बिहार में चुनाव धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा है। पहले चरण के लिए नामांकन हो चुके हैं और दूसरे चरण की नामांकन-प्रक्रिया चल रही है। जद्दोजहद के बाद एनडीए और महागठबंधन ने लगभग सारी सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम भी तय कर लिए हैं। अब तक के प्रचार-अभियान में भाजपा बाकी दलों से ज्यादा आक्रामक दिखी है। ‘सर्वे’ और ‘समीकरण’ से भी उसकी बढ़त दिख रही है और एनडीए खेमे में ‘फील गुड’ का माहौल साफ तौर पर देखा जा सकता है। इन ‘अच्छी-अच्छी’ बातों पर ‘दो भूल’ भाजपा को भारी पड़ सकती है।
आखिर वो ‘दो भूल’ है क्या..? ये जानने से पहले ये जानें कि जिन दो लोगों से ये ‘दो भूल’ हुई है वो हैं कौन..? आप सुनकर हैरान होंगे कि इनमें एक भाजपा के वरिष्ठ नेता और देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह हैं तो दूसरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत। ऐसे कद के लोगों से भाजपा ने ऐसी उम्मीद हरगिज ना की होगी। दिल्ली विधान सभा चुनाव में हुई भाजपा की ऐतिहासिक पराजय में नरेन्द्र मोदी के उस एक भाषण का बड़ा योगदान है जिसमें उन्होंने कहा था कि “मेरे ‘अच्छे भाग्य’ से पेट्रोल और डीजल की कीमतें कम हो गई हैं और आम आदमी अधिक बचत करता है तो ‘बदकिस्मत’ व्यक्ति को लाने की क्या जरूरत है।“ उनके इस कथन का ‘संदर्भ’ चाहे जो रहा हो लेकिन उनकी जुबान ‘थोड़ी’ फिसली और भाजपा की किस्मत वहाँ ‘पूरी’ पलट गई। अगर सावधानी ना बरती गई तो बिहार में भी ऐसा होते देर नहीं लगेगी।
बहरहाल, जानते हैं कि बात क्या थी। पहले राजनाथ सिंह की बात। दिल्ली से सबक लेकर भाजपा ने बिहार में मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित ना कर नरेन्द्र मोदी के ‘चेहरे’ के सहारे ही आगे बढ़ने का फैसला किया। जदयू, राजद समेत तमाम पार्टियों ने इस पर तंज कसने में कोई कसर ना छोड़ी। भाजपा को ललकारा गया कि दम है तो अपना उम्मीदवार घोषित करे। सारी पार्टियां जानती थीं कि ये भाजपा की ‘कमजोर नस’ है और भाजपा चुपचाप सारे ‘हमले’ झेलती रही। इतने दावेदार थे यहाँ कि उसे डर था कि किसी एक चेहरे को आगे करना दिल्ली को दुहराने जैसा होगा। भाजपा “एक चुप, सौ सुख” के फार्मूले पर थी और यही ठीक भी था उसके लिए। सारी पार्टियां भी समझ गईं कि ये ‘चुप्पी’ उसकी रणनीति का हिस्सा है। ये मुद्दा अपनी धार खो ही रहा था कि अचानक 6 सितम्बर को राजनाथ सिंह का बयान आया कि भाजपा जल्द ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चुनाव कर लेगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाजपा का संसदीय बोर्ड जल्द इस बात का निर्णय कर लेगा कि बिहार चुनाव में किसे सीएम पद का प्रत्याशी बनाना है। राजनाथ के इस बयान को आए 19 दिन हो गए लेकिन आज तक प्रत्याशी तय करना तो दूर इस बात को लेकर कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई। लोग अब पूछने लगे कि राजनाथ सरीखे नेता ने ये बयान आखिर किस आधार पर दिया था..? इससे बिहार में भाजपा के पास कोई ‘प्रतिनिधि’ चेहरा ना होने की ‘कमजोरी’ एक बार फिर उजागर हुई और कुछ नहीं। महागठबंधन को भी दोबारा ‘व्यंग्य-बाण’ छोड़ने का मौका मिल गया सो अलग।
खैर, राजनाथ के बयान से तो बात ‘व्यंग्य-बाण’ के आस-पास थी। मोहन भागवत के बयान से तो पूरा खेल ही बिगड़ जाने का डर है। जी हाँ, आरएसएस प्रमुख ने आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइज़र’ में बयान दिया है कि आरक्षण को हमेशा राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया गया है। आगे उन्होंने कहा कि एक गैर राजनीतिक समिति का गठन होना चाहिए जो समीक्षा करे कि किसे आरक्षण की जरूरत है और कब तक..? भागवत के इस बयान के आते ही आरक्षण का जिन्न बाहर निकल चुका था और भाजपा बचाव की मुद्रा में थी। पार्टी ने तुरत कहा कि वह आरक्षण की समर्थक है और भागवत के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है। लेकिन तब तक ये मुद्दा बन चुका था। नीतीश कुमार ने कहने में जरा भी देर ना की कि आरएसएस का जो विचार है वही भाजपा का विचार है और ये भी कि भाजपा बिहार चुनाव के कारण अपने को इस बयान से अलग कर रही है। अब जिस किसी ने उसे वोट किया वो अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारेगा। उधर लालू अपने अंदाज में दहाड़ रहे थे कि माँ का दूध पिया है तो आरक्षण खत्म करके दिखाओ। तुम आरक्षण खत्म करने की बात कहते हो, हम इसे आबादी के अनुपात में बढ़ाएंगे। लगे हाथ उन्होंने ये भी पूछ लिया कि हाल ही में ‘पिछड़ा’ बने मोदी बताएं कि अपने आका मोहन भागवत के कहने से आरक्षण खत्म करेंगे या नहीं..?
मोहन भागवत ने गलत कहा या सही कहा, ये यहाँ विचारणीय नहीं है। यहाँ बात बिहार में भाजपा की संभावनाओं को लेकर हो रही है। इस लिहाज से देखा जाय तो भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की बात गलत समय उठाई है। कम या ज्यादा इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। इसी तरह राजनाथ ने सीएम प्रत्याशी की घोषणा जल्द करने की बात हो सकता है केन्द्रीय नेतृत्व स्तर पर हुए किसी विमर्श के आधार पर कही हो लेकिन व्यावहारिक तौर पर भाजपा के लिए जो ‘उचित’ या ‘सम्भव’ ना हो उसे मीडिया में कहने की जरूरत क्या थी..?
समीकरण, समय और संवाद के संयोग से ही सियासत में सफलता मिलती है। समीकरण पक्ष में हो, समय भी साथ दे रहा हो लेकिन संवाद में जरा भी चूक हो जाय तो संयोग बिगड़ने में देर नहीं लगती। इस संवाद के कारण भाजपा ने सफलता और असफलता दोनों का स्वाद चखा है। इस चुनाव में उसे क्या मिलेगा ये उसके द्वारा बरती गई सावधानी से ही तय होगा।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप