बिहार में मानसून समय से तो आया लेकिन जाने क्यों रूठ गया! आलम यह है कि बादल आते तो हैं लेकिन बिना बरसे चले जाते हैं! मानसून को जैसे किसी की नज़र लग गई। मायूस किसान की नज़रें आसमान को ताक-ताक कर निराश हो चली हैं। उनकी चिन्ता है कि बरही में मानसून की वर्षा नहीं होने के कारण वे खेती शुरू नहीं कर पा रहे हैं। बारिश के अभाव में खेतों में नमी नहीं है और ऐसे में जुताई टेढ़ी खीर है उनके लिए।
बता दें कि बिहार में अब तक एक चौथाई से भी कम बारिश हुई है। राज्य के 24 जिलों में अब तक इतनी बारिश भी नहीं हुई है कि धान के बीज डाले जाएं। एक आँकड़े के मुताबिक बिहार में अब तक 168.8 मिलीलीटर बारिश होनी चाहिए थी लेकिन हुई है मात्र 128.8 मिलीलीटर। गौरतलब है कि पिछले साल इस दौरान दो लाख तेरह हजार हेक्टेयर में धान की बुआई हो चुकी थी, जबकि इस साल अभी तक दो लाख दस हजार हेक्टेयर में ही धान की बुआई हो सकी है, जो कि लक्ष्य से 38 प्रतिशत कम है।
कहा जाता है कि आर्द्रा नक्षत्र में झमाझम बारिश होने के बाद ही धान की उपज अच्छी होती है लेकिन राज्य में अभी तक इस नक्षत्र में कहीं भी ऐसी बारिश नहीं हुई। कुल 27 नक्षत्रों में 9 नक्षत्र वर्षा ऋतु के होते हैं और इनमें से तीन गुजर चुके हैं लेकिन किसानों की मायूसी है कि दूर ही नहीं हो रही। हाँ, मक्के की खेती कमोबेश ठीक कही जा सकती है।
पटना मौसम विज्ञान केन्द्र के अनुसार राज्य के भोजपुर, रोहतास, कैमूर, भागलपुर, पूर्वी चम्पारण, लखीसराय सहित कई ऐसे जिले हैं जिनमें इस साल आवश्यकता से कम बारिश हुई है। दूसरी ओर मधुबनी, सुपौल, औंरंगाबाद, बक्सर और अररिया जैसे कुछ जिलों में औसत से कुछ ज्यादा बारिश हुई है। मानसून की यही अनियमितता हर साल बिहार की कमर तोड़ देती है और उसे बाढ़ और सुखाड़ का सामना एक साथ करना पड़ जाता है।
बहरहाल, राज्य सरकार ने मानसून का रुख देखते हुए सभी जिलाधिकारियों को बाढ़-सुखाड़ के खतरे को लेकर अलर्ट कर रखा है। किसानों को डीजल सब्सिडी जारी रखी गई है। आपदा प्रबंधन एवं कृषि विभाग के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी स्थिति पर नज़र रख रहे हैं। वैसे मानसून के लिहाज से अगले कुछ दिन बड़े महत्वपूर्ण हैं। क्या पता मानसून की नाराज़गी दूर ही हो जाय!
‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप