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‘बड़े’ और ‘छोटे’ भाई ने दिया ‘समझदारी’ का परिचय

Lalu-Nitish

Lalu-Nitish

कहा जा रहा था कि 5 जनवरी को प्रकाश-पर्व के दौरान पटना के गांधी मैदान में हुए कार्यक्रम, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिरकत की थी, में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित अन्य चुनिंदा हस्तियों के साथ मंच पर नहीं बिठाए जाने से लालू सख्त नाराज हैं और इसकी शिकायत वे नीतीश से करेंगे। पर लालू ने संयम और समझदारी का परिचय देते हुए न केवल इस मसले को तूल नहीं दिया बल्कि यह कह कर सबको उलटा चौंका दिया कि “हमें किसी चीज की शिकायत नहीं है। पूजा-पाठ जमीन पर बैठकर करते हैं… और वह गुरु का दरबार था।“

गौरतलब है कि इस कार्यक्रम में लालू अपने दोनों बेटों के साथ मंच के सामने बिछी दरी पर बैठे थे। राजनीतिक गलियारे में इस बात की जमकर चर्चा हुई। आरजेडी खेमे में तो इस पर खासा हो-हल्ला मचा। पार्टी के उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने यहाँ तक कहा कि ऐसा नहीं लग रहा था कि गुरु गोविन्द सिंह जी के 350वें प्रकाश-पर्व के लिए इंतजाम महागठबंधन की सरकार ने किए थे। बल्कि ऐसा लग रहा था कि सत्ता में शामिल किसी एक पार्टी ने ये इंतजाम किए हों। उन्होंने स्पष्ट कहा कि लालू को मंच पर जगह नहीं देना लोगों को पसंद नहीं आया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री अशोक कुमार चौधरी ने भी इसको लेकर विरोध जताया था। पर इन सबके उलट लालू, यहाँ तक कि विरोधियों द्वारा ‘अपरिपक्व’ कहे जाने वाले उनके बेटों तेजप्रताप और तेजस्वी ने भी, कोई तल्ख बयान नहीं दिया। नीतीश के प्रति कोई भी ‘कड़वाहट’ उनकी ओर से तो नहीं ही दिखी, मीडिया को भी इस मुद्दे को हवा देने से उन्होंने रोका।

लालू ने इस पूरे मामले को जिस तरह हैंडल किया और प्रकाशोत्सव को लेकर बिहार सरकार के काम की सराहना की उसका असर नीतीश पर भी दिखा। सोमवार को पटना में लोकसंवाद कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि प्रकाशोत्सव के शानदार आयोजन की चारों ओर चर्चा है, पर कुछ लोग लालू प्रसाद जी के नीचे बैठने की बात उछाल रहे हैं। उनको यह भी पता नहीं कि गांधी मैदान के दरबार हॉल में धार्मिक कार्यक्रम का मूल आयोजनकर्ता कौन था। मूल आयोजनकर्ता गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी थी। सिख समाज में सब लोग जमीन पर ही बैठते हैं। जो लोग मंच पर थे, वे भी कुर्सी पर नहीं बैठे थे। राष्ट्रपति और प्रधानंमत्री के कार्यक्रम में मंच पर कौन बैठेगा, यह दिल्ली से ही तय होता है। बहरहाल, इतना कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि ‘बड़े’ और ‘छोटे’ भाई ने पूरे मामले में अत्यंत समझदारी का परिचय दिया, और ये काबिलेतारीफ है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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