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चंद्रास्वामी: बीते कल की ‘सुर्खी’ एक बार फिर सुर्खियों में

Chandraswami

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तांत्रिक, ज्योतिष, आध्यात्मिक गुरु, गॉडमैन या राजनेताओं और उद्योगपतियों के दलाल – क्या थे चंद्रास्वामी? 1990 के दशक में खासा चर्चित यह चेहरा जितना अपने ‘प्रभाव’ के लिए जाना जाता था उतना ही विवादों के लिए। पर पीवी नरसिम्हा राव के सत्ता के शीर्ष पर रहते एक दौर ऐसा भी रहा जब चंद्रास्वामी की तूती बोलती थी और उनके आभामंडल के आगे बड़े-से-बड़े नतमस्तक थे। कारण कि नरसिम्हा राव के तथाकथित आध्यात्मिक गुरु थे चंद्रास्वामी। वहीं भारत के एक और पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सार्वजनिक तौर पर बेहिचक कहा करते कि चंद्रास्वामी हमारे दोस्त हैं।

चंद्रास्वामी का वक्त वर्षों पहले ढल चुका। सुर्खियों से उनकी विदाई कब की हो चुकी। पर बीते मंगलवार को इस दुनिया से उनकी विदाई ने उन्हें एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया। बताया जाता है वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 1948 में जन्मे और अभी-अभी रुखसत हुए इस बेहद दिलचस्प शख्सियत का असली नाम नेमिचंद था और वे जैन समुदाय से ताल्लुक रखते थे।

चंद्रास्वामी तंत्रविज्ञान के कितने बड़े ज्ञाता थे ये ठीक-ठीक कहना मुश्किल है लेकिन उनके ‘तंत्र’ का जाल कितनी दूर तक और कितने गहरे फैला था, इसका अंदाजा उनके मुरीदों की फेहरिस्त से लगाया जा सकता है, जिसमें भारत के सैकड़ों राजनेताओं, उद्योगपतियों, नौकरशाहों से लेकर हॉलीवुड अभिनेत्री एलिजाबेथ टेलर और ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मारग्रेट थैचर तक का नाम शामिल है। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब ‘वॉकिंग विद लायन्स: टेल्स फ्रॉम अ डिप्लोमेटिक पास्ट’ में लिखा है कि 1975 में ब्रिटेन में चंद्रास्वामी और मारग्रेट थैचर की मुलाकात हुई थी। उस मुलाकात में चंद्रास्वामी ने कह दिया था कि अगले तीन-चार साल में थैचर प्रधानमंत्री बनेंगी और 9, 11 या 13 वर्षों तक प्रधानमंत्री बनी रहेंगी। अब इसे संयोग कहें या चंद्रास्वामी की तथाकथित ‘तंत्र-शक्ति’ कि थैचर उनके कहे समय में प्रधानमंत्री बनीं और पूरे 11 साल तक रहीं। नटवर सिंह ने इस बात की भी पुष्टि की है कि थैचर उस मुलाकात में बकायदा चंद्रास्वामी के कहे मुताबिक लाल रंग के वस्त्र में आई थीं और यहां तक कि चंद्रास्वामी की दी ताबीज भी उन्होंने बांध रखी थी।

चंद्रास्वामी का विवादों से गहरा नाता रहा। कहा जाता है कि उनका ‘आश्रम’ फंडिग के लिए उद्योगपतियों को तलाश रहे नेताओं और अपने अनुकूल नीतियां बनवाने व लाइसेंस-परमिट पाने के लिए नेताओं को ढूंढ रहे उद्योगपतियों की मिलन-स्थली था। हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय सौदागर अदनान खशोगी से उनके रिश्ते बताए जाते हैं। उन पर ये आरोप भी लगा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या में उनका हाथ था। राजीव हत्याकांड की जांच करने वाले जैन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया था। लंदन के एक बिजनेसमैन से एक लाख डॉलर की धोखाधड़ी के मामले में 1996 में वे जेल भी गए। उनके ऊपर विदेशी मुद्रा उल्लंघन के कई गंभीर मामले चले।

चंद्रास्वामी पर लगे आरोपों या सत्ता पर उनकी पकड़ के दावों में कितनी सच्चाई है, इसका लेखा-जोखा रखने से कुछ हाथ आने वाला नहीं, लेकिन एक व्यक्ति एक साथ कितने चेहरे रख सकता है और पद या पैसा पाने की ‘कमजोरी’ रखने वालों को सीढ़ी बनाकर कितने ‘ऊपर’ तक का सफर तय कर सकता है, इसकी समझ तो हासिल की ही जा सकती है।

 ‘मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

 

 

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