क्या बीजेपी ने बिहार में हार मान ली है और वो भी दो चरण शेष रहते..? पहले एक राज्य के चुनाव के लिए मोदी के कद के प्रधानमंत्री को तमाम जिलों और केन्द्र के दर्जनों मंत्रियों को गली-मुहल्लों तक उतार देना, दूसरे इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया का ‘अति’ आक्रामक उपयोग और तीसरे लालू और नीतीश पर जाति की राजनीति का आरोप लगाते-लगाते स्वयं उससे भी आगे निकल धर्म के नाम पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कुछ ऐसा ही बयां करती है।
भाजपा की ‘हिन्दूवादी’ छवि कोई छिपी हुई या छिपाई जाने वाली चीज नहीं। अब तक अपनी इस छवि को ‘भुनाने’ का शायद ही कोई मौका पार्टी ने छोड़ा हो। लेकिन सभाओं और बयानों में ‘राजनीतिक समझदारी’ और ‘सामाजिक जिम्मेदारी’ बरतने में कोई कोताही नहीं बरती जाती थी। भाजपा के ‘मोदीयुग’ में भी वाजपेयी का ‘संस्कार’ बहुत हद तक बचा था। पर अब उस ‘धरोहर’ की धज्जियां उड़ रही हैं। ये काम कोई भी करे, निन्दनीय होगा लेकिन जब ये काम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष करें तो बात निन्दा से आगे की हो जाएगी।
चौथे और पाँचवें चरण के प्रचार के क्रम में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कल 29 अक्टूबर को बिहार के बेतिया में थे। यहाँ एक चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अगर बिहार में बीजेपी हारती है तो पटाखे पाकिस्तान में जलेंगे। शाह का कहना था कि बीजेपी के हारने पर सबसे ज्यादा खुश जेल में बंद शहाबुद्दीन होगा। चलिए मान लेते हैं कि आपराधिक छवि वाले बाहुबली नेता शहाबुद्दीन लालू की पार्टी से सांसद रह चुके हैं और इस कारण यहाँ तक जबरन उनकी बात का तुक निकाल लें तो भी इस बात का तुक भला कौन निकालेगा कि 8 नवंबर को परिणाम भले ही पटना में निकलेंगे लेकिन पटाखे पाकिस्तान में जलाए जाएंगे..?
क्या ‘पाकिस्तान’ से शाह का मतलब ‘मुसलमान’ से है..? अगर हाँ, तो क्या भाजपा के अध्यक्ष मान चुके हैं कि उनकी पार्टी को मुस्लिम मत बिल्कुल नहीं मिल रहे..? क्या ये हताशा नहीं है भाजपा की..? हाँ, इसे हताशा ही कहेंगे क्योंकि शाह का बयान जुबान फिसलने की सीमा से बहुत आगे की बात है।
सार्वजनिक मंच की एक अलग ‘गरिमा’ और ‘सीमा’ होती है और जब आप एक बड़े दल के बड़े नेता हों तो आपसे इन बातों की अतिरिक्त अपेक्षा होती है। अगर गरिमा और सीमा किसी कारण आप भूल भी रहे हों तब भी मूलभूत ‘समझदारी’ और ‘सभ्यता’ की उम्मीद तो आपसे की ही जाती है। पर ना जाने अमित शाह कैसे इस तरह की भूल कर बैठे..?
शाह उत्तर प्रदेश को दुहराने की प्रत्याशा में लम्बे समय से बिहार में कैम्प कर रहे हैं। पर अब लगता है कि उन्हें ‘दिल्ली’ की आशंका सताने लगी है। पिछले तीन चरणों में मतदान का जो प्रतिशत रहा है तथा जातियों की जिस तरह की गोलबंदी देखने को मिली है उससे भाजपा कुछ ज्यादा ही सशंकित हो गई है। भाजपा का खेल बिहार में अगर बिगड़ता है तो वो स्थानीय कारणों से कम और मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए बयान और अब शाह के पाकिस्तान में पटाखे छूटने वाले बयान से ज्यादा बिगड़ेगा। अमित शाह इस तरह के बयानों से गुजरात के अपने ‘दागदार अतीत’ की याद बिहार को ना दिलाएं तो ही बेहतर होगा उनके लिए और उनकी पार्टी के लिए भी।
मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप