | जीवन रक्षक दवाइयाँ भी उपलब्ध करा ली गई है | प्रखंड स्तर पर भी चाक-चौबंद व्यवस्था पूरी कर ली गई है | थानाध्यक्षों द्वारा शांति समिति की बैठकें की जा चुकी हैं | यहाँ तक कि सभी ग्राम पंचायतों के ग्राम-कचहरी के न्याय सचिव, पंचायत सचिव तथा राजस्व कर्मचारियों को निर्देशित किया गया है कि सभी कर्मचारी अपने-अपने पंचायत में छठ की शाम और सुबह में घाटों पर तैनात रहेंगे ताकि व्रतियों को कोई कठिनाई न हो | यदि कोई कमी नजर आये तो उसकी सूचना वरीय पदाधिकारी को तुरंत दें | शराबी या जुआरी कहीं भी नजर आये तो अविलम्ब उच्चाधिकारी को सूचित करें | डीएम मो.सोहैल ने कहा कि इस महाव्रत के दरमियान किसी भी कर्मचारी की लापरवाही कतई बर्दाश्त नहीं की जायेगी |

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छठ महापर्व से विश्व को मिलता है मानवता का संदेश

विगत वर्ष की ही तो बात है- मधेपुरा लोकसभा चुनाव के दरमियान इलेक्शन कमीशन द्वारा पर्वतारोही-पर्यावरणविद-पद्मश्री संतोष यादव को मतदाता जागरूकता के निमित्त आइकॉन बनाया गया था और उसी क्रम में सात्विक जीवन शैली को आत्मसात करने वाली एवं एक ही वर्ष के दरमियान दो बार एवरेस्ट की चोटी पर भारतीय तिरंगा फहराकर विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली संतोष यादव मधेपुरा आई थी |

यह भी बता दें कि हरियाणा की बेटी संतोष यादव बहरहाल समता,समानता और सामाजिकता के प्रतीक छठ जैसे महापर्व को मनाने अपने ससुराल मुंगेर के गुलजार पोखर में आई हैं | इस अवसर पर उन्होंने मीडिया से मुखातिब होकर यही कहा कि बिहार में हर जाति और धर्म के लोग मानवीय संवेदनाओं से भरपूर हैं | पद्मश्री संतोष यादव ने आत्मविश्वास के साथ पुनः कहा कि हिन्दू-मुस्लिम समुदाय की महिलाओं द्वारा बिना किसी भेद-भाव के एक साथ मिल-बैठकर भगवान भास्कर को अर्ध्य अर्पित करने वाली इसी धरती से पूरे विश्व को मानवता का संदेश मिलता रहेगा, क्योंकि मानवता से बड़ा कोई धर्म और जाति भी तो इस भू-मंडल पर नहीं है |

Padma Shree Santosh Yadav moving towards Mongher Ganga Ghat along with other devotee Chhathbraties from her Father-in-law's House at Guljar Pokhar, Mongher .
Padma Shree Santosh Yadav moving towards Mongher Ganga Ghat along with other devotee Chhathbraties from her Father-in-law’s House at Guljar Pokhar, Mongher .

जहां एक ओर सिंहेश्वर प्रखंड के जझहट सबैला के पंचायत समिति के सदस्य मोहम्मद इश्तियाक आलम द्वारा लगभग तीन दर्जन हिन्दू छठ व्रतियों के बीच श्रद्धावनत होकर केला, नारियल, टाब, नींबू और सेब-संतरादि दिये जाने पर आंतरिक खुशी का एहसास किया गया वहीं दूसरी ओर कटिहार के दिग्घी नया टोला में पिछले ढाई दशक से नियम-निष्ठा के साथ रेहाना भी तो करती आ रही है छठ- केवल इसीलिए कि उसकी शादी में अड़चन आ जाने के कारण उसकी मां ने छठ पर्व करने का संकल्प लिया था | शादी हो जाने पर पहले तो उसकी मां और अब रेहाना आम हिन्दू युवतियों की तरह हर विधि-विधान के साथ श्रद्धापूर्वक पानी में खड़ी होकर सूप उठाती है,रिश्तेदार अर्घ्य भी देते हैं और घर में छठ व्रत के गीत गाए जाते हैं | और तो और मधेपुरा नगर परिषद से सटे नयानगर की हसीना और सकीना की मन्नतें पूरी होने पर महापर्व छठ का व्रत आस्था के साथ करने लगी हैं | आस्था के आगे मजहब की सारी दीवारें भी टूटती जा रही हैं |

यह भी जानिए कि वर्मा यानी वर्तमान म्यांमार के लगभग तीन दर्जन शरणार्थी अब यहां की संस्कृति में पूरी तरह ढल चुके हैं और पिछले 40 साल से छठ महापर्व करते आ रहे हैं | अन्य पर्व-त्योहारों की तुलना में छठ महापर्व के प्रति लोगों की आस्था गहरी होती देखी जा रही है |

यही कारण है कि मुंबई जैसे महानगर में वर्षो से रहने वाले गीतकार राजशेखर भले ही होली-दिवाली वहीं मना लेते हैं परन्तु गांव ‘भेलवा’ की मिट्टी व पारंपरिक रिवाजों से लगाव रहने के कारण वे छठ सरीखे महापर्व में घर आना नहीं भूलते | राजशेखर के चुनावी चर्चित गीत-“बिहार में बहार हो नीतीशे कुमार हो………” की तरह ही अनेक छठ गीत-“गोबर से, मिट्टी से……” शारदा सिन्हा के गीतों के संग अब सुनते रहेंगे आप |

छठ इसलिए भी महापर्व है कि गंदगी जैसे महान अभिशाप को मिटाने के लिए न तो एक कदम स्वच्छता की ओर……कहने की जरूरत पड़ती है और न लोहिया स्वच्छता अभियान आयोजित करने की | बिहार की राजधानी पटना तो वर्षों से स्वच्छता का रिकॉर्ड बना रही है | क्या घर, क्या सड़क……. क्या घाट या पोखर चतुर्दिक स्वछता ही स्वच्छता ! इस अवसर पर कुछ श्रद्धालुओं द्वारा भगवान भास्कर की पूजा प्रतिमा स्थापित कर की जाने लगी है | दर्शनार्थियों की भीड़ को भव्य मेला में तब्दील किया जाने लगा है| वही मेला जिससे सामाजिक सौहार्द को बल मिलता है तथा समरसता कायम होती है |

सर्वमान्य मान्यता है कि अंग प्रदेश की धरती होकर बहने वाली चम्पा नदी के तट पर महाभारत काल के महान योद्धा कर्ण ने ही सबसे पहले छठ पर्व की शुरुआत की थी और चम्पानगर (वर्तमान नाथनगर) के ऊँचे टिल्हे से भगवान भास्कर को अर्ध्य देने का श्रीगणेश किया था | और आज यह छठ महापर्व सामाजिक चेतना को सामूहिकता की ओर ले जाने वाला त्योहार बन गया है |

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