आस्था की न कोई जाति होती और न कोई मजहब होता…

सद्भावना की ऐसी मिसाल भारत के अलावे दुनिया के किसी दूसरे मुल्क में देखने को नहीं मिलेगी….. मुहर्रम के अवसर पर 106 ताजिये के लाइसेंस में 57 हिंदुओं के नाम हो- इसे बेमिसाल नहीं तो क्या कहेंगे आप | जहाँ ताजिया का निर्माण भी हिन्दू ही करते हैं |

बता दें कि बिहार के नवादा जिले के सिरदला में जहाँ 49 ताजिये का निर्माण एवं लाइसेंस मुस्लिम परिवार के लोगों के नाम है वहीं 57 हिंदुओं के नाम। सिरदला के कुशाहन निवासी सचिन कुमार रेलवे में कर्मचारी हैं और विगत 10 दिनों से वे मुहर्रम की छुट्टी लेकर गाँव आये हैं | जहाँ ग्रामीणों के साथ में मिलकर ताजिये का पहलाम किया उन्होंने |

यह भी बता दें कि सचिन के लिए यह कोई पहला अवसर नहीं है बल्कि 35 वर्षीय सचिन कुमार विगत कई वर्षों से इमाम हुसैन-हसन की शहादत की याद में मोहर्रम के अवसर पर हर बार घर आते रहे हैं | सचिन के परिवार वालों की आस्था वर्षों से मोहर्रम से जुड़ी है |

सचिन कहते हैं कि तीन पीढ़ियों से उसके परिवार वाले ताजिया बनाते आ रहे हैं | इसे सचिन के पूर्वज जेठू राजवंशी ने शुरुआत की थी | सचिन के अनुसार इमाम साहब की इबादत से जेठू राजवंशी को संतान हुआ था | तब से ही इमाम साहब की याद में वह परिवार ताजिये बनाते आ रहे हैं…… प्रार्थना करते हैं तथा परिवार की सलामती की दुआ मांगते हैं | ग्रामीण लोग आपस में सहयोग कर इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं |

चलते-चलते बता दें कि नारदीगंज में हिन्दू महिला ही ताजियेदार हैं | ताजिये के समीप औरत-मर्द सभी बैठकर मातम मनाते हैं……. मर्सिया गाते हैं | हजार से अधिक आबादी वाली भटविगहा गाँव में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं फिर भी वहां इमाम साहब की इबादत की जाती है | वहाँ के लोग कहते हैं कि इमाम साहब से हमारी आस्था जुड़ी है……. आस्था की कोई जाति और मजहब नहीं होता |

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