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बिहार में शराबबंदी के बाद दहेजबंदी का बिगुल

शराबबंदी की सफलता से उत्साहित बिहार की नीतीश सरकार अब समाज-सुधार का एक और बड़ा अभियान शुरू करने जा रही है। खास बात यह कि इस सुधार की प्रेरणा-स्रोत भी शराबबंदी की तरह महिलाएं हैं और शोषण व पीड़ा से उनकी मुक्ति ही इसका केन्द्रीय उद्देश्य है। जी हां, इस बार सरकार जिस कुरीति के विरुद्ध बिगुल फूंकने जा रही है, वो है सदियों से हमारे समाज को डंसती आ रही दहेज की प्रथा। इसी के साथ बालविवाह के खिलाफ भी लड़ाई तेज होगी। शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समाज कल्याण विभाग के कामकाज की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे बाल विवाह और दहेज प्रथा के विरुद्ध बड़े जागरूकता अभियान की योजना बनाएं।

गौरतलब है कि पिछले सोमवार को महिलाओं के लिए विशेष रूप से आयोजित लोक संवाद कार्यक्रम में एक युवती ने मुख्यमंत्री को यह परामर्श दिया था कि वह शराबबंदी की तरह ही दहेजबंदी का अभियान चलाएं। वहीं एक युवती ने बालविवाह को लेकर सलाह दी थी कि ऐसा कानून बनना चाहिए कि जब तक लड़की की पढ़ाई पूरी न हो जाए तब तक उनकी शादी नहीं हो। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री ने कहा कि यह महत्वपूर्ण बात है कि अब महिलाएं इन मुद्दों को लेकर मुखर हैं। उन्होंने दहेज और बालविवाह के विरुद्ध चलाए जाने वाले अभियान को कारगर और प्रभावी बनाने के लिए निर्देश दिया कि प्रस्तावित कैंपेन में समाज कल्याण विभाग स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास विभाग को भी साथ ले।

इस बैठक में नीतीश कुमार ने ‘मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना’ के सभी अवयवों की समीक्षा करने को कहा। उन्होंने कहा कि यह बात सामने आनी चाहिए कि इन योजनाओं से कितने लोगों को लाभ हुआ है। मुख्यमंत्री ने कन्या सुरक्षा योजना की बात भी कही। इसके अतिरिक्त बालविवाह प्रतिरोध अधिनियम 2006, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन, फूड सेफ्टी एंड न्यट्रिएंट, आंगनबाड़ी संचालन, आंगनबाड़ी भवन निर्माण, मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना, शताब्दी कुष्ठ कल्याण योजना, पुनर्वास गृह, बसेरा, वृद्धा आश्रम निर्माण एवं नि:शक्तजन विवाह प्रोत्साहन अनुदान योजना पर भी चर्चा की गई। समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा, समाज कल्याण विभाग की प्रधान सचिव वंदना किनी एवं महिला विकास निगम की प्रबंध निदेशक एन विजयलक्ष्मी इस महत्वपूर्ण बैठक का हिस्सा रहीं।

 

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पटना महावीर मंदिर में क्यों हैं एक साथ दो हनुमानजी ?

आप बिहार के हैं और राजधानी पटना न आए हों सामान्यतया ऐसा नहीं हो सकता और पटना आने पर स्टेशन स्थित प्रसिद्ध महावीर मंदिर आपने न देखा हो ये भी मुमकिन नहीं। आपने जरूर सुना या पढ़ा होगा कि इस मंदिर की गिनती उत्तर भारत के गिने-चुने मंदिरों में होती है। लेकिन सच यह है कि देश भर के चुनिंदा मंदिरों की सूची बनाई जाए जहां श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हो और चढ़ावों का अंबार लगता हो, तब भी पटना का हनुमान जी का ये मंदिर तिरुपति के बालाजी मंदिर, शिर्डी के सांई बाबा मंदिर और जम्मू के वैष्णो देवी मंदिर आदि के साथ शीर्ष के कुछ मंदिरों में शुमार किया जाएगा। रामनवमी के दिन तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं की लाईन कई किलोमीटर तक लगी होती है। एक अनुमान के मुताबिक इस दिन राम के इस अप्रतिम भक्त के दर्शन के लिए तीन से चार लाख श्रद्धालु जुटते हैं।

Patna Mahavir Mandir
Patna Mahavir Mandir

तो चलिए रामनवमी के पावन अवसर पर इस मंदिर की विशेषताओं से रूबरू होते हैं। सबसे पहली और अहं बात यह कि यहां आकर शीश नवाने वाले किसी भक्त ने आज तक ये नहीं कहा कि उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई। इस मंदिर की स्थापना 1730 ई. में स्वामी बालानंद ने की थी। तब यह मंदिर बैलगाड़ी से चंदे में एक-एक ईंट एकत्र कर बना था। साल 1900 तक यह मंदिर रामानंद संप्रदाय के अधीन रहा। उसके बाद 1948 तक इस पर गोसांई संन्यासियों का कब्जा रहा। साल 1948 में पटना हाईकोर्ट ने इसे सार्वजनिक मंदिर घोषित कर दिया। उसके बाद आचार्य किशोर कुणाल के प्रयास से साल  1983 से 1985 के बीच वर्तमान मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और आज इस मंदिर का भव्य स्वरूप सबके सामने है।

इस मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है और मंदिर में हनुमानजी समेत सारे देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं, परन्तु गर्भगृह में बजरंग बली की मूर्ति है और कमाल की बात यह कि एक नहीं एक साथ दो मूर्तियां हैं – हनुमानजी की युग्म मूर्तियां। आप याद करें, जब भी आप इस मंदिर गए होंगे, फूलवाले ने आपको दो माला दी होगी ताकि हनुमानजी की दोनों मूर्तियों पर माला चढ़ सके। कभी आपने सोचा कि यहां एक साथ दो मूर्तियां क्यों हैं? देश भर में हनुमानजी के हजारों मंदिर हैं लेकिन कहीं आपने ऐसा नहीं देखा होगा। चलिए, आज हम बताते हैं। दरअसल यहां हनुमानजी की दो मूर्तियां दो अलग आशय से रखी गई हैं। कहा जाता है कि दो मूर्तियों में एक मूर्ति अच्छे लोगों के कार्य पूर्ण करती है और दूसरी बुरे लोगों की बुराई दूर करती है। एक तरह से भक्तों के शीघ्र कल्याण के लिए स्वयं को ही दो हिस्सों में बांट लिया हनुमानजी ने। है न कमाल की बात!

अब बात हनुमानजी के प्रिय भोग लड्डू की। आपको आश्चर्य होगा कि 1930 तक यहां लड्डू की एक भी दुकान न थी और आज आलम यह है कि प्रतिदिन औसतन 25 हजार किलो लड्डू की बिक्री केवल एक दुकान से होती है जो मंदिर परिसर में मंदिर प्रशासन द्वारा ही चलाई जाती है। यहां तिरुपति के कारीगर खास तौर पर नैवेद्यम लड्डू तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त अगल-बगल दर्जनों अन्य दुकानें भी हैं जिनमें बेसन और मोतीचूर के कई किस्म के लड्डू आप खरीद सकते हैं।

सच ही कहा गया है – हरि अनंत हरि कथा अनंता। अभी इस मंदिर से जुड़ी कई ऐसी बाते हैं जो आपको चकित करेंगी। फिलहाल चलते-चलते बस एक बात और। इस मंदिर के दूसरे तल पर आप कांच का एक बड़ा बरतन देखेंगे, जिसमें रामसेतु का पत्थर रखा हुआ है। आप उस समय दांतो तले ऊंगली दबा लेंगे जब देखेंगे कि 15 किलो वजन वाला यह पत्थर कितने आराम से पानी में तैरता रहता है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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प्रणब मुखर्जी पूरा करेंगे बिहार के लिए डॉ. कलाम का सपना

बिहार के लिए बड़े सौभाग्य सौभाग्य की बात है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति मिसाईलमैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने यहां के प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुत्थान के लिए जो किया, कुछ वैसा ही वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी विक्रमशिला विश्वविद्यालय के लिए करने जा रहे हैं। आठवीं-नौवीं सदी के इस गौरवशाली विश्वविद्यालय का भग्नावशेष देखने भागलपुर के कहलगांव अंतीचक पहुंचे महामहिम ने कहा कि विक्रमशिला में ऊंचा से ऊंचा स्तरीय विश्वविद्यालय बनना चाहिए। ऐसी धरोहर को केवल म्यूजियम का शो पीस बनाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करेंगे।

President Pranab Mukherjee Visiting Vikramshila University Ruins
President Pranab Mukherjee Visiting Vikramshila University Ruins

विक्रमशिला के भग्नावशेषों का मुआयना कर अभिभूत दिख रहे राष्ट्रपति ने कहा कि एक जमाना था जब राजा और आमलोग बड़े-बड़े विश्वविद्यालय स्थापित करते थे। तीसरी सदी से तक्षशिला, चौथी सदी से नालंदा और आठवीं-नवीं सदी से विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने लोगों का मार्गदर्शन किया। शिक्षा, शोध और तंत्र को प्रोत्साहन दिया। यहां पढ़ने के लिए चीन, यूनान और मिस्र से छात्र, शिक्षक व शोधकर्ता आते थे। उन्होंने बताया कि जब वे कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ते थे उस समय से उनके मन में इन धरोहरों को देखने की इच्छा थी। विदेश मंत्री के रूप में जब वे पाकिस्तान गए थे तो उन्हें तक्षशिला को देखने का मौका मिला था। वहीं पर विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में नालंदा के पुनरुत्थान का प्रस्ताव सिंगापुर और चीन से आया, जिसे भारत सरकार ने मंजूर किया और नालंदा एक बार फिर जी उठा। अब विक्रमशिला की बारी है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में लोकसभा में विक्रमशिला में केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की थी और इसके लिए चार-पांच सौ करोड़ रुपए भी मंजूर किए थे। तेज धूप में विक्रमशिला भग्वानवेष परिसर के बाहर खड़े हजारों लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने इस बात का उल्लेख किया और इसके गौरव को वापस हासिल करने का भरोसा दिलाया।

अब आप ही बताएं, बिहार के लिए डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों को पूरा होने और यहां के गौरवशाली अतीत को एक बार फिर करवट लेने से भला कौन रोकेगा! जब देश के प्रथम नागरिक स्वयं इसकी घोषणा कर रहे हों और इस घोषणा को अमलीजामा पहनाने के लिए केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और राज्य में नीतीश कुमार जैसे सजग-सक्षम-सक्रिय प्रहरी हों!

चलते-चलते बता दें कि इस मौके पर बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद, केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी, गोड्डा (झारखंड) के सांसद निशिकांत दूबे, बिहार के जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री शहनवाज हुसैन भी उपस्थित थे। इसके बाद भागलपुर से लौटकर दिल्ली जाने के क्रम में राज्यपाल रामनाथ कोविंद और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महामहिम को पटना हवाई अड्डे पर विदाई दी।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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आतंकवाद से अधिक खतरनाक है प्यार !

अगर कहा जाय कि प्यार आतंकवाद से अधिक खतरनाक होता है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी? आप चौंकेंगे, हंसेंगे या सवाल करने वाले के मानसिक संतुलन को संदेह से देखेंगे? आप कुछ सोचें या करें उससे पहले बीते 15 सालों के सरकारी आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं, जो चीख-चीख कर बता रहे हैं कि भारत में आतंकवाद से ज्यादा जानें प्यार के चलते गई हैं।

जिन आंकड़ों की बात हम कर रहे हैं, वे साल 2001 से 2015 की अवधि के हैं। इन 15 सालों में आतंकवादी घटनाओं में जहां 20,000 लोगों की जानें गईं, वहां इसी अवधि में प्यार से जुड़े मामलों में 38,585 हत्या और गैर इरादतन हत्या जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम दिया गया। यही नहीं, इसी दौरान प्यार में हारने और इससे जुड़ी अन्य वजहों से करीब 79,189 लोगों ने मौत को गले लगा लिया। इस अवधि में 2.6 लाख अपहरण के केस भी दर्ज किए गए, जिनमें महिला के अपहरण की मुख्य वजह उससे शादी रचाने का इरादा था।

आंकड़ों के मुताबिक इन 15 सालों में प्रतिदिन 7 हत्याओं, 14 आत्महत्याओं और 47 अपहरण के मामलों का जिम्मेदार था प्यार। प्यार को लेकर परिजनों का अस्वीकार, एकतरफा प्यार और जबरन शादी जैसे कारण इसमें शामिल हैं। दूसरी ओर इसी दौरान आतंकवादी घटनाओं में जिन 20,000 लोगों की मौत हुई, उनमें सुरक्षा बल और आम नागरिक दोनों शामिल हैं।

आंकड़े बताते हैं कि आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश प्यार के मकसद से की गई हत्याओं के मामलों में सबसे आगे हैं। इन सभी राज्यों में इस अवधि में 3,000 से ज्यादा हत्याएं प्रेम-प्रसंगों के चलते हुईं। वहीं, प्यार में की गई आत्महत्या के मामलों में पश्चिम बंगाल शीर्ष पर है, जबकि राज्य के 2012 के आंकड़े नहीं मिल सके हैं। आपको हैरत होगी कि सांस्कृतिक रूप से अत्यन्त समृद्ध इस राज्य में बीते 14 सालों में 15,000 खुदकुशी के मामलों की वजह प्रेम-संबंध थे। इन 15 सालों में प्यार में जान देने वालों में दूसरे पायदान पर तमिलनाडु है, जहां प्रेम प्रसंगों के चलते 9,405 लोगों ने मौत को गले लगा लिया। इसके बाद असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और मध्य प्रदेश का नंबर आता है। इन सभी राज्यों में 5,000 से अधिक लोगों ने प्यार में जान दे दी।

सच तो यह है कि प्यार जिस अहसास का नाम है उससे अधिक कोमल, उससे अधिक निश्चल, उससे अधिक पवित्र और उससे अधिक महान इस संसार में कुछ भी नहीं। सबसे अधिक कविताएं इसी प्यार पर बनीं, सबसे अधिक कहानियां इसी प्यार को लेकर रची गईं, सबसे अधिक मूर्तियां इसी प्यार को लेकर गढी गईं, सबसे अधिक चित्र इसी प्यार को लेकर उकेरे गए, नृत्य और अभिनय की अधिकांश भंगिमाएं इसी प्यार की ऋणी हैं, हर सृजन के मूल में यही प्यार है और सोच कर देखिए, ऊपर दिए गए आंकड़े भी इसी प्यार के हैं! ये कैसा विरोधाभास है? क्या इस विरोधाभास के रहते हम मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं?

जरा अपने भीकर झांककर देखें। आखिर क्या है प्यार के इस हश्र का कारण? जनाब कारण कहीं बाहर नहीं, हमारे ही भीतर है। हमारे ही अहं और अविवेक का परिणाम है ये। इक्कीसवीं सदी में भी हम पुरुषवादी व सामंती सोच से ऊपर नहीं उठ सके हैं। हम अब भी वोट से लेकर बेटी तक जाति देखकर ही देते हैं। हमारी ये व्यवस्था किसी और ने नहीं, हमने ही बनाई हैं और सच यह है कि हम ही उसे तोड़ भी पाएंगे। और जब तक ऐसा नहीं होगा, ऐसे आंकड़े हमारे सामने आते रहेंगे और हम मुंह छिपाते रहेंगे।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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दिल्ली में बिहारी दंगल

बिहार में भले ही जेडीयू, आरेजडी और कांग्रेस मिलकर सरकार चला रही हैं लेकिन ‘इंद्रप्रस्थ’ की कुर्सी के लिए तीनों पार्टियां एक-दूसरे से जोर-आजमाइश करती नज़र आएंगी। जी हां, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव में इन तीनों दलों के दिग्गज हाथ आजमाने जा रहे हैं। जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव जहां बिहार में महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस से अलग ताल ठोकने की तैयारी में हैं, वहीं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान भी जोर-आजमाइश में जुटे हुए हैं। उधर प्रदेश भाजपा के नेता अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार में जाने को कमर कस चुके हैं वो अलग। एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली की करीब 1 करोड़ 90 लाख की आबादी में लगभग 40 लाख बिहार और पूर्वांचल के मतदाता हैं, जिन्हें बिहार के सारे नेता अपने-अपने दलों की ओर खींचना चाहते हैं।

वैसे जेडीयू की बात करें तो वह पूरी तैयारी के बाद भी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी नहीं उतार सकी थी, लेकिन एमसीडी चुनाव में बिहार से बाहर निकलने का मौका वह अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती। पार्टी प्रवक्ता नीरज कुमार की मानें तो जेडीयू एमसीडी चुनाव में लगभग सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है। इसके मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पार्टी के पक्ष में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए 9 अप्रैल को उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में दो रैलियां करने जा रहे हैं। नीतीश कुमार द्वारा दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करना या अभी हाल ही में जेडीयू का भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठाना भी एमसीडी चुनाव के मद्देनज़र मतदाताओं को अपनी ओर लाने का प्रयास माना जा रहा है।
इधर आरजेडी नेता मृत्युंजय तिवारी ने भी कहा है कि उनकी पार्टी एमसीडी चुनाव में भाग्य आजमाएगी। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में प्रचार के लिए पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव सहित बिहार के कई नेता दिल्ली जाएंगे।

एमसीडी चुनाव को लेकर बिहार महागठबंधन की तरह एनडीए में भी बिखराव देखा जा रहा है। भाजपा के साथ सीटों को लेकर कोई समझौता न होने के कारण लोजपा अकेले ही चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी है। लोजपा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष चिराग पासवान कहते हैं कि पार्टी नगर निगम चुनाव के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करना चाहती थी लेकिन यह नहीं हो सका। उन्होंने कहा, ‘हमें लगता है कि हमारा प्रदेश संगठन चुनाव लड़ने के लिए मजबूत है इसलिए हमने अधिकतम सीटों पर दिल्ली नगर निगम चुनाव लड़ने का फैसला किया है।’
ये तो हुई जेडीयू, आरजेडी और लोजपा की बात। अब जरा भाजपा की भी चर्चा कर लें। भाजपा इन चुनावों को ध्यान में रख बिहार और पूर्वांचल के मतदाताओं को लुभाने के लिए पहले ही दिल्ली की कमान मनोज तिवारी को सौंप चुकी है, जो बिहार से आते हैं। वैसे बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव बताते हैं कि एमसीडी चुनाव के प्रचार के लिए बिहार के कई नेता भी दिल्ली जाने की तैयारी कर चुके हैं।

बहरहाल, दिल्ली के इस बिहारी दंगल का परिणाम क्या होता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन आप, भाजपा और कांग्रेस के स्पष्ट त्रिकोण में बिहार के दिग्गजों के हाथ कुछ लगेगा, इसकी उम्मीद कम ही है।

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कांग्रेस के मुस्लिम नेता ने की भागवत को राष्ट्रपति बनाने की वकालत!

इसे ‘वक्त’ का तकाजा कहें या राजनीति की विडंबना..! कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रेल मंत्री सी.के. जाफर शरीफ ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को राष्ट्रपति बनाने की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि संघप्रमुख भागवत की राष्ट्रभक्ति और संविधान के प्रति निष्ठा पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता है।

29 मार्च को लिखे अपने पत्र में शरीफ ने कहा, मैं व्यक्तिगत तौर पर महसूस करता हूं कि देश के राष्ट्रपति के तौर पर मोहन भागवत के नाम पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भागवत के नाम का विरोध करके किसी को इस मुद्दा नहीं बनाना चाहिए क्योंकि संघ प्रमुख ऐसे देशभक्त हैं जो लोकतंत्र के प्रति वफादार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हर मुश्किल समय में राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाता आया है।

गौरतलब है कि बीते दिनों शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी भागवत के नाम की वकालत की थी। राउत ने कहा था कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए संघ प्रमुख भागवत राष्ट्रपति पद के लिए अच्छी पसंद होंगे। राष्ट्रपति का पद देश में सर्वोच्च पद है। इस पद पर साफ छवि वाले किसी व्यक्ति को बैठना चाहिए। हालांकि, राउत ने कहा था कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के फैसले के बाद ही पार्टी भागवत के नाम पर सहमति दर्ज कराएगी।

