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अब सभी बिजली उपभोक्ताओं के लिए होगा प्रीपेड मीटर- ऊर्जा मंत्री

बिहार के ऊर्जावान बिजली मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने यह घोषणा की कि जिस प्रकार प्रीपेड मोबाइल में पैसे कटते हैं, उसी प्रकार प्रीपेड बिजली मीटर में जितनी बिजली की खपत होगी उतनी ही राशि कटती जायेगी | राज्य के कर्मठ ऊर्जा मंत्री ने बिहारवासियों से कहा कि इस कार्यक्रम से जहाँ एक ओर बिजली का दुरुपयोग रुकेगा वहीं दूसरी ओर बिजली बचाने के लिए उपभोक्ताओं की जिम्मेदारी भी बढ़ेगी | साथ ही राज्य के सभी सेक्टरों को निर्बाधरुप से बिजली मिलती रहेगी चाहे वो औद्योगिक क्षेत्र हो या कृषि क्षेत्र अथवा अन्य कोई भी क्षेत्र क्यों न हो |

यह भी बता दें कि उपभोक्ताओं द्वारा निरंतर की जा रही शिकायत कि नियमित रूप से समय पर बिजली बिल नहीं दिये जाते हैं- जिसके फलस्वरूप बिल भुगतान नहीं किये जाने की समस्याओं को दूर करने हेतु राज्य सरकार की रीढ़ माने जानेवाले ऊर्जामंत्री  द्वारा यह कदम उठाया गया है | ऊर्जा मंत्री ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री के सात निश्चयों के तहत हर घर को बिजली देने की योजनान्तर्गत 15 से 20% घरों में बिजली नहीं पहुंच पायी है- उसे 2018 के मार्च तक पहुँचा दिया जायेगा |

यह भी जानिए कि दीपावली के बाद राज्य के हर पंचायत में कनेक्शन-करेक्शन अभियान की शुरुआत होगी | इस अभियान में बिजली के प्रीपेड मीटर कनेक्शन एवं अन्य करेक्शन ऑन स्पॉट दूर कर दिया जायगा | बिल देने का झंझट समाप्त होगा और उपभोक्ताओं के मोबाइल पर ही हमेशा बिल आ जायेगा | बिल का भुगतान भी उपभोक्ता ऑनलाइन करते रहेंगे……. तथा विविध प्रकार की परेशानियों से बचते रहेंगे |

अंत में ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र यादव ने मधेपुराअबतक को बताया कि इस योजना से राज्य के रेवेन्यू का ग्राफ तो बढ़ेगा ही बढ़ेगा, साथ ही लोगों द्वारा अलग से बिल देने का झंझट व परेशानी भी समाप्त हो जायेगा | उन्होंने यह भी कहा कि एग्रीकल्चर फीडर के लिए वर्ल्ड बैंक से ऋण मुहैया करा लिया गया है जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री द्वारा इसी वर्ष नवंबर माह में होने जा रहा है | और आगे बरौनी, कांटी, नवीनगर सहित कजरा-पीरपैंती के सभी यूनिटों व सोलर पावर प्रोजेक्टस मिलाकर बिहार को 6000 मेगावाट बिजली देने की क्षमता होगी और तब बिहारवासियों को चौबीसों घंटे बिजली मिलती रहेगी |

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कोसी की बेटी को पीएम मोदी करेंगे सम्मानित

धन्य हो गयी आज कोसी अंचल के सौरबाज़ार प्रखंड वाले गम्हरिया गाँव के दयानंद की बेटी ‘चन्द्रकान्ता’ की ममतामयी माँ की गोद और सम्पूर्ण घर-आँगन…… जब दयानन्द यादव के द्वार पर सहरसा जिला शिक्षा विभाग के डीपीओ, डीइओ व अन्य पदाधिकारियों ने एक साथ दस्तक दी और उत्साहित ग्रामीणों की उपस्थिति में यही कहा-

विगत 5 सितम्बर को “स्वच्छ संकल्प से स्वच्छ सिद्धि तक” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय निबन्ध प्रतियोगिता में मनोहर उच्च विद्यालय बैजनाथपुर की नवमी की छात्रा चन्द्रकान्ता नैना ने देश में पहला स्थान प्राप्त किया है | शिक्षा विभाग द्वारा 28 सितम्बर को चन्द्रकान्ता को पटना भेजा जाएगा और वहाँ से दिल्ली…….. जहाँ 2 अक्टूबर (गाँधी जयन्ती) के दिन दिल्ली के विज्ञान भवन में भारत के प्रधानमंत्री के हाथों उन्हें सम्मानित किया जाएगा |

यह भी जानिये कि स्वच्छता पर हुई निबन्ध प्रतियोगिता में, सीनियर और जूनियर दोनों ग्रुपों में, बिहार के बच्चे ही देशभर में अव्वल स्थान प्राप्त किये हैं | एक ओर जहाँ सीनियर ग्रुप में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीये नम्बर पर रहे बिहार, पुडुचेरी और हिमाचल प्रदेश वहीँ दूसरी ओर जूनियर ग्रुप में बिहार के भोजपुर जिले के विकास कुमार प्रथम आये तथा गोवा और हिमाचल प्रदेश को द्वितीय एवं तृतीय स्थान मिला |

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सुनिए, चोट खाए शरद ने क्या कहा ?

अब जबकि चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला दल ही असली जेडीयू है और उनकी राज्यसभा सदस्यता जाने में औपचारिकता भर शेष है, फिर भी शरद यादव यह मानने को तैयार नहीं कि पार्टी के भीतर की लड़ाई वे हार चुके हैं। हां, उन्होंने इतना जरूर कहा कि हम पहाड़ से लड़ रहे हैं तो यह सोच कर ही लड़ रहे हैं कि चोट लगेगी ही।

दरअसल, जेडीयू के पूर्व अध्यक्ष पार्टी और राज्यसभा की सदस्यता पर मंडराते संकट पर अपना पक्ष रख रहे थे। कल चुनाव आयोग द्वारा पार्टी पर शरद गुट के दावे पर संज्ञान नहीं लेने और राज्यसभा का नोटिस मिलने के बाद अपना पक्ष रखते हुए उन्होंने कहा कि इन पहलुओं को उनके वकील देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे देश की साझी विरासत पर आधारित संविधान की लड़ाई बचाने की बड़ी लड़ाई के लिए निकल पड़े हैं। बकौल शरद राज्यसभा की सदस्यता बचाना छोटी बात है, उनकी लड़ाई साझी विरासत बचाने की है। सिद्धांत के लिए वे पहले भी संसद की सदस्यता से दो बार इस्तीफा दे चुके हैं।

भविष्य की रणनीति के बारे में शरद ने कहा कि 17 सितंबर को पार्टी कार्यकारिणी और 8 अक्टूबर को राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद जेडीयू बड़े रूप में सामने आएगी। हालांकि कैसे आएगी, इस पर फिलहाल वे कुछ बताने की स्थिति में नहीं। आगे नीतीश पर तंज कसते हुए उन्होंने कहा कि हमारे मुख्यमंत्री मित्र ने खुद राजद प्रमुख लालू प्रसाद से जब महागठबंधन बनाने की पहल की थी, तब भी वह भ्रष्टाचार के आरोपों से बाहर नहीं थे। जबकि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद अचानक शुचिता के नाम पर गठजोड़ तोड़ दिया। यह बिहार के 11 करोड़ मतदाताओं के साथ धोखा है। हमने सिद्धांत के आधार पर ही इसका विरोध किया।

समाजवाद के इस पुराने नेता ने आगे की लड़ाई साझी विरासत के मंच से लड़ने की बात कही। वे लड़ेंगे भी, क्योंकि वे शुरू से धूल झाड़कर फिर से खड़े होने वालों में रहे हैं। लेकिन क्या तमाम आरोपों और मुकदमों से घिरे लालू और उनके परिवार की ‘बैसाखी’ से उनके ‘सिद्धांत’ को कोई गुरेज नहीं है? क्या वे प्रकारान्तर से यह कहना चाहते हैं कि लालू पुत्रों का ‘मॉल’ और मीसा का ‘फॉर्म हाउस’ गरीबों को ‘सामाजिक न्याय’ दिलाने के लिए है? या फिर यह मान लिया जाए कि भारतीय राजनीति में अब भ्रष्टाचार कोई मुद्दा ही नहीं?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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बाढ़ से बर्बादी की होगी भरपाई- मंत्री बिजेन्द्र

 

मधेपुरा जिले के 10 प्रखंडों में प्रलयंकारी बाढ़ से हुई है भारी तबाही | हर मुसीबत में सरकार बाढ़ पीड़ितों की सहायता के साथ है | जन प्रतिनिधि प्रभारी मंत्री व ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव, एससी-एसटी मंत्री डॉ.रमेश ऋषिदेव एवं पूर्व मंत्री नरेंद्र नारायण यादव आदि सहयोग में लगे हैं | जिला के राजनीतिक पार्टियों के अध्यक्षों एवं ब्लाक प्रमुखों द्वारा डीएम मो.सोहैल एवं एसपी विकास कुमार की टीम द्वारा किये गये बाढ़ व राहत कार्यों की समीक्षा बैठक में संतोष व्यक्त किया गया | भला क्यों न करें संतोष व्यक्त- जो डीएम कलकत्ते से प्लेन द्वारा त्रिपाल और प्लास्टिक मंगवाकर दूसरे दिन से ही खाने की सामग्रियों के साथ-साथ शिविरों में महिलाओं को चुड़ी-सिंदूर आदि भी उपलब्ध करा दिया हो, बच्चों और बड़ों के बीच TV मुहैया करा दिया हो और रात-रात भर खुद चैन से सोता नहीं हो………..|

जहाँ जिले के 89 पंचायत के 237 गांवों में लगभग 40 लाख लोग, लगभग 40 हजार पशुधन और जल क्रीड़ा पर प्रतिबंध के बावजूद 30 लोगों की मौत गई हो उस जिले के डायनेमिक डीएम मो.सोहैल सरीखे संवेदनशील जिलाधिकारी को बेचैन रहना वाजिब है | आज की तारीख में भी जहां आलमनगर-चौसा में कुल 9 सामुदायिक रसोई चालू है वही जन स्वास्थ्य और पशु स्वास्थ्य हेतु सम्बंधित विभाग भी कार्यरत है |

जहाँ एससी-एसटी मंत्री डॉ.(प्रो.)रमेश ऋषिदेव ने कहा कि प्रत्येक बाढ़ पीड़ित को सूचीबद्ध कर उन्हें उचित सहयोग प्रदान किया जाय वहीं पूर्व मंत्री व विधायक नरेंद्र नारायण यादव ने प्रभारी मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि क्षतिग्रस्त नहर व बांध सहित क्षतिग्रस्त ट्रांसफार्मर को भी दुरुस्त करने के साथ-साथ मधेपुरा-उदाकिशुनगंज रोड को अविलम्ब हाथ लगाया जाय |

इस अवसर पर बिहार सरकार की रीढ़ माने जाने वाले ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में रविवार को डीआरडीए परिसर वाले झल्लू बाबू सभागार में जिला प्रशासन द्वारा चलाए जा रहे राहत बचाव कार्यों की समीक्षा बैठक में यही कहा कि बारिश के कारण आई बाढ़ से इस वर्ष दो हज़ार करोड़ से ज्यादा की सड़कें क्षतिग्रस्त हो गई है, जबकि एनएच का आकलन किया जाना अभी बाकी है | उन्होंने कहा कि नॉर्वे और नीदरलैंड सरीखे देशों से नई तकनीक लेकर सड़क निर्माण किया जायेगा | ऊर्जा मंत्री ने अंत में यह भी कहा कि बाढ़ का स्थाई समाधान तो मुश्किल है क्योंकि अमेरिका और चीन जैसे विकसित देशों में भी बाढ़ आती ही रहती है |

प्रभारी मंत्री ने निर्देश देते हुए डीएम से यही कहा कि किसानों को खेत में खड़ाकर फसल की स्थिति के साथ फोटोग्राफी अवश्य करावें | राहत वितरण कार्य में भी पूरी पारदर्शिता हो | गलत लोगों को यदि बाढ़ राहत एवं सहायता राशि दी गयी तो संबंधित पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करें |

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क्या फिर कहलाएगा बिहार का इतिहास समूचे भारतवर्ष का इतिहास..?

भगवान बुद्ध के जन्म यानि ढाई हजार वर्ष पूर्व या बाद या फिर उनके समय में भी सदियों तक ‘बिहार’ नाम का कोई भू-भाग प्रकाश में नहीं आया था। 14वीं शताब्दी यानि 1320 ई. में मौलाना मिनहाजुद्दीन-अबु-उमर-ए—रहमान द्वारा ‘तबकात-ए-नासिरी’ जैसे दस्तावेज में सर्वप्रथम ‘बिहार’ शब्द का उल्लेख मिलता है। आगे इतिहास में उद्धृत तथ्यों के आधार पर कम-से-कम इस आशय को विश्वसनीय और प्रामाणिक माना जा सकता है कि ‘बिहार’ शब्द का उत्स बौद्ध धर्म की ‘विहार’ परम्परा से है। यानि बौद्ध विहारों या मठों की बहुसंख्यकता को देखते हुए ही भारत के एक भू-भाग को ‘बिहार’ की संज्ञा प्रदान की गई है। संक्षेप में ईसा के जन्म के 1200 वर्षों के बाद यानि 13वीं शताब्दी में ‘बिहार’ शब्द का जन्म माना जा सकता है और 15वीं-16वीं शताब्दी में जिस भारतीय भू-भाग को ‘बिहार’ राज्य की संज्ञा मिली वही चलते-चलते आज हमारा और आपका ‘बिहार’ बना है।

ये तो हुई ‘बिहार’ के नामकरण की बात। लगे हाथ इसकी राजधानी पटना के नामकरण की पृष्ठभूमि से भी वाकिफ हो लें। प्रारम्भ में बाग-बगीचे और बड़ी तायदाद में खिलने वाले फूलों के कारण गंगा, सोन और गंडक नदियों के संगम पर बसे नगर (वर्तमान पटना) को लोगों ने ‘कुसुमपुर’ कहा। आगे चलकर ‘पुत्रक’ नामक राजकुमार और ‘पाटलि’ नामक राजकुमारी ने विवाहोपरान्त संतान नहीं होने के कारण संतति के बिना भी अपने नाम को जीवित रखने के लिए ‘कुसुमपुर’ का नाम ‘पाटलिपुत्रक’ रख दिया। कालक्रम में ‘पाटलिपुत्रक’ से ‘पाटलिपुत्र’ बना और फिर ‘पटन देवी’ नाम से जुड़कर इसने ‘पटना’ का रूप धारण कर लिया।

1707 में औरंगजेब की मृत्यु होने के 25 वर्ष बाद तक ‘बिहार’ मुगल साम्राज्य का एक अलग प्रान्त बना रहा पर 1732 ई. में कुछ विशेष प्रशासनिक कारणों से इसका विलय ‘बंगाल प्रेसिडेन्सी ऑफ फोर्ट विलियम’ में कर दिया गया। इसके बाद अगले 180 वर्षों तक बिहार ‘बंगाल प्रेसिडेन्सी’ के अधीन रहा जब तक कि डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, मजहरूल हक, अली इमाम आदि के अथक प्रयासों के बाद जॉर्ज पंचम ने 12 दिसम्बर 1911 को अलग बिहार राज्य को मंजूरी नहीं दे दी और 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर बिहार, छोटा नागपुर और उड़ीसा एक प्रदेश के रूप में अस्तित्व में नहीं आ गए।

