Rajyogini Ranju Didi and Dr.Bhupendra Narayan Yadav Madhepuri

प्रत्येक मनुष्य के जीवन में राजयोग के सतत अभ्यास से मिलती है शांति

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मधेपुरा के सुख शांति भवन में 24 जून को प्रथम प्रशासिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती की 57वीं पुण्यतिथि श्रद्धालुओं द्वारा मनाई गई। सर्व प्रथम पुण्यतिथि समारोह का उद्घाटन संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर संचालिका राजयोगिनी रंजू दीदी, मुख्य अतिथि समाजसेवी डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी, विशिष्ट अतिथि समाजसेविका रागिनी कुमारी, पूर्व प्रमुख विनय वर्धन उर्फ खोखा यादव, पूर्व उपाध्यक्ष नप रामकृष्ण यादव, पूर्व उपाध्यक्ष यदुवंशी, प्रोफेसर शिवकुमार, किशोर भाई, सतीश भाई, ओम प्रकाश यादव आदि सहित श्रद्धालु मातृशक्ति ने किया। मां जगदंबा की तस्वीर पर सबों ने पुष्पांजलि की और अपना-अपना उद्गार व्यक्त किया।

इस अवसर पर समारोह की अध्यक्षता कर रही राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी रंजू दीदी ने विस्तार से परिचय देते हुए तथा ओम राधे को मम्मा कहते हुए कहा कि मामा का ईश्वर में असीम श्रद्धा व विश्वास था। मम्मा का समर्पण एवं तपोबल उच्चस्तरीय ही नहीं बल्कि सौ फ़ीसदी शुद्ध था। समाज सेविका विशिष्ट अतिथि नेत्री रागिनी कुमारी ने अपना व्यक्तिगत अनुभव सभी मौजूद श्रद्धालुओं के साथ साझा किया और विस्तार से बताया कि जब से ब्रम्हाकुमारी विश्वविद्यालय के संपर्क में आई हूं तब से कितना परिवर्तन हुआ है वह गिनाना संभव नहीं।

मुख्य अतिथि के रुप में समाजसेवी-साहित्यकार डॉ.भूपेन्द्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि जो ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय आज लगभग 145 देशों में कार्यरत है, आरंभ में उसके दो ही स्तंभ रहे थे एक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा लेखराज कृपलानी और दूसरी मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती जो प्रथम मुख्य प्रशासिका की भूमिका में रही थी। मां जगदंबा के स्मरण मात्र से ही हमारी बौद्धिक शक्तियां अनुशासित होने लगती है। तभी तो आज उनके परी निर्वान के 56 वर्ष बाद भी छोटे-बड़े सभी श्रद्धालुगण यही बोलते हैं-

यादों से उतरकर नैनों में

नैनों से दिल में समा जाओ

बच्चे पुकारते हैं मम्मा

फिर से धरती पर आ जाओ।

 

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