बहरहाल, शिवसेना अगर भागवत की वकालत करे तो बात समझ में आती है, लेकिन सी.के. जाफर शरीफ का इस तरह का पत्र लिखना समझ के परे है। कहने की जरूरत नहीं कि उनका प्रस्ताव कांग्रेस की सोच और संस्कृति के एकदम उलट है। वैसे फौरी तौर पर शरीफ के इस कदम की दो व्याख्या हो सकती है – पहली यह कि वे कांग्रेस से ‘असंतुष्ट’ हैं और भाजपा से ‘कुछ’ पाने’ की चाहत रखते हैं और (एक प्रश्नचिह्न के साथ) दूसरी यह कि भाजपा और संघ को लेकर मुस्लिमों की राय बदल रही है या बदल सकती है और शरीफ का मोदी को पत्र लिखना उसी का अक्श है?

वैसे चलते-चलते बता दें कि संघप्रमुख खुद इस तरह की खबरों का खंडन करते हुए कह चुके हैं कि वह राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि अगर उनके सामने ऐसा प्रस्ताव आता भी है तो वह उसे स्वीकार नहीं करेंगे।

‘मधेपुरा अबतक’ के लिए डॉ. ए. दीप

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तो यूपी चुनाव ने मुसलमानों का ‘डीएनए टेस्ट’ कर दिया?

यूपी में भगवा रंग छाने और उसके बाद वहां की बागडोर योगी आदित्यनाथ के हाथों में जाने के बाद  भाजपा के बयानवीरों ने ‘हिन्दुत्व’ की राजनीति को नए सिरे से भुनाना शुरू कर दिया है। वे अब एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे हैं जो ऊपर से दिखते तो ‘उदात्त’ हैं, पर इनके भीतर एक नए किस्म के ‘तनाव’ का बीज छिपा है। अब गिरिराज सिंह का ताजा बयान ही देख लीजिए। उन्होंने कहा है कि ‘अयोध्या में राम मंदिर जरूर बनेगा’ और नई बात ये कि इसे हिन्दू और मुसलमान ‘मिलकर बनाएंगे’। आप पूछेंगे कि ये चमत्कार क्योंकर होगा तो उसका भी जवाब तैयार है जनाब, ऐसा इसलिए संभव होगा कि बकौल गिरिराज ‘हिन्दू और मुसलमानों का डीएनए एक है’।

जी हां, भाजपा के केन्द्रीय मंत्री ने जोर देकर कहा कि अयोध्या में भव्य राममंदिर बनेगा और दो सौ प्रतिशत बनेगा। हम और मुसलमान दोनों मिलकर राम मंदिर बनाएंगे क्योंकि मुसलमान भी हमारे वंशज हैं। दोनों के डीएनए एक हैं। हिन्दू और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं। गिरिराज का कहना है कि धर्म अलग-अलग हैं, इबादत अलग-अलग हैं, लेकिन पूर्वज एक हैं। राम मंदिर में मुसलमानों की भी आस्था है और अपने पूर्वजों की याद में हम मिलकर मंदिर बनाएंगे।

जब गिरिराज ऐसा बोल रहे हों तो भला साक्षी महाराज कहां चुप रहने वाले थे? उन्होंने गिरिराज का साथ देते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी चाहता है कि हिन्दू और मुसलमान दोनों मिलकर राम मंदिर बनाए। साक्षी ने कहा – हम सब भाई-भाई हैं और हिन्दू-मुसलमान मिलकर राम मंदिर बनाएंगे।

बहरहाल, यह सब सुनते-पढ़ते-लिखते मन में कई बातें उथल-पुथल मचाती हैं। सबसे पहले तो यह कि सारे मुसलमानों का एकदम से डीएनए टेस्ट कैसे हो गया? अगर ये बात ‘जुमले’ के तौर पर नहीं सांस्कृतिक एकता की सूख रही जड़ों को जिन्दा करने के लिए कही गई है तो बाबरी मस्जिद टूटी ही क्यों थी? छोड़िए बाबरी मस्जिद की ‘पुरानी’ बात। ताजा उदाहरण अभी खत्म हुए चुनाव का। इस बात का क्या जवाब है गिरिराज और साक्षी महाराज के पास कि यूपी की 403 सीटों में से एक पर भी समान ‘डीएनए’ वाले ‘भाई’ की याद क्यों नहीं आई? हिन्दुत्व के ‘हीरो’ योगी और ‘सुपर हीरो’ मोदी जब ‘श्मसान-कब्रिस्तान’ के मुद्दे पर घमासान कर रहे थे, तब ‘डीएनए’ कहां था? क्या मरने के बाद ‘डीएनए’ अलग हो जाता है?