इस नए प्रदेश को अंग्रेजी में ‘बिहार एंड उड़ीसा प्रोविन्स’ कहा जाता रहा परन्तु आम जनता द्वारा इसे ‘बिहारोत्कल’ के रूप में स्वीकार किया गया। अधिसूचित पाँच प्रमंडल वाले ‘बिहारोत्कल’ प्रान्त में कुल 21 जिलों को शामिल किया गया जो इस प्रकार थे – 1. भागलपुर प्रमंडल – भागलपुर, पूर्णिया, मुंगेर और संथाल परगना (कुल चार जिले), 2. पटना प्रमंडल – पटना, गया और शाहाबाद (कुल तीन जिले), 3. तिरहुत प्रमंडल – मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सारण और चम्पारण (कुल चार जिले), 4. छोटानागपुर प्रमंडल – हजारीबाग, राँची, पलामू, सिंहभूमि और मानभूमि (कुल पाँच जिले) तथा 5. उड़ीसा प्रमंडल – कटक, बालासोर, अंगुल, पुरी और सम्बलपुर (कुल पाँच जिले)। बिहार के सोलह और उड़ीसा के पाँच जिलों को मिलाकर बने ‘बिहार-उड़ीसा’ नामक इस नए सूबे का शासनाधिकार ब्रिटिश हुकूमत के लेफ्टिनेन्ट गवर्नर को सौंपा गया और राजधानी के रूप में अस्तित्व में आया ‘पाटलिपुत्र’ से बना ‘पटना’।

भारत के पहले सम्राट (चन्द्रगुप्त मौर्य) से लेकर पहले राष्ट्रपति (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद) तक की जन्मभूमि है बिहार। एक समय बिहार का इतिहास ही समूचे भारतवर्ष का इतिहास रहा है। शून्य (आर्यभट्ट) से लेकर पहला गणतंत्र (लिच्छवी) तक इसी ने दिया संसार को। माँ सीता का जन्म यहीं हुआ और यहीं महर्षि वाल्मीकि ने ‘रामायण’ की रचना की। बुद्ध और महावीर को यहीं ‘अपने होने का अर्थ’ मिला और यहीं सिक्खों के ‘दसवें गुरु’ गुरु गोविन्द सिंह ने जन्म लिया। महात्मा गांधी ने यहीं के चम्पारण में ‘सत्याग्रह’ का ‘बीज’ बोया और यहीं जयप्रकाश ने सम्पूर्ण क्रान्ति की ‘नींव’ रखी।

वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे मुनि, अशोक और शेरशाह जैसे शासक, विद्यापति और दिनकर जैसे कवि बिहार की मिट्टी की उपज हैं। चाणक्य जैसे गुरु, आर्यभट्ट जैसे खगोलविद्, जीवक जैसे चिकित्सक, पाणिनी जैसे शिक्षाविद्, याज्ञवल्क्य जैसे दार्शनिक, मंडन मिश्र जैसे शास्त्रज्ञ और बाबू कुंवर सिंह जैसे स्वतंत्रता सेनानी की कर्मभूमि बिहार ही है। नालन्दा और विक्रमशिला जैसे ज्ञान के केन्द्र यहीं थे जिनसे कभी सारा संसार प्रकाशित होता था। पर आज हम कहाँ हैं..? बिहार के गौरवशाली इतिहास में हमने क्या और कितना जोड़ा है..? पहले ‘विशिष्टता’ में हमारी कोई सानी नहीं थी और आज हमें ‘विशेष राज्य’ की लड़ाई लड़नी पड़ रही है..?

आज हमारा बिहार 104 साल का हो गया। आज का दिन ‘मील’ के तमाम ‘पत्थरों’ को गिनने और उन्हें सहेजने के साथ-साथ उनमें मील के ‘नए’ पत्थरों को जोड़ने के संकल्प का दिन भी होना चाहिए। आज का दिन आत्ममंथन का होना चाहिए कि हमसे कहाँ और क्या चूक हुई। ‘बिहार दिवस’ पर जब पूरा बिहार रोशनी में नहा रहा होगा तब हमें अपने गौरवशाली अतीत के प्रति पूरी श्रद्धा से सिर झुका कर ये प्रण लेना चाहिए कि बिहार की हर शाम ऐसी ही हो, हमारी रोशनी से एक बार फिर पूरी दुनिया जगमगाए और एक बार फिर बिहार का इतिहास समूचे भारतवर्ष का इतिहास कहलाए..!

Bihar Vidhan Sabha decorated with lights on Bihar Diwas.
Bihar Vidhan Sabha decorated with lights on Bihar Diwas.

[डॉ. भूपेन्द्र मधेपुरी से परिचर्चा के आधार पर मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप]

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लालूजी, ‘मानसिक आज़ादी’ की ये ‘लड़ाई’ अभी और इस तरह क्यों..?

बिहार में गरीबों को मानसिक आज़ादी 1990 के बाद मिली यानि लालू के मुख्यमंत्री बनने पर। जी हाँ, ये कहना है स्वयं आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का। वे केवल इतना ही कहते तो एक बात थी, उन्होंने साथ में ये भी कहा कि उनके उलट भाजपा के लोग आरएसएस के गुरु गोलवलकर की विचारधारा पर चलते हैं। उनकी विचारधारा दलितों और गरीबों का दमन करने की है। उनका आरोप है कि उनके बार-बार कहने पर भी केन्द्र जातीय जनगणना से भागता रहा।

पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए लालू ने कहा कि हम और नीतीश अलग थे इसलिए भाजपा का दांव लोकसभा चुनाव में चल गया। संसद में जिस तरह केन्द्र के मंत्री भाषण दे रहे हैं, उसे देख अफसोस होता है कि हम वहाँ नहीं हैं। हम वहाँ होते तो उनको जवाब मिलता। उन्होंने कहा कि जेएनयू में कन्हैया ने मेरे और नीतीश कुमार के सवालों को उठाया तो केन्द्र सरकार उसे देशद्रोही कह रही है, जबकि वह खुद देशद्रोही है। नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में ही जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान का झंडा फहराया गया।

लालू के अनुसार भाजपा राज्य सरकार को ‘अस्थिर’ करने का मौका खोज रही है। भाजपा के लोग कहते हैं कि लालू प्रसाद सरकार नहीं चलने देंगे। उन्होंने कहा कि लोगों में गलत संदेश ना जाय इसीलिए वे और नीतीश कुमार फूंक-फूंक कर कदम रखते हैं।

नीतीश के साथ अपनी एकजुटता बताने और जताने के लिए लालू ये कहना भी नहीं भूले कि राज्य सरकार का ‘सात निश्चय’ हमारा संकल्प है जिसे पूरा करना है। उक्त कार्यक्रम में कला-संस्कृति मंत्री शिवचंद्र राम, सहकारिता मंत्री आलोक मेहता, एससी-एसटी मंत्री संतोष निराला, पूर्व मंत्री श्याम रजक, विधायक चंदन राम, राजेन्द्र राम, मुंद्रिका सिंह यादव आदि उपस्थित थे।

बिहार की राजनीति में लालू की अहमियत जितना उनके समर्थक मानते हैं, शायद उससे कहीं अधिक उनके विरोधी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि बिहार में जब भी ‘सामाजिक न्याय’ की बात होगी, वो लालू के बिना पूरी नहीं होगी। पर जहाँ तक गरीबों को मानसिक आज़ादी दिलाने के दावे का प्रश्न है, बेहतर यह होता कि लालू ये औरों को कहने देते। अगर उनका ‘अवदान’ सचमुच इतना बड़ा है तो समय उसका ‘मूल्यांकन’ हर हाल में करेगा। ‘मानसिक आज़ादी’ की ये ‘लड़ाई’ अभी और इस तरह क्यों..?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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सुशील मोदीजी, बिहार में अगर अपराध बढ़े हैं तो जवाब सीएम देंगे या लालू..?

भाजपा समेत एनडीए के तमाम दल राज्य की कानून-व्यवस्था को मुद्दा बना बिहार की महागठबंधन सरकार को घेरने में लगे हैं। सरकार कहीं की और किसी भी पार्टी की हो, विपक्षी दल का काम ही है उसे घेरना। जरूरी हो तब भी, ना हो तब भी। इसमें कोई नई बात नहीं। जहाँ तक बिहार की कानून-व्यवस्था का प्रश्न है, उस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की राय अलग-अलग हो सकती है और है भी। अगर थोड़ी देर के लिए मान लें कि बिहार में आपराधिक घटनाएं बढ़ी हैं तो भी सवाल सरकार के मुखिया से होना चाहिए ना कि सरकार में शामिल दलविशेष के मुखिया से। लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा।

बिहार के मुख्य विपक्षी दल भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी बिहार में ‘अपराधियों के कोहराम’ की बात करते हैं लेकिन सवाल पूछते हैं राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव से कि ‘ऐसा कब तक चलेगा’। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अगर पहले की तरह राबड़ी होतीं या सरकार तेजस्वी के नेतृत्व में चल रही होती या फिर मुख्यमंत्री राजद से ही कोई होता तो सुमो का लालू से सवाल करना समझ में आता। तब ये भी मान लिया जाता कि सरकार ‘रिमोट’ से चल रही है और सुमो बीच में वक्त जाया ना कर सीधे ‘रिमोट’ से मुखातिब हैं। लेकिन यहाँ सामने नीतीश हैं। ना केवल चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा गया बल्कि मुख्यमंत्री पद के वो घोषित उम्मीदवार थे। महागठबंधन के सरकार में आने के पीछे ये बहुत बड़ा, शायद सबसे बड़ा फैक्टर रहा है। मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश की क्षमता और सामर्थ्य भी संदेह से परे है। फिर सवाल उनसे ना कर लालू से क्यों..?

सुशील कुमार मोदी का कहना है कि लालू की नसीहत के बाद भी सरकार अपराधियों पर नकेल कसने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि बैंक लूट, निर्माण कम्पनियों के अधिकारियों व कर्मियों को धमकाने और हत्या का सिलसिला अभी थमा भी नहीं कि अपराधियों ने पुलिस को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। वैशाली में एएसआई अशोक कुमार यादव की हत्या राज्य सरकार के लिए गम्भीर चुनौती है। लगभग डेढ़ माह पहले वैशाली के ही लालगंज में एक दारोगा की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। मोदी ने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार के बड़े घटक दल का नेता होने के नाते लालू को अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए और बताना चाहिए कि बिहार में अपराधियों का यह कोहराम कब तक चलता रहेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि इस तरह की घटनाएं चिन्ता का विषय हैं। इनकी कड़ी निन्दा और भर्त्सना होनी चाहिए। लेकिन बात केवल यहीं तक नहीं रहती। राजनीति की ‘गुंजाइश’ ऐसे मौकों पर भी निकल जाती है या निकाल ली जाती है। अभी दो दिन बीते हैं जब एनडीए के घटक दल ‘हम’ के नेता मांझी ने कानून-व्यवस्था के ही मुद्दे पर नीतीश के ‘बेचारा’ होने की बात कही थी और ‘बदनामी’ मोल लेने के बजाए मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने की सलाह दी थी। इस्तीफे की सलाह देकर मांझी जहाँ पहुँचे, लालू से सवाल कर मोदी भी वहीं पहुँच रहे हैं लेकिन अलग कोण से। स्पष्ट है कि नीतीश को लालू के बहाने घेरने की कोशिश की जा रही है। यही कोशिश चुनाव के दौरान भी की गई थी। परिणाम क्या रहा, ये सबके सामने है। कम-से-कम कानून-व्यवस्था और विकास के मुद्दे पर तमाम दलों के बीच सीधा संवाद हो तो बेहतर है। वैसे भी नीतीश के साथ काम करने का सुमो का लम्बा अनुभव है। बदली हुई परिस्थितियों में दोनों आज भले ही अलग-अलग हों, राज्य के हित में कुछ मुद्दों पर तो साथ होकर सकारात्मक भूमिका निभा ही सकते हैं।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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नीतीश ने सबको किया लाजवाब, बिहार में बंद होगी शराब