गिरिराज और साक्षी महाराज के पहले के एक नहीं दर्जनों बयान हैं जो उनके अब के बयान का मुंह चिढ़ाते दिख रहे हैं। खैर, अगर ये बात इनलोगों ने उकसाने या समुदायविशेष पर दबाव बनाने और अपना ‘वोटबैंक’ चमकाने के लिए नहीं कही होती तो जरूर इनका हृदय से स्वागत किया जाना चाहिए था! चलते-चलते एक बात और। क्या मंदिर-मस्जिद का झगड़ा छोड़ विवादित स्थल पर कोई अस्पताल या स्कूल खोल देना बेहतर विकल्प नहीं है, जो ‘समान’ नहीं ‘सारे’ डीएनए वालों के लिए होता?

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप   

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‘बाहुबली-2’: फिल्म कैसी होगी जब ट्रेलर ने इतिहास रच दिया!

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? 2015 से पूरे देश को मथ रहे इस सवाल का जवाब हमें अगले महीने अप्रैल में मिलने जा रहा है। जी हां, इंतजार खत्म हुआ। ‘बाहुबली-2’ का ट्रेलर अब हमारे बीच आ चुका है। आ क्या गया जनाब, बस छा गया समझिए। महज एक सप्ताह में दस करोड़ से ज्यादा व्यूज़, जितने आज तक किसी फिल्म को नहीं मिले! पार्ट-2 जैसे पार्ट-1 का रिकार्ड तोड़ने की खातिर कमर कस के ही आई हो! लोगों ने इसके ट्रेलर को लेकर जैसी उत्सुकता दिखाई है, उसे देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि ‘बाहुबली-2’ सिनेमा के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर देगी!

बहरहाल, ‘बाहुबली: द कनक्लूजन’ की पहली झलक को देश भर में दिखाने को ‘बाहुबली’ की टीम ने एक खास तरह की सोची-समझी रणनीति बनाई थी, लेकिन 16 मार्च को इसके लॉन्च से पहले ही मलयाली भाषा में इसका ट्रेलर लीक हो गया, जिसके तत्काल बाद इसके सभी भाषाओं के ट्रेलर को ऑनलाइन रिलीज कर दिया गया। 2 मिनट 24 सेकेंड के इस ट्रेलर में एक्शन, रोमांस, प्रजा की रक्षा और राजगद्दी के लिए युद्ध का जैसा भव्य रूप रूप प्रस्तुत किया गया है, वह सचमुच बेमिसाल है।

लोगों ने इस ट्रेलर को जिस तरह हाथोंहाथ लिया है, उसे देख ट्रेलर लीक होने से तमतमाए राजामौली का गुस्सा भी काफूर हो गया। उन्होंने कहा, ‘अभी तो ट्रेलर लॉन्च किया गया है और दर्शक इसे इंजॉय कर रहे हैं। हमने इस ट्रेलर में दर्शकों का परिचय फिल्म के किरदारों से करवाया है, हमने यह बताने और दिखाने की कोशिश की है कि कौन से किरदार किस बारे में हैं और वह क्या कर रहे हैं। बाकी ड्रामा आपको फिल्म में देखने को मिलेगा।’

‘बाहुबली’ का जादू किस कदर हर किसी के सिर चढकर बोल रहा है, इसकी बानगी अभी-अभी यूपी में हुए चुनाव में भी देखने को मिली, जब स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में इस फिल्म और इसके किरदारों का जिक्र किया था। उन्होंने चुनाव की तुलना ‘बाहुबली फिल्म से की थी। खैर, अब दिन, घंटे और पल जोड़ने बैठ जाएं क्योंकि ‘बाहुबली-2’ के रिलीज को 28 अप्रैल का दिन तय हो चुका है। उम्मीद करें कि भारतीय सिनेमा के इतिहास का एक बड़ा अध्याय उस दिन दस्तक देने जा रहा है।

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अब बिहार में भी एंटी-रोमियो स्क्वॉयड!

बिहार में ‘योगी इफेक्ट’ दिखने लगा है। गुरुवार को भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार ने यूपी की तरह बिहार में भी अवैध बूचड़खानों को बंद करने की मांग की थी और अब पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने यूपी की ही तर्ज पर बिहार में भी मनचलों पर नकेल कसने के लिए एंटी-रोमियो स्क्वॉयड बनाने की मांग की है।

दरअसल मोदी शुक्रवार को पत्रकारों से रूबरू थे। इस दौरान उन्होंने महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए बिहार में एंटी-रोमियो स्क्वॉयड की जरूरत बताई और सरकार से इस बाबत कदम उठाने की मांग की। पूर्व उपमुख्यमंत्री ने हाल के दिनों में सड़कों पर महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बढ़ते अपराध की चर्चा करते हुए कहा कि ऐसे दस्ते को महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में तथा स्कूल और कॉलेजों के इर्द-गिर्द तैनात किया जाना चाहिए।

अवैध बूचड़खानों को लेकर भी मोदी ने यूपी की राह पर चलने की वकालत की और प्रेम कुमार की मांग का पुरजोर समर्थन किया। यही नहीं, उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर आरोप लगाया कि बिहार में बूचड़खाने सरकार की मदद से चल रहे हैं। मोदी ने यह भी कहा कि बूचड़खानों के लिए 1995 में बनाए गए कानून में संशोधन होना चाहिए।

गौरतलब है कि यूपी में भाजपा की सरकार बनते ही अवैध बूचड़खानों को बंद किया जा रहा है। 31 मार्च के बाद वहां बूचड़खानों के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया जाएगा। साथ ही वहां सभी जिलाधिकारियों को एंटी रोमियो स्क्वॉयड बनाने का आदेश दिया गया है।

मधेपुरा अबतक के लिए डॉ. ए. दीप

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जी हां, भारत की ऋणी है 5जी तकनीक

टेक्नोलॉजी दिन-ब-दिन बदल रही है। अभी हम 3जी से 4जी की ओर कदम बढ़ा ही रहे थे कि 5जी ने दस्तक दे दी। वह दिन दूर नहीं जब 5जी के जरिए सुपरफास्ट इंटरनेट इस्तेमाल किया जा सकेगा। मगर क्या आप जानते हैं कि ये 5जी तकनीक भारत की ऋणी है? जी हां, ये भारत के अमर वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस थे, जिनके 100 साल से भी पहले किए प्रयोगों के कारण दुनिया 5जी से रू-ब-रू हो सकेगी।

30 नवंबर 1858 को मयमन सिंह (अब बांगलादेश में) में जन्मे सर जगदीश चंद्र बोस कलकत्ता यूनिवर्सिटी में भौतिकी की पढ़ाई करने के बाद कैब्रिज यूनिवर्सिटी गए थे। आपको जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि बोस मिलीमीटर वेवलेंग्थ (30 GHz से 300 GHz स्पेक्ट्रम) के जरिए रेडियो का प्रदर्शन करने वाले पहले शख्स थे। उन्होंने 5mm की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे पैदा की थीं जिसकी फ्रिक्वेंसी 60GHz थी। यह उपलब्धि उन्होंने उस वक्त हासिल की थी जब इतनी लो फ्रिक्वेंसी को मापने वाले उपकरण भी ईजाद नहीं हुए थे। बहरहाल, जिन मिलीमीटर तरंगों पर जगदीश चंद्र बोस ने काम किया था, वही आज 5जी तकनीक को विकसित करने में मददगार साबित हो रही है।

बोस की ये मिलीमीटर तरंगें और भी कई रूपों में इस्तेमाल हो रही हैं। रेडियो टेलिस्कोप से लेकर रडार तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है। कारों के कोलिजन वॉर्निंग सिस्टम या क्रूज कंट्रोल में भी इसका प्रयोग होता है। इस महान वैज्ञानिक ने क्रिस्टल रेडियो डिटेक्टर, वेवगाइड, हॉर्न एंटीना जैसे कई उपकरणों का आविष्कार किया था, जिनका इस्तेमाल माइक्रोवेव फ्रिक्वेंसीज में होता है।

JC Bose
JC Bose

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