अभी तुरत बीते चुनाव में भाजपा समेत एनडीए में शामिल तमाम दलों ने नीतीश कुमार को जिन मुद्दों पर घेरने की जी तोड़ कोशिश की उनमें शराब बहुत अहम मुद्दा था। उन पर आरोप लागाए गए कि उन्होंने गांव-गांव, गली-गली में शराब के ठेके खुलवा दिए। सरकार की नीयत पर संदेह करें या ना करें, ये स्वीकार तो करना ही पड़ेगा कि नीतीश की पिछली सरकार में शराब की दुकानें बहुतायत से खुलीं और शराब की इन दुकानों से सरकार के राजस्व में जो भी वृद्धि हुई हो इसके दुष्प्रभाव भी सामने आए। समाज के बड़े तबके में विरोध के स्वर उठने लगे। इस बार के चुनाव में खासकर महिलाओं को लेकर ये बात कही जा रही थी कि मतदान के लिए उनकी लम्बी कतारें शराब के विरोध में तो नहीं थीं..! खैर, चुनाव परिणाम ने इन संदेहों को निर्मूल साबित किया। जनता ने अपने ‘सुशासन बाबू’ पर भरोसा दिखाया था और नीतीश ने उस भरोसे की लाज रखते हुए आज एक बड़ा निर्णय लिया। जी हाँ, मुख्यमंत्री ने अगले साल यानि 2016 की पहली अप्रैल से बिहार में शराबबंदी की घोषणा की।

बता दें कि आज मद्य निषेध दिवस है। पटना के सचिवालय परिसर स्थित अधिवेशन भवन में निबंधन, उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग ने मद्य निषेध दिवस समारोह का आयोजन किया था। कौन जानता था कि ये समारोह महज ‘रस्म अदायगी’ के लिए नहीं है, बल्कि नीतीश इसमें बहुत बड़ा ‘संकल्प’ लेकर शिरकत कर रहे हैं। शराबबंदी की घोषणा के साथ आज का ये समारोह इतिहास में दर्ज हो गया। बड़े ‘निश्चय’ के साथ समारोह को संबोधित करते हुए नीतीश ने कहा कि उत्पाद से मिलने वाले राजस्व में कमी हो जाने से कुछ चीजों के लिए इंतजार कर लिया जाएगा लेकिन शराबबंदी हर हाल में लागू होगी।

मुख्यमंत्री ने इस संबंध में उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग को विस्तृत कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया। शराबबंदी से संबंधित नई नीति पहली अप्रैल, 2016 से लागू कर दी जाएगी। यही नहीं नशा के खिलाफ अभियान चलाने वाले और गांव में शराब की बिक्री बंद कराने वाले स्वयं सहायता समूहों को पुरस्कृत भी किया जाएगा।

शराबबंदी के इस ऐतिहासिक निर्णय के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। कुछ महीने पहले पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में स्वयं सहायता समूह के एक कार्यक्रम में महिलाओं ने नीतीश कुमार से गांवों में शराब बंद कराने का अनुरोध किया था। उस वक्त नीतीश अपना संबोधन खत्म कर चुके थे लेकिन उन महिलाओं की अपील उनके दिल को इस कदर छू गई कि वे दुबारा माइक पर गए और कहा कि अगर उन्होंने सत्ता में वापसी की तो शराबबंदी जरूर लागू करेंगे। महिलाओं, खासकर गरीब परिवार की महिलाओं पर शराब के जहरीले प्रभाव का उन्हें एहसास था। तभी उन्होंने कहा था कि अपनी कही बात से वे पीछे नहीं हटेंगे।

चुनाव के मौसम में कई बातें कही जाती हैं। कहकर भूल जाना या ये कहना कि मेरे कहने का मतलब ‘ये’ था ‘वो’ नहीं इतना आम हो चुका है कि अब इस पर बहस भी नहीं होती। ऐसे में नीतीश का अपना वादा निभाना, और वो भी शपथ लेने के महज कुछ दिनों के भीतर, सुखद आश्चर्य से भर दे रहा है। उन्होंने अपने तमाम विरोधियों और आलोचकों के मुँह पर अचानक बहुत बड़ा ताला जड़ दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश के इस निर्णय की गूंज दूर तलक जाने वाली है।

बिना विलंब इस बड़ी घोषणा से यह स्पष्ट हो गया कि नीतीश की ये नई पारी बेहद खास होगी। उन्हें इस बात का भली भाँति एहसास है कि बिहार की जनता ने किस उम्मीद और विश्वास से उन्हें अपार बहुमत के साथ सत्ता सौंपी है। ‘मधेपुरा अबतक’ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनके इस साहसिक निर्णय के लिए बधाई देता है और आने वाले दिनों में बिहार के हित में ऐसे और निर्णयों की अपेक्षा करता है